गुरुवार, 20 अगस्त 2009

शूकरताप से ग्रस्‍त भाजपा

सारे देश में शूकरताप क्‍या फैला अपनी भाजपा भी उसके चपेट में आ गई लगती है। पुणे, बैंगलोर के बाद अब शिमला चपेट में है। पर शिमला में खैरियत ये है कि वहां तापित केवल भाजपा है शेष शहर नहीं। लौहपुरुषों की अपनी यह पार्टी शापग्रस्‍त तो पहले ही हो चुकी थी, अब बुरी तरह तापग्रस्‍त भी हो गई है। ताप भी ऐसा जो बड़े बड़ों की बलि लेने पर उतारू दीख रहा है। जसवंत के 'जस' की बलि तो वह ले ही चुका है। देश में तो यह ताप विदेशों से आयातित है पर पार्टी में यह ताप ज्‍यादातर राजस्‍थान से आ रहा है।

ताप की शुरुआत तभी हो गई थी जब कांग्रेसी शेखावत ने भाजपाई शेखावत को पराजित किया था। भाजपाई शेखावत की खुन्‍नस ने भाजपा में जो वायरल फैलाया उसकी परिणति अब शिमला की हसीन वादियों तक फैल चुकी है। राजस्‍थान की ही वीरांगना वसुन्‍धरा को धरा दिखाने के बाद जसवंत का जस लीलने के फैसले से पार्टी में हड़कंप तो है पर य‍ह दोहरा है। कंपाने वाले खुद भी कांप रहे हैं। बैठक चिंतन के लिए चलनी थी पर चिंता में तब्‍दील हो रही है। चिंता के साथ जैतली जैसों का गुस्‍सा उबाल पर है क्‍योंकि पिछली बड़ी हार के लिए आई रिपोर्ट में वे ही नहीं, बड़े लौहपुरुष और छोटे लौहपुरुष दोनों जि़म्‍मेदार बताए गए हैं। अब बड़े लौहपुरुघ तो चुप्‍पी साध गए हैं और छोटे लौहपुरुष ने जसवंत की किताब पर पाबंदी लगाकर ध्‍याान बांटन की कोशिश की है। पर युवा जैतली के वकालती बयान तो आग उबल ही रहे हैं। इसी आग की तपिश शूकरताप में तब्‍दील होती जा रही है।

चिंता का सबसे बड़ा विषय फिलवक्‍त पड़ौसियों के बाबा-ए-क़ौम मियां जिन्‍ना हैं। इकसठ बरस पहले जन्‍नतनशीन हुए जिन्‍ना साहब का जिन्‍न एक बार फिर भाजपा पर हावी हो गया है। इस बार इस जिन्‍न ने बलि भी ले ली है। जसवंतसिंह 'सिंह' थे पर जिन्‍ना के भूत ने उनके 'सिंहत्‍व' का हरण करके उन्‍हें पार्टी में मेमना बनाकर छोड़ दिया है।

जसवंत और उनके शुभचिंतकों को यही खुन्‍नस है कि पार्टी के लौहपुरुष ने जिन्‍ना की मज़ार पर माथा टेका तो पार्टी ने उनकी थोड़ी बहुत लानत-मलामत करके उन्‍हें फिर पार्टी की कमान सौंप दी। पर जसवंत ने उसी जिन्‍ना पर कलम चलाई तो पार्टी ने उनकी दहाड़ को मिमियाने में तब्‍दील करने की ठान ली। भीतरी लोकतंद्त्र को भी दरकिनार करके उनसे स्‍पष्‍टीकरण तक मांगे बगैर बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। ये अत्‍याचार है।

हालांकि जबान खोलने पर अत्‍याचार पार्टी में नया नहीं है। खुराना, उमा भारती, गोविन्‍दाचार्य, अरुण जेतली, यशवंतसिंह, अरुण शौरी, वसुन्‍धरा राजे, आदि अनेक नाम हैं जिन्‍होंने भाजपा को समय समय पर सिरदर्द दिया है और अब भी दे रहे हैं। पर संसद में कभी 'आउटस्‍ंटैंडिंग पार्लियामेंटेरियन' का खिताब पाने वाले जसवंत सिंह इस बार अपनी ही किताब की बलि चढ़ा दिए गए हैं। पार्टी ने चिंतन बैठक में पहुंचे इस 'आउटस्‍ंटैंडिंग पार्लियामेंटेरियन' को बैठक में घुसने ही नहीं दिया गया। कह दिया--''प्‍लीज़ स्‍टैंड आउट साइड''। इसमें भी बढ़चढ़कर निकले गुजरात के छोटे लौहपुरुषा उन्‍होंने आगेबढ़कर विचारों पर पाबन्‍दी लगाते हुए जसवंत की पुस्‍तक को ही गुजरात की सीमाओं में घुसने से रोक दिया है। आदमी पार्टी से बाहर और उसके विचार भौगोलिक सीमाओं से बाहर। यही है सच्‍चा लोकतंत्र।

पर अब क्‍या होगा, ख़ासकर वसुंधरा का। राजनाथ ने जसवंत को तो ऐसा नाथा कि राजनीतिक अनाथ कर दिया। क्‍या अब वसुंधरा की बारी है। अगर ऐसा हुआ तो राजस्‍थान के वीर-वीरांगनाएं कब तक राजनाथ को नाथ मानेंगे।

1 टिप्पणी:

अजित वडनेरकर ने कहा…

अतीतजीवियों का जमघट...आखिर और क्या होगा यहां ?