शनिवार, 10 नवंबर 2007

शह और मात !!

सनातन है प्रकाश
अंधकार भी सनातन है,
फिर भी इन दोनों में
जाने क्या अनबन है।
टिक नहीं पाते दोनों
इक दूजे के आगे
पहला आए,
तो दूसरा भागे!
दोनों परस्पर
हताश हैं, निराश हैं,
यहॉं तक कि
एक दूसरे के लिए
मानों यमपाश हैं।

अब देखिए न-
प्रतापी सूरज की चाल
पड़ जाती है मद्धिम
पाकर हर शाम
रात के अँधियारे की आहट।
और
काला डरावना अँधेरा
हर भोर
हो जाता है रफूचक्कर,
जैसे ही मिलती है उसे
सूर्य किरणों की
सुगबुगाहट!
लेकिन यह भ्रम है,

उजास और अँधियार
सिर्फ दुश्मन लगे हैं।
सच तो यह है कि
दोनों एक दूसरे के
बेहद सगे हैं।

जैसे बन नहीं सकता
काले कैनवस पर
अँधेरे का चित्र,
ठीक वैसे ही
सफेद कैनवस
उभर नहीं सकतीं
रोशनी की किरणें।
अँधेरा ज़रूरी है
यह बताने को कि
रोशनी है
और रोशनी हो
तभी बिछ सकती है
अँधेरे की बिसात,
यही है
अँधेरे-उजाले की
शह और मात !!
- डॉ. कमलकान्‍त बुधकर

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया रचना है बधाई।

अँधेरा ज़रूरी है
यह बताने को कि
रोशनी है
और रोशनी हो
तभी बिछ सकती है
अँधेरे की बिसात,
यही है
अँधेरे-उजाले की
शह और मात !!

बेनामी ने कहा…

sach hai
jab tak chalegi andhere aur ujale ki yeh sheh aur maat
tabhi tak rahegi yeh aas
ki
har bitati raatlayegi ek nayi subah ek nayi ujas
bhai ne har baar ki tarah is baar bhi de di ujaas parva ko ek nayi aas
akhil mittal