tag:blogger.com,1999:blog-7753666226233455371.post1551789010038322578..comments2023-07-04T07:36:06.107-07:00Comments on कछु हमरी सुनि लीजै: डिप्लोमा इन शू-जर्नलिज्मडॉ. कमलकांत बुधकरhttp://www.blogger.com/profile/00688929888717058169noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-7753666226233455371.post-15052946598872604742009-04-10T07:07:00.000-07:002009-04-10T07:07:00.000-07:00sir bhut achha lga aapki ye post padhkar...vyang b...sir bhut achha lga aapki ye post padhkar...vyang bhut dumdaar laga..<BR/>Dr.AjeetDr.Ajithttps://www.blogger.com/profile/17632123454222628758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753666226233455371.post-31690648598692285742009-04-09T22:51:00.000-07:002009-04-09T22:51:00.000-07:00शू पत्रकारिता पर बहुत बढिया व्यंग्य लिखा आपने ।शू पत्रकारिता पर बहुत बढिया व्यंग्य लिखा आपने ।संगीता पुरी https://www.blogger.com/profile/04508740964075984362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753666226233455371.post-35519120644575651832009-04-09T19:08:00.000-07:002009-04-09T19:08:00.000-07:00आपका यह व्यंग्य 'पीडा में आनन्द' देने वाला है। ...आपका यह व्यंग्य 'पीडा में आनन्द' देने वाला है। अच्छा भी लगता है और वेदना भी होती है। <BR/>अच्छी रचना को सुधी पाठक मिलने के सुपरिणाम कैसे होते हैं - यह भी यहां देखने को मिला। श्री अजित वडनेरकर की टिप्पणी आपके इस लेख का सुन्दर 'शिष्ट परिशिष्ट' है।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753666226233455371.post-52519757961329771082009-04-09T18:18:00.000-07:002009-04-09T18:18:00.000-07:00डीएसजे के कोर्स की सोच करें शुरुआत।वाणी का तब मोल ...डीएसजे के कोर्स की सोच करें शुरुआत।<BR/>वाणी का तब मोल क्या हो जूते से बात।।<BR/><BR/>सादर <BR/>श्यामल सुमन <BR/>09955373288 <BR/>मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं। <BR/>कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।। <BR/>www.manoramsuman.blogspot.com<BR/>shyamalsuman@gmail.comश्यामल सुमनhttps://www.blogger.com/profile/15174931983584019082noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753666226233455371.post-86474656737240580912009-04-09T15:25:00.000-07:002009-04-09T15:25:00.000-07:00बहुत खूब है साहब...आप तो कई लोगों के खैरख्वाह और क...बहुत खूब है साहब...आप तो कई लोगों के खैरख्वाह और कई के लिए सिर्फ ख़ार साबित होने वाले हैं। वैसे जूते की नियती है जड़ना और जुड़ना। इसकी जन्मपत्री में लिखा है ऐसा। जूता बना है संस्कृत के युक्तम् से। जो युक्त हो। इसमें जो़ड़ी का भी भाव है और पैरों से जुड़ने का भी। अब जूता जब पैरों से जुड़े जुड़े आजिज़ आ जाता है तो वह पैरों के निकट संबंधी हाथों से कहता है कि भाई, कुछ तो तुम भी हमें अपने से जोड़ो। अब जो हथेलियां चाटूकारिता के दौर में खुद ही एक दूसरे से जुडी जुडी खुजली की बीमारी की शिकार हो रही हों वे जूते को क्यों खुद से जोड़ें? सो बेहतर यही है कि जूते को कहीं और ज़ड़ दिया जाए। अब पैरों का स्वभाव है कि वे हमेशा पिछाड़ी पर ही चलते हैं, और हाथों की मेहरबानी हमेशा श्रीमुख पर होती है। सो पैरों से आजिज आए जूते की रिरियाहट पर हाथ उसे सिर्फ थामते भर हैं और फिर मंत्री से संत्री तक किसी से भी जुड़ने के लिए छोड़ देते हैं। जूता वही जो युक्त हो, संयुक्त हो अर्थात जुड़े। जूता जोड़ता है, तोड़ता नहीं। <BR/>शू पत्रकारिता का भविष्य उज्जवल है। आपकी पाठ्यक्रम कमेटी में हमें रखवा दीजिए या फिर लैक्चर के लिए बुलवा लीजिए...अजित वडनेरकरhttps://www.blogger.com/profile/11364804684091635102noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7753666226233455371.post-1714976725049650672009-04-09T09:17:00.000-07:002009-04-09T09:17:00.000-07:00bahut hi joradaar vah vah anand gaya ji .bahut hi joradaar vah vah anand gaya ji .सिटीजनhttps://www.blogger.com/profile/01026451368923702089noreply@blogger.com