बच्चन जी का आज सौवां जन्मदिन है। वे होते तो हरिद्वार से भेजे बेसन के लडडुओं से अपने जन्मदिन की शुरुआत करते। ऐसा उन्होंने कई बार किया भी और मुझे लिखा भी। बेसन के लडडू उनकी कमजो़री थे। मेरी पत्नी संगीता जी को उनकी इस कमज़ोरी का पता चला तो वे हर साल उनके जन्मदिन पर उन्हें लडडुओं का पार्सल भिजवाने लगीं। एक बार, शायद 1979 की बात है, मैंने बच्चन जी के जन्मदिन पर उन्हें एक गज़ल लिख भेजी और साथ में भेज दिए संगीता जी के बनाए बेसन के लडडू। बच्चन जी का जवाब आया जिसमें उन्होंने गज़ल को मीठी बताते हुए लिखा कि..... तुम्हारी गज़ल यूं तो बहुत मीठी है पर संगीता जी के बनाए लडडू खाकर शायद उतनी मीठी न रह जाए।..... फिर बच्चन जी आगे लिखते हैं कि..... लडड़ुओं पर एक शेर मुलाहिज़ा हो...
लज़्ज़ते लडडू बताऊं किस तरह,देखते ही मुंह में पानी आ गया ।।
डॉ. हरिवंशराय बच्चन एक बहुत बड़ी हस्ती का नाम है जो महाकवि ही नहीं महान मनुष्य भी थे। मेरे जैसे अदना आदमी के साथ उनका बरसों पत्राचार चला जो 2004 में नवभारत टाइम्स संस्थान ने उनकी पाती अपनी थाती नाम से प्रकाशित ही नहीं किया बल्कि महाकवि के महानायक पुत्र अमिताभ जी से उसका मुम्बई में विमोचन भी करवाया। यह पत्राचार इस बात का पक्का सबूत है कि वे कितने ख़ास होकर भी कितने आम थे। मेरे जीवन को जिन चन्द महान विभूतियों का आशीर्वाद मिला उनमें डॉ. बच्चन अग्रणी हैं। 1965 से 1984 तक हमारे बीच बाकायदा पत्रों का एक मजबूत पुल बना रहा जिस पर होकर मैं अक्सर दिल्ली के सोपान और मुम्बई के प्रतीक्षा तक आता जाता रहा और वे हरिद्वार में लक्ष्मण निवास पर अपने पत्रों की दस्तक देते रहे। उन्हीं के शब्दों में कहूं तो कह सकता हूं.....
अगणित अवसादों के क्षण हैं, अगणित उन्मादों के क्षण हैं।रजनी की सूनी घडि़यों को किन किन से आबाद करूं मैं,क्या भूलूं क्या याद करूं मैं..... ।
फिर भी आइये, एकाध बात याद करके उन्हें प्रणाम करने का प्रयत्न करता हूं।
1982, 1983 में मैंने कई बार बच्चन जी से कहा कि मैं आपसे अमिताभ जी को लेकर एक साक्षात्कार करना चाहता हूं। पर हर बार बच्चन जी टाल जाते थे... मेरे से नहीं अमिताभ के बारे में औरों से पूछो...। एक बार मैं टेप रेकॉर्डर लेकर पहुंच गया तो बोले कि यह टेप रेकॉर्डर हटा लो, बन्द कर दो तो बात करूं। मैंने कहा कि मुझे शॉर्टहैण्ड में लिखना नहीं आता, आपकी कही बातें कैसे लिख पाऊंगा उतनी जल्दी। तो बोले चलो किसी और तरह से तुम्हारा काम कर दूंगा। काम उन्होंने किया नहीं और वक्त टलता गया। फिर वह वक्त आया जब बच्चन रचनावली का विमोचन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को करना था। दिल्ली के एक सभागार में भव्य कार्यक्रम आयोजित था। बच्चन जी ने मुझे भी कार्यक्रम का निमंत्रण भिजवाया तो मैं सपत्नीक कार्यक्रम में शरीक हुआ। मेरी पंक्ति से अगली ही पंक्ति में राजीव गांधी, सोनिया गांधी, अमिताभ जी, जया जी और अजिताभ जी बिराजमान थे। मैं इस समारोह में एक छोटा सा टेपरेकॉर्डर लेता गया। मैंने सारा कार्यक्रम दो कैसेटों में टेप कर लिया। हुआ यह कि मुख्यअतिथि के रूप में इंदिरा जी और अन्य वक्ता जो बोले वह किसी तकनीकि वजह से समारोह वाले शायद टेप नहीं कर सके पर मेरे रेकार्डर के ज़रिये दो कैसेटों में वह सब आ गया। यह बात बाद में महाराजसिंह कॉलेज सहारनपुर के मेरे विभागाध्यक्ष डॉ. सुरेशचन्द्र त्यागी के पत्र से बच्चन जी को पता चली क्योंकि मैंने सहारनुपर जाकर त्यागी जी को वह कैसेट सुनवाए। बाद में जब बच्चन जी से मिलना हुआ तो वे बोले मुझे वो कैसेट दे दो जिसमें रचनावली विमोचन की कार्यवाही अंकित है। मैंने जवाब दिया कैसेट तब मिलेंगे जब आप मुझे इंटरव्यू देंगे। बच्चन जी मुस्कराए और बोले अब तुम पक्के पत्रकार हो गए हो।बाद में, जैसाकि बच्चन जी और मेरे बीच तय हुआ, मैंने अमिताभ संबंधी प्रश्नों की एक प्रश्नावली बनाकर उन दो कैसेटों के साथ उन्हें भेजी जिसकी लम्बी से उत्तरावली बच्चन जी ने मुझे स्वाक्षरों में लिख भेजी। आज भी उनके द्वारा लिपिबदध वे दर्जन भर दस्तावेज मेरे पास सुरक्षित हैं। बच्चन जो को ब्लैकमेल करके मैं खुश था और बच्चन जी ब्लैकमेल होकर भी प्रसन्न थे। बाद में वह लिखित साक्षात्कार घर्मयुग के 1 जुलाई 1984 के अंक में प्रकाशित हुआ।
आज यह संस्मरण मैंने अपने पूर्व कॉलेज एसएमजेएन पीजी कॉलेज हरिद्वार में में बच्चन जी की याद में हुए एक समारोह में भी सुनाया और अपने तमाम भांजों की फरमाइश पर अपने ब्लॉग यदा कदा के लिए भी सुरक्षित कर दिया। पाठकों को आनन्द आया तो आगे ऐसे ही लिखता रहूंगा । आमीन।
14 टिप्पणियां:
स्वागत है मामाजी आपका। बहुत अच्छा लगा आपका यह ब्लाग शुरू होता देखकर। आपकी बच्चनजी के पत्रों और यादों के संकलन की किताब हमारे पास है। संयोग यह कि यह किताब मैं अपने मामाजी डा.कन्हैयालाल नंदनजी के यहां से जबरियन ले आया था। मामाजी पर इत्ता हक तो बनता है। आप खूब सारी अपनी यादें हमें सुनायें/पढ़ायें। हम सुनने के लिये बेताब हैं।
http://hindini.com/fursatiya
पाठकों को आनन्द आया तो आगे ऐसे ही लिखता रहूंगा ।
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बहुत आनन्द आया। आप नियमित ऐसे ही लिखते रहें।
ap avashya likhiyega ...
Hume aapkee yaadon ke safarname
o sun ker , bahut khushee ho rahee hai.
Shri Bachchanji chachaji ko ,
shat shat Pranam !
-- Lavanya
इस ब्लैकमेलिंग पे कौन न मर जाये ए खुदा
करते हैं ब्लैकमेलिंग,पर दिल ब्लैक भी नहीं
धांसू च फांसू है जी। अब तो रोज जमाते रहिए। आपका ब्लाग ब्लाग एग्रीगेटरों के यहां रजिस्टर्ड हुआ या नही, बोले तो ब्लागवाणी, नारद, चिट्टाचर्चा वगैरह पर।
मामा जी,
प्रणाम
आपका स्वागत है. साथ में धन्यवाद भी. आप ब्लॉग पर लिखने के लिए इतनी जल्दी राजी हो जायेंगे, इसका अंदाजा नहीं था. लेकिन ब्लॉग पर आपका आना सचमुच एक सुखद आश्चर्य दे गया.
आप जरूर लिखिए. हमें बहुत कुछ पढ़ने को मिलेगा, इस बात का विश्वास है. ब्लॉग बनाने के लिए एक बार फिर से धन्यवाद.
सुस्वागतम मामा जी,
आपके बारे में आलोक जी ने बताया था. आज आपका ब्लौग देख के प्रसन्नता हुई. आगे भी आप इसी तरह किस्से सुनाते रहेंगे इसी की प्रतीक्षा है.
बहुत ज़रूरी और दस्तावेजी महत्व के संस्मरण हैं . आप ज़रूर लिखें . हम डूब कर पढ रहे हैं और आगे पढने को उत्सुक हैं .
बच्चन जी की सादगी और साफगोई का एक और उदाहरण है आपकी पोस्ट, हम से बाँटने के लिये धन्यवाद
अरे वाह!! आपका ब्लॉग बन भी गया!!!
मस्त ब्लैकमेलिंग थी यह तो!!
वैसे मामाश्री, हम सब कलयुगी भांजे कितने खतरनाक है ये तो आपने देख ही लिया, ब्लॉगिंग जैसी संक्रामक बीमारी के वाहक है हम!! आखिरकार आपको भी ग्रसित कर ही लिया!!
बस आप नियमित लिखते ही रहें यहां,
मामाश्री की जय..
धन्नभाग हमारे जो आप पधारे।
ब्लाग तो आपका दो महिने पहले से तैयार था। आपका परिचय भी ब्लागियों से करा दिया था पर देखिय़े कितने भुलक्कड़ हैं सब। इसी लिए यहां जल्दी जल्दी और बार बार आना ज़रूरी है।
आपके संस्मरणों का लाभ लेने को आतुर हैं सब...
बोलो ब्लाग जगत की जय....
आशा ही नही पूर्ण विश्वास है कि आपका ये स्नेह आगे भी मिलता रहेगा.
प्रिय भांजे भांजियों,
सदा सुखी रहो।
आप लोगों को मामा की लेखनी भायी यह मेरे लिए है बहुत सुखदायी ।। शुक्रिया, धन्यवाद, थैंक्स ।। मेरे मौअज्जिज़ हाजरीन । ये मौका तो यही सब कहने का है। अपने बछड़ों का उत्साह देखकर एक बैल सींग कटवा चुका है और बछड़ों में शामिल होने को बेताब है। लो संभालो मुझे, मैं आया.......।
प्रिय अनूप, तो तुम नन्दन भैया के भांजे हो । बहुत खूब । अभी परसों ही नन्दन जीए बैरागी जी और मैं उस लक्ष्मण निवास में रमें हुए थे जिसमें आलोक नाम एक पुराणिक जीव मुझसे मिलकर गया। बहरहाल कल और आज के किस्से तुम्हारे पढ़े हुए होंगे उस किताब में।
प्रियालोक, ये पंजीकरण क्या होता है ब्लॉग का। मुझे नहीं मालूम । आप जो कुछ कराना हो करा दो और रसीद हरिद्वार भेज दो।
ज्ञान जी, शिवकुमार जी, प्रियंकर जी, कंचनसिंह जी, काकेश जी, बालकिशन जी, संजीत त्रिपाठी जी और अंतर्मन के लावण्यमु जी आप सबको तहे दिल से शुक्रिया ।
अजीत से क्या कहूं वो इन दिनों उखड़ा हुआ लग रहा है। भाई, वापस लौटो अपनी फॉर्म में । फि़लवक्त इतना ही ।
सस्नेह
कमलकांत बुधकर
मामाजी , पंजीकरण वगैरह सब हो गया। आप तो बस लिखे जायें।
खूब आनन्द आया बच्चन जी की ब्लेक्मेलिंग पढकर.
बिल्कुल उस्तादाना संस्मरण. ऐसी पोस्टें रोज़ ही पढने को मिलें तो कितना अच्छा हो.
अगली किश्तों का इंतज़ार रहेगा.
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