बुधवार, 29 जुलाई 2009

सच का सामना

झूठ का सामना करते करते उकता गया था सत्‍यवादी राजा हरिश्‍चन्‍द्र का यह देश। झूठ, झूठ और सिर्फ झूठ। देश को सिर्फ झूठ ने घेर रखा था। लोग सच बोलने से डरते थे। बोलते भी थे तो मुलम्‍मेदार सच बोलते थे। गोलमेाल भाषा में गोलमोल प्रश्‍न होते थे और उसके गोलमोल ही जवाब सामने आ जाते थे। लेकिन मुलम्‍मा उतरते ही झूठ सामने आ जाता था। आदमी बड़ा हिम्‍मती था। झूठा होने के मामले में वह एकदम सोलह आने सच्‍चा था। वह घर में झूठा था तो बाहर भी झूठा ही था। वह सड़क से संसद तक झूठा था। वह अपने मां-बाप से तो झूठ बोलता ही था, अपने बच्‍चों से भी झूठी भाषा में ही बात करता था। वह सार्वकालिक, सार्वजनीन और सर्वत्र झूठा ही था।

पर भला हो स्‍टार प्‍लस टीवी वालों का कि उन्‍होंने देश को सच बोलना सिखाया दिया है। जो काम बड़े बड़े ऋषि-मुनि, ज्ञानी-संत, धर्मग्रंथ और पीर-पैगम्‍बरों के प्रवचन न कर सके वह काम इस घोर कलिकाल में अपने स्‍टार प्‍लस टीवी ने कर दिखाया है। उसने देशवासियों को सच बोलना सिखा दिया है। और सत्‍यवादियों के सत्‍यवचनों को देशदुनिया के सामने लाकर दिखा भी दिया है। अब ये और बात है कि वह सत्‍य नंगई की सीमा में उतरा हुआ सत्‍य है जिसे देख सुनकर ऩज़रें पता नहीं क्‍यूं झुक झुक जाती हैं।

हम आभारी हैं स्‍टार प्‍लस के कि वह देश में सतयुग लौटा लाया है। अब लोग सच बोलने लगे हैं। हमसच बोलने के लिए किसी कन्‍फेशन बॉक्‍स की ज़रूरत नहीं है। अब स्‍टार प्‍लस ही हमारा नया पादरी, नया धर्माचार्य है जो हमारे इस सच को सार्वजनिक करता है जिसे हम अभी तक पारिवारिक भी नहीं कर पाए थे। बड़ी बात है। वर्तमान जीवन की कितनी बड़ी उपलब्धि है। सच बोलो और लखपति हो जाओ। वे लोग कितने झूठे हैं जो कहते हैं कि आज की दुनिया में कमाई करनी है तो बिना झूठ का सहारा लिये संभव नहीं है। इस घोर कलिकाल में यूं भी भगवान सत्‍य ही लक्ष्‍मी दिलवाते हैं, यह भी सिद्ध हो गया है।

लोग कहते आए हैं कि सत्‍य सोने के पात्र में बन्‍द रहता है और पात्र कर मुंह ढका रहता है़....''हिरण्‍मयेन पात्रेन सत्‍यस्‍यापि हितं मुखं''। अगर कोई उस पात्र का मुंह खोल दे तो सत्‍य की चौंध से उसके अंधा होने की भी संभावना हो जाती है। अपनेराम का कहना है कि ये परम्‍परावादी लोग स्‍टार प्‍लस देखें और फिर अपनी राय कायम करें। भाई ज़माना बहुत दूर निकल आया है । अब तो सच बोलो, वह भी नंगा सच और स्‍वर्णपात्र लेकर घर लौटो।

स्‍टार प्‍लस ने अपनी न्‍याय व्‍यवस्‍था को भी नई राह दिखाई है। वह राह है स्‍वर्णपात्र बांटने की राह, देवी लक्ष्‍‍मी की राह। इस राह पर चलकर सत्‍य की आराधना कितनी आसान हो जाएगी। न्‍यायमूर्ति सच बोलने का पैसा देंगे तो अपराधी वह पैसा परिवार को सौंपकर निश्चिंत होकर जेल चला जाएगा। वह भी सरकारी पैसे पर जीयेगा, उसका परिवार भी सरकारी पैसे पर जीयेगा और न्‍यायालय में बरसों तक मुकदमें सुनने चलने का दौर भी तब समाप्‍त हो जाएगा। अब समाज है तो अपराध तो होंगे पर अपराधी उन्‍हें स्‍वर्णपात्र के बदले झटपट स्‍वीकार कर लेंगे। स्‍वर्णपात्र बालबच्‍चों को सौंपकर अपने नग्‍न चरित्र को जेल के पीछे ले जाएंगे। वहां कुछ दिन ‍भले बनकर सज़ा कम करवाकर फिर बालबच्‍चों में लौट आएंगे। यानी नंगे होकर जेल जाएंगे और सज़ा का तौलिया लपेटकर लौट आएंगेद्य उनके बालबच्‍चे ‍भूलें या न भूलें पर हमारा समाज तो उनकी नंगई कुछ दिनों में भूल ही जाएगा। तब वे अपना अगला नग्‍न सत्‍य लेकर टीवी पर आमंत्रित किए जाएंगे। जेलों और जेल में तौलियों की कमी नहीं है।

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

संस्‍कार देती औरतें

औरतें लड़ रही हैं और देश आगे बढ़ र‍हा है। औरतें ज़बान लड़ा रही हैं और देश आगे बढ़ रहा है। किस दिशा में बढ़ रहा है, बस यही मत पूछिये। आज देश में जो हो रहा है वह औरतों की वजह से ही हो रहा है। जो नहीं हो रहा है उसकी वजह भी औरतें ही हैं। इन दिनों औरतें जोश में हैं। जोश में प्राय: कोई होश में नहीं रहता, फिर ये तो औरते हैं। औरतें और वह भी यूपी की। करेला और नीम चढ़ा। यूपी में नारी राज है और नारी ही वहां नारी से नाराज है। यही वजह है कि नारियां पहले एकदूसरे से चिढ़ रही हैं और फिर भिड़ रही हैं।
अपनी कांग्रेस और अपनी बसपा दोनों ही नारीमय है। दोनों ही नारी अनुगता हैं। दोनों नारी नेतृत्‍व के पीछे हैं। सोनिया और माया तो केवल नाम हैं। दरअसल इन दलों में नारीनाम जहाज है। जो कोई इन जहाजों पे चढ़ गया समझ लो पार उतर गया। और जिस पर ये जहाज चढ़ गए समझ लो वे तो गर्क हुए ही हुए। यूपी में इन दिनों ये दोनों जहाज आमने सामने हैं। तीसरी तरफ मेनका है जो उबल रही है। कह रही है ''माया हटाओ, प्रतिभा लाओ''। माया की प्रतिमा नगरी में भूचाल है। लखनवीं सागर में सुनामी के अंदेशे हैं। सुनामी आ गई तो देशभर में बहुत कुछ डूबेगा। सोनिया की महिला सिपहसालार ने यूपी की रानी पर मुंहभर गुस्‍सा उगल दिया है, तो रानी के सिपाहियों ने उसका घर ही फूंक दिया है। यह घरफूंक तमाशा चालू हो गया है। देखिए अब और किस किस के घर फुंकते हैं।
कौवे हर युग में रहे हैं और कोयल भी। न वे किसी का कुछ छीनते रहे और ये किसी को कुछ देती रहीं। पर उनकी कांव कांव से कान हमेशा पकते रहे और इनकी कूक हमेशा दिल लुभाती रही। आज भी समाज में कौवे हैं और कोयल भी। पर हमारे प्रजातंत्र का सच अजीब है। कौवे तो कूकना सीखे नहीं कोयल अलबत्‍ता कांव कांव सीख गईं। इसीलिये यूपी में यह सब कुछ हो गया। हुआ वाणी की विद्रूपता के चलते।
''ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय, औरन कूं सीतल करे आपहूं सीतल होय''। ऐसा कहने वाले अब दुर्लभ हैं। कहते हैं जीभ में हड्डी नहीं होती। वह कभी भी कैसे भी घूम जाती है। ज़बान कभी चाशनी में पगी होती थी, मिसरी माखन की सगी होती थी पर वे दिन अब हवा हुए। मीठे वचनों का ज़माना लद गया। स्‍पाइसी यानी चरपरे का युग है। सुनकर मिर्ची न लगे तो कहनेवाले ने क्‍या ख़ाक कहा। ज़हरबुझी वाणी ही राजनीति की पहली सीढ़ी है। गाली और गोली का ज़माना है।
वे सत्‍ता में नहीं थीं तब ''तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार'' के नारे बुलंद होते थे। अब ये सत्‍ता में नहीं हें तो बलात्‍कार के मुआवजे पर भाषणबाजी हो रही है। कम इनमें कोई नहीं । ये अपनी अपनी पार्टी की संस्‍कारित सन्‍नरियां हैं। कहते हैं नारी संस्‍कारित होगी तो पीढि़यां संस्‍कारित होंगी। इन नारियों को देखो, इनके संस्‍कार देखो और अन्‍दाजा लगा लो कि राजनीतिक पीढि़यां कैसी आने वाली हैं आगे आगे।

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

इलैक्‍शन जीते बिना सांसदी

वे बेचारी तो शुद्ध भारतीय परम्‍परा का निर्वाह कर रही थीं पर उसी में धरी गईं। अब कोई  अपने शौहर का अनुगमन भी न करे तो क्‍या करे। आगे आगे शौहर गए, पीछे पीछे बेगम चली गईं और जाकर लोकसभा में उन कुर्सियों में से एक पर बिराज गईं जिन पर बैठकर माननीय सदस्‍य कार्रवाई में हिस्‍सा लेते हैं। बस, इतना ही किया था एक पति-अनुगता नारी ने। इसी पर खलबली मच गई और मार्शल की मार सहनी पड़ गई बेगम को। ये तो सरासर अन्‍याय है,  ज्‍़यादती है भाई।

जी, मामला अपनी इसी इकलौती लोकसभा का है। जिस रोज़ अपने प्रणव दादा बजट पेश कर रहे थे और सांसदों के साथ साथ सारे देश की सांस ऊपर-नीचे हो रही थी इसी वक्‍त लोकसभा के भीतर सुरक्षा के जि़म्‍मेदार मार्शल की सांस उखड़ने को हो रही थी यह जानकर कि कोई महिला संसद के भीतर घुसकर ही नहीं, बल्कि सांसद की कुर्सी पर बैठकर भीतर का तमाशा देख रही है। लोकसभाध्‍यक्ष की कुर्सी पर महिला बैठी तो सारा देश हर्षविह्वल हो उठा था, मार्शलों समेत। पर जब बजट वाले दिन एक महिला आकर सांसद की कुर्सी पर बैठ गई तो मार्शलों के शोकविह्वल होने की बारी आ गई। गड़बड़ाई सुरक्षा व्‍यवस्‍था में हड़बड़ाहट पैदा कर दी। मार्शलों की हालत ऐसी हो गई मानों कोर्टमार्शल का फैसला उनके खिलाफ जा रहा हो। मार्शल भागे महिला की तरफ जिसने बिना इलैक्‍शन जीते संसद की कुर्सी हथिया ली थी। एक तरफ घबराए मार्शल खड़े थे और दूसरी ओर परम शांत भाव से अपना वैनिटी पर्स संभाले बैठी अनिर्वाचित महिला। कुछ कहने की स्थिति नहीं थी। सारा दृश्‍य अनिर्वचनीय था। सुरक्षा व्‍यवस्‍था की बोलती बन्‍द थी। किसी को कुछ  पता भी नहीं था कि संसद में प्रणव दा के बजट भाषण के अलावा भी कुछ चल रहा है। अगली सीटों पर बैठे यूपीए व कांग्रेसी सांसद मेजें थप-थपाकर और भाजपा सहित एनडीए सांसद मुंह बिचकाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। पर जो सांसद उन अनिर्वाचित साहिबा के अगल बगल बैठे थे वे बिलकुल अवाक़ थे। एक अजाना भय और अव्‍यक्‍त संशय उन्‍हें घेरे था। कहीं इस महिला के पर्स में कोई बम-शम तो नहीं। प्रभु रक्षा करे।

पर सारा भय और सारा संशय हवा हो गया जब नाम पूछने और प्रवेशपत्र मांगने पर अनिर्वाचिता ने तपाक से एक पर्ची पर अपना नाम लिखा ''रुखैया बशीर'' और साथ ही परिचय पत्र मांगने पर दर्शकदीर्घा का प्रवेशपत्र मार्शल जी के हाथ में थमा दिया। देखकर मार्शल मियां ने चैन की सांस ली। अरे, ये तो अपनी भाभी जी हैं, यह कहते हुए आस-पड़ौस के सांसद  भी आश्‍वस्‍त हुए।

वे और कोई नहीं, केरल की पोन्‍नानी संसदीय सीट से निर्वाचित इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग़ के अपने सांसद ईटी मुहम्‍मद बशीर की बेगम थीं श्रीमती रुखैया बशीर। वे आईं तो थीं दर्शक दीर्घा से संसद की कार्रवाई देखने पर घुस गई मुख्‍य सभागार में और जम गई एक सीट पर।

अपनेराम का मानना है कि रुखैया भाभी का कोइ्र कसूर नहीं है। जिस देश में बिना कुछ किए अर्धांगिनी को पति के पदानुसार संबोधन मिल जाते हैं, जैसे मास्‍टर की बीबी मास्‍टरनी, पंडित की बीबी पंडितानी, थानेदार की बीबी थानेदारनी, धोबी की धोबन और नाई की नायन वगैरा वगैरा हो जाती हैं वहां सांसद की बीबी भी अगर कुछ देर को सांसद हो जाए तो किसी को कोई आपत्ति क्‍यों हो। जब पंचायतों में चुनी गई महिलाओं के पतिगण वहां घुसकर अपनी बीबियों की  जि़म्‍मेदारी निभाते हैं  तो संसद भी तो बड़ी पंचायत ही कहलाती है। वहां अगर भाभीजी आकर भाईसाहब की कुर्सी पर  बैठ जाएं तो क्‍या हर्ज है। आने वाले वक्‍त में तो वैसे भी 33 प्रतिशत भाईसाहबों की कुर्सियां भाभियों की ही तो होंगी। मार्शलों से निवेदन है कि वे कृपया अभी से भाभियों को पहचान लें।

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

कोर्ट ने दी असली आज़ादी

माननीय न्‍यायमूर्तियों ने ऐसा कुछ कर दिया है कि भाईलोग बड़े खुश हैं। कह रहे हैं कि देश को असली आज़ादी अब जाकर मिली है। 1947 वाली अब तक की आज़ादी तो आदमी को आदमी से और औरत को औरत से दूर कर रही थी। अब 63 वें साल में जो आजादी मिली है वह जाकर कहीं आदमी को आदमी के  तथा औरत को औरत के पास लाएगी। देश विकासशीलों की जगह  पूर्ण विकसितों की श्रेणी में आ जाएगा। और यह सब होगा माननीय न्‍यायमूर्तियों की कृपा से।

दरअसल यह देश चलता ही माननीय न्‍यायमूर्तियों के कारण है। जब अफ़सर और नेता, संसद और सरकारें कुछ नहीं कर पाते तब जो होता है वह माननीय न्‍यायमूर्तियों के हाथों ही होता है। वे सबको डांट फटकार लगाकर सीधा कर देते हैं। अब देखिए न कहने को देश स्‍वतंत्र है पर देश के नागरिकों को पूर्ण स्‍वतंत्रता है ही नहीं। पुरानी मान्‍यताओं, परम्‍पराओं और नैतिकताओं का हवाला देकर देश से विकसित होने के सारे मौके छीनने की कोशिशें लगातार जारी रहती हैं। हम महान बनते बनते रह जाते हैं।

पर यह पहला मौका है जब हमें माननीय न्‍यायमूर्तियों का आभार मानना चाहिए कि अब हम देश को अमेरिका, योरोप और  इंग्लैण्‍‍ड के समकक्ष ही नहीं उनसे आगे ले जाने के अवसर पा चुके हैं। वे दिन आ चुके हैं जब बेटियों के बाप दामाद ढूंडने के झंझट से मुक्ति पा जाएंगे। अब बहू ढूंढने की कसरत खत्‍म। यह ''मित्र-परिणयों'' का जमाना है। अब वैवाहिक निमंत्रणपत्र कुछ इस अदा से आया करेंगे :-

प्रियवर,

पूज्‍य न्‍यामूर्तियों के आशीर्वाद तथा जमाने की बदली हुई हवाओं के चिन्‍ताहारी असर के चलते हमारी सौभाग्‍याकांक्षिणी प्रिय पुत्री सुकुमारी ने अपनी डिस्‍को-सहेली सौभाग्‍यदायिनी कुमारी का सौभाग्‍य-चयन कर लिया है। कृपया इन दोनों के परस्‍पर मित्रवरण के मांगलिक अवसर पर आयोजित प्रीतिभोज में पधारकर हमारी बेटी और हमारी जंवाई बेटी को अपने आशीर्वादों से अलंकृत करें।

अब लड़कों के लड़कियां छेड़ने के दिन लद गए। अब तो लड़के लड़कों पर तथा लड़कियां लड़कियों पर सरेआम डोरे डाल सकेंगे, फब्तियां कस सकेंगे और उन्‍हें देखकर सीटी बजा सकेंगेा सारी फिल्‍मी दुनिया यानी अपने बॉलीवुड में न्‍यायमूर्तियों के इस नए फैसले से क्रांति के आसार हैं। निर्देशक निर्माता हिरोइनों के लिए और हीरो और हीरो के लिये हिरोइनें खोजने से बच जाएंगे। जिस निर्माता-निर्देशक के दो बेटे या दो बेटियां हुई उसकी फिल्‍म तो घर घर में बन जाएगी। पैसा भी बचेगा।

सामाजिक क्रांति होगी जिसमें ''आधी दुनिया'' ही पूरी दुनिया में तब्‍दील होगी। आदमियों की पूरी दुनिया और औरतों की पूरी दुनिया। जहां तक नई पीढि़यों के लिये चिन्‍ता प्रश्‍न है उस सिलसिले में भी जल्‍दी ही न्‍यायमूर्तियों के आदेश आ जांगे। उनमें सरकारों को आदेश होंगे कि वे हर शहर-गांव में ब्‍लडबैंक और पशुओं के हीमित वीर्य स्‍थात्र की तर्ज पर स्‍त्रीपुरुषों के भी लिये भी केन्‍द्र खोलें ताकि वक्‍तज़रूरत पड़ने पर वे केन्‍द्र परिवारों में इच्‍छानुसार बच्‍चे सप्‍लाई कर सकेंगे। विज्ञान चरमशीर्ष पर होगा तथा सामाजिक मान्‍यताओं का पारम्‍परिक ज्ञान आंखें फाड़ फाड़कर  उसे भौंचक देख रहा होगा।