शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

महाकम्‍भ के महाबन्‍द में

यूं तो कुम्‍भमेला सबके ही फायदे की चीज है। जब आता है तो सबके लिए कुछ न कुछ लेकर आता है। पर सबसे ज्‍यादा फायदा होता है छुट्टियां चाहने वालों को। जिन्‍हें कामकाज से छुट्टी चाहिये उनके लिये कुम्‍भ से मुफीद कुछ नहीं। जित देखूं तित अवकाशानन्‍द । बाहर वाले तो आनन्‍द लेने आते ही हैं, हम हरिद्वार वाले भी जमकर लूटते हैं अवकाशानन्‍द।

कुम्‍भ ऐसा मौका है जो कुम्‍भनगर में अच्‍छे खासे चलते हुए कामों को बन्‍द करवा देता है। श्रद्धालुओं के लिये आता है कुम्‍भ मोक्ष का रास्‍ता दिखाने। लेकिन उस रास्‍ते पर तो बन्‍दा मरने के बाद ही जा सकता है।  पर  कुम्‍भनगर के बाशिन्‍दों को तो वह जीतेजी ही मुक्ति का आनन्‍द दे जाता है। हर काम से मुक्ति का आनन्‍द। यह महाकुम्‍भ से ज्‍़यादा महाबन्‍द का आनन्‍द है।

कुम्‍भ के आते ही हरिद्वार के रास्‍ते बन्‍द, रिक्‍शा-तांगे बन्‍द, स्‍कूटर कारें बन्‍द,  बाज़ार बन्‍द, दूकानें बन्‍द, मुख्‍य गंगाघाट बन्‍द, वहां के मंदिर-देवालय बन्‍द, शहर के  ‍स्‍कूल-कॉलेज बन्‍द, आने वाले यात्री बाड़ों में बन्‍द और शहर के बूढ़े, बच्‍चे, औरतें घरों में बन्‍द। कुल मिलाकर आजकल का महाकुम्‍भ हमें महाबन्‍द के नज़ारे दिखा देता है। हरिद्वार वालों के लिये तो कुम्‍भ सचमुच मुक्ति का संदेश लेकर आता है। रोज़मर्रा के कामों से मुक्ति का पर्व है महाकुम्‍भ।

इन दिनों हरिद्वार के अखबारों  में राजकीय हवालों से जो सूचनाएं छप रही हैं उनका संदेश है कि जब तक हरिद्वार में महाकुम्‍भ है तब तक स्‍नान दिवसों पर कोई अपना ड्यौढ़ी, दरवाज़ा न लांघे। जो लांघेगा वह वैसे ही फंसेगा जैसे पिछले स्‍नानों पर फंस चुका है। घर से हरकी पौड़ी तक का दस मिनिट का रास्‍ता ढाई घण्‍टे में भी पार न करके लोग महाकुम्‍भ का महानन्‍द ले  चुके हैं। आगे भी लेंगे।

बच्‍चापार्टी खुश है क्‍योंकि रास्‍ते बन्‍द हैं तो स्‍कूल कॉलेज की छुट्टी होनी ही है। आदेश है कि नहान से एक दिन पहले छुट्टी, नहान के दिन छुट्टी और नहाने के बाद अगले दिन फिर छुट्टी। अपनेराम से मौहल्‍ले के बच्‍चे पूछ रहे थे कि, ''अंकल जी, लोग हरिद्वार में गंगा नहाने आते हैं तो हमारी छुट्टी हो जाती है। पर हम भी जो रोज़ नहाते हैं। फिर तो हमें जबरदस्‍ती स्‍कूल क्‍यों भेज दिया जाता है। गंगा में तो नहाने ही नहीं दिया जाता। ये क्‍या चक्‍कर है अंकल जी।''

अब अपनेराम क्‍या बताएं उन्‍हें कि ये चक्‍कर ही तो महाकुम्‍भ का चक्‍कर है। वैसे भी हरिद्वार के विद्यार्थी को अवकाशानन्‍द कुछ ज्‍यादा ही मिलता है। कांवड़ मेला हो तो दस दिन तक जीवन ठप्‍प, स्‍कूल ठप्‍प और शहर में चलना-फिरना ठप्‍प। फिर कोई लक्‍खी मावस-पूनो आ जाए तो फिर अवकाशानन्‍द। बैसाखी हो, सोमवती हो तो शहर में तो चहल-पहल हो जाती है पर शहरवालों को लकवा मार जाता है। इन दिनों महाकुम्‍भ का जोर है।

हमारी उदार सरकार ने तीन कुम्‍भस्‍नानों को बढ़ाकर ग्‍यारह कर दिया तो उत्‍साही अधिकारियों ने हर स्‍नान और उसके आगे पीछे के दिनों को भी अवकाशानन्‍द में तब्‍दील कर दिया। अब सवाल यह है कि इन अवकाशों में हरिद्वार वाले कहां जाएं क्‍या करें। देश-दुनिया के लोग उत्‍साह और उल्‍लास से हरिद्वार आरहे हैं और हरिद्वार के लोग अपने अपने दड़बों में घुसे रहने को मजबूर हैं। बाहर निकलना है तो पास जुटाओा पास जुटाने के लिये पुलिसियों की चिरौरी करो। फिर पास लेकर जब निकलो तो उस पास की औक़ात का पता चले कि वह तो कैंसिल कर दिया गया है।    

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

संग संग नहाए जोगी और भोगी

कुम्‍भनगर में साधुसंतों के अखाड़ों का पहला शाही स्‍नान आज सकशल निबट ही गया। सच तो यह है कि प्रशासन महसूस रहा है कि उसकी जान बची और उसने लाखों पाए। संयोग ऐसा कि आज लाखों स्‍नानार्थी भी आए और किस्‍मत से जान बची के भी लाखों पाए प्रशासन ने। आज दोनों हाथों में लड्डू हैं अफ़सरों के। मध्‍यलिंगी उनके देहरी द्वार पर कल बधाइयां गाने की तैयारी में हैं।

बड़ी खुशी की बात है कि आज वे लोग नहाने पर नहीं लड़े। कहीं भी नहीं अड़े। सब नहाए, मिलकर नहाए, हिलमिलकर नहाए, गलबहियां डालकर नहाए, प्रेम  से नहाए, हंस हंस के नहाए, जयकारे लगाके नहाए, कपड़ों में नहाए और बिना कपड़ों भी नहाए। वे नहाए और लोगों ने देखा कि वे नहा रहे हैं। कैमरों ने देखा कि वे नहा रहे हैं। संन्‍या‍सियों ने देखा कि संन्‍यासी नहा रहे हैं और गृहस्‍थों ने भी देखा कि संन्‍यासी नहा रहे हैं। इतना ही नहीं उत्‍साही गृहस्‍थों ने तो संन्‍यासियों के साथ गंगा में छलांग लगाई।  पुलिस ने, प्रशासन ने बड़ी नाकेबन्‍दी कर रखी थी कि संन्‍यासियों के संग गृहस्‍थी न नहाएं पर वह सब नाकेबन्‍दी और हिदायतें धरी की धरी रह गई। गृहस्‍थी तो नहाए और खूब नहाए। जिन्‍हें अंगसंग लगके नहाना था वे तो जमके नहाए। अब किसी को यह बात सुहाए या किसी को न भाए पर जोगियों के संग भोगी तो गंगा नहाए। इतना ही नहीं कई भोगियों ने कई जोगियों को नहलाया। हर-हर गाया और मल-मल नहलाया।

सवाल ये पूछा जा रहा है कि कौन से भोगी नहाए। तो भैया, जिस भोगी पर जोगी की कृपा हो गई वह शाही जुलूस में शामिल हो गया और जिसने जोगी को रजत-प्रणाम नहीं किये वह महरूम हो गया जोगी के साथ नहाने से। रजत-प्रणामों का प्रभाव बढ़ रहा है इसीलिये साधुओं की शाहियों में गृहस्थियों की तादाद बढ़ रही है। आज भी हरकी  पौड़ी पर जोगी कम थे भोगी ज्‍यादा थे। शाहियों में संतों के भगवे रंग पर गृहस्थियों का रंगबिरंगापन ज्‍यादा हावी था।

अपनेराम की चिंता ये है कि रजत-दानियों और रजत- परिवारों का वर्चस्‍व जिस तरह जोगियों पर बढ़ रहा है उससे तो लगता है कि आने वाले कुम्‍भों में अमृत उन्‍हींको मिलेगा जिनकी अंटी में सिक्‍के होंगे। वही हरकी पौड़ी नहाएंगे जिन्‍होंने गुरुच‍रणों में भेंट चढ़ाई है। जो बेचारे हैं, भले ही वे संख्‍या में भारी हैं पर पुलिस और प्रशासन भी उन्‍हीं पर भारी है। हरकी पौड़ी के सामने होगी पर वे नहा न पाएंगे, बल्कि दूर, बहुत दूर हकाले जाएंगे। वे कहां नहाएंगे, न उन्‍हें पता है न शाहियां नहलाने वाले प्रशासन को।

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

कुम्‍भ में नयनसुख

हरिद्वार एक स्‍नान-प्रधान या कहिये नहान-प्रधान शहर है। यहां दुनिया भर से आस्तिक लोग नहाने आते हैं। जो आस्तिक नहीं हैं वे नहान देखने आते हैं यानी नहाते हुओं को देखने के लिये आते हैं। वे नहानेवालों को देखते हैं। और नहाते हुओं को देखने वालों को भी देखते हैं। दरअसल उन लोगों के लिये नहान के ये मौके देखादेखी के मौके होते हैं।

मीडियाकर्मी देखादेखी के इस कर्म में अग्रणी होते हैं। देखना, गौर से देखना और भीतर तक देखना उनके कर्तव्‍यों में शामिल है। इसलिये जब वे आते हैं तो पहले हरिद्वार को देखते हैं, फिर यहां के लोगों को देखते हैं, यहां के घाटों को देखते हैं, घाटों के ठाठों को देखते हैं और फिर घाट घाट का पानी पीते हुए वह सब कुछ देखते हैं जिसे देखकर पुण्‍य मिलता है, नयन-पुण्‍य मिलता है। इस पुण्‍य के बदले कभी कभी उन्‍हें गालियां भी मिलती हैं। पर उन गालियों को फूलहार मानकर वे गले में धारण कर लेते हैं। शिव बनकर गरल पीते हैं और फिर नये सिरे से पुण्‍य लूटने में मशगूल हो जाते हैं।

अपनेराम ने आज ही एक अखबार में पढ़ा है। एक मीडियाकर्मी इस बात से चिंतित और निराश हैं कि हरिद्वार के कुम्‍भ में अभी तक उतने नागा यानी निर्वस्‍त्र साधु नहीं आएं हैं जितने आने चाहिए। नग्‍नता की कमी पर वे बंधु चिंतित हैं। उनकी चिंता भी स्‍वाभाविक है और निराशा भी स्‍वाभाविक है। अगर नागा समाज कम तो कुम्‍भ जैसे विराट पर्व का क्‍या होगा। अगर सभी साधु संतों ने कपड़े पहन लिये तो कुम्‍भ की रिपोर्टिंग नीरस हो जाएगी। फिर ये क्‍या लिखेंगे और दुनिया जहान को क्‍या दिखाएंगे। वैसे उन्‍हें मुग़ालता है कि दुनिया जहान के लोग उनके अखबारों में सिर्फ नंगई पढ़ना और उनके चैनलों पर सिर्फ नंगई देखना चाहते हैं।

पर वे अपने मुग़ालते के चलते न  केवल नहाते हुओं को देखते हैं बल्कि दुनिया जहान को भी दिखाते हैं कि देखो हरिद्वार में लोग कैसे नहाते हैं। इसी तरह उनकी नौकरी और उनके चैनलों की टीआरपी बनी रहती है। ऐसा न करें तो भाईलोगों की नौकरी पर बन आए। ऐसा वे कहते हैं।

नहाना स्‍वच्‍छता और स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ा मसला है। सारी दुनिया में हाइजीन का बोलबाला है। भारतवासी और भारतवंशी तो सदियों से स्‍नान के महत्‍व को समझते रहे हैं इसलिये भारतीय परम्‍परा में नहाने का जबरदस्‍त आग्रह है। घर में रोज़ नहाओ, कूंए बावड़ी पर भी कभी कभी नहाओ, पिकनिक मनाने को ही सही, झील झरनों में नहाओ, पुण्‍य कमाने को नदियों में नहाओ और अगर सागर दर्शन हो जाएं तो वहां भी मत चूको। खारे पानी की चिंता किए बगैर वहां भी डुगकी लगाओ।

इसी परम्‍परा का निर्वाह हमारे संतों, ऋषि-मुनियों ने किया और पूरे समाज के लिये तय कर दिया कि पुण्‍य कमाना है तो नहाओ। पर्व तिथियों तीर्थों में जाओ और नदियों में डुबकी लगाओ। पाप हट जाएंगे पुण्‍य खाते में जुड़ जाएंगे। सो भैया, हरिद्वार में लोग सैकड़ों हज़ारों मील दूर से आ रहे हैं और अपने अपने पाप यहां छोड़ कर पुण्‍य बटोरकर ले जा रहे हैं। और यह कुम्‍भ तो नहाने का ही मेला है। तन-मन की मैल धोने का मेला है। कुम्‍भ में लोगों के तन भले ही गंगाजल से साफ हो जाएं पर मन साफ हो पाएंगे या नहीं, पता नहीं। हां, मीडिया अपना मसाला ज़रूर ढूंढ ही लेगा।