सोमवार, 1 नवंबर 2010

उत्‍स का उत्‍सव

उत्‍स का उत्‍सव

अमा के घुप घनेरे, ये अंधेरे,

भले कितने बड़े हों,

भले ही राह में तन कर खड़े हों,

पर, सच कहूं तो हैं बड़े डरपोक।

बहुत कमज़ोर होते हैं- तमस के ये सिपाही !

लड़ नहीं सकते

अकेले एक नन्हें दीप से भी,

जो जला खुद को, मिटा देता

अंधियार की सारी सियाही !

हार जाते हैं उसी से ये सिपाही !!

आज फिर उजियार का बेटा

हमारे द्वार पर सजकर खड़ा है,

अंधत्व से लड़ने अड़ा है।

बनकर नई पीढ़ी खड़ा है,

स्वागत करो इसका !

रोशनी की इस विरासत से

मिलो, उत्सव मनाओ।

गीत गाओ राग के, अनुराग के,

अग-जग उजाला बांटती उस आग के

जो पीढ़ियों की है धरोहर!

जब जुड़ेंगी पीढ़ियां निज उत्स से,

तब मिटेगा

घर ही नहीं, मन-प्राण में

पसरा हुआ तमतोम सारा।

लुप्त होगा तब सकल अंधियार

औ’ खिलेगी यह धरा, यह व्योम सारा !

फिर बहेगी रोशनी की गंगधारा

जिसमें नहाकर पीढ़ियां अविमुक्त होंगी,

संतुष्ट और संतृप्त होंगी !!

अपनी जड़ों से विलग होकर सूख जाता हर तना है,

उत्स से कटकर नहीं कोई बना है,

पर साक्षी इतिहास है कि उत्स से जुड़कर

सदा उत्सव मना है !

सदा उत्सव मना है !

श्रीपर्व 2010

पर उजासभरी मंगलकामनाओं सहित सादर सविनय

हम सब बुधकर-

सौ.संगीता एवं डॉ.कमलकांत

सौ.डॉ.मृणाल एवं सौरभ कु.अपरा तथा अद्वय-ओम

सौ.पारुल एवं पल्लव अथर्व-रघु

kk@budhkar.in 09412070333

saurabh@budhkar.in 09997000186 mrinal@budhkar.in 09011043626

pallav@budhkar.in 09717555050 parul@budhkar.in 09560300255

http://yadaa-kadaa.blogspot.com/

लक्ष्‍मण निवास, साधुबेला मार्ग, निकट स्‍टेट बैंक, हरिद्वार 249491 उत्‍तराखण्‍ड

ओ मेरे अनिकेत

बचपन से सुनते आए थे हम-

कि ‘सबै भूमि गोपाल की’

यानी तुम्हारी है प्रभु !


पर अब तो

तय कर दिया है न्यायपीठ ने

कि तुम्हारा हिस्सा तो सिर्फ

दो तिहाई या एक तिहाई है

दुहाई है राम !

अब तो तुम्हारी ही दुहाई है !!


होगे तुम

दुनिया जहान के मालिक

वेद में, पुरान में।

बाईबिल में, कुरान

में

पर असलियत

तो अब जगज़ाहिर है

मेरे मालिक,


कि तेरे ही इंसान ने

तेरी ही धरती पर

तुझी को

अनिकेत कर दिया है,

और तू तो

हम इंसानों का

सिर्फ एक हथियार है,


सरेआम

यह संकेत कर दिया है !