शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

सारा देश मवेशी है

धन्‍यवाद कृष्‍णा जी, शुक्रिया थरूर जी। हम आभारी हैं अपने इन माननीय केन्‍द्रीय मंत्रियों के जिनके कारण इस देश को अचानक सादगी याद आ गई है। न ये माननीय मंत्रिगण पंचतारा होटलों में रहते और ना ही मीडिया में उनके विलास-विश्राम की चर्चाएं होती। न विलास-विश्राम की चर्चा होती और ना ही ग़रीब देश के अमीर मंत्रियों को सादगी की नसीहत दी जाती। अब बेचारे जबरिया सादगी झेल रहे हैं।

यूं  देश को तो पता है कि देश में कौन कितने पानी में है। कौन पंचतारा में रहने वाले हैं और कौन गली-मौहल्‍लों में डोलते-फिरने वाले हैं। लेकिन कांग्रेस की सर्वाम्‍मा को शायद पहली  बार पता चला कि उनकी मनमोहनी-सरकार के  मंत्रिगणों के क्‍या ठाठ हैं। माननीयों को सरकारी आवास नहीं मिले तो अतिथिगृह भी नज़र नहीं आए। हाई-फाई मंत्रालयों के इन 'बॉसेस' को यह बुरा लगा कि भारत सरकार के मंत्री होकर वे सामान्‍य अतिथिशालाओं में रहें। दुनिया क्‍या कहेगी। देश में महामहिम राज्‍यपाल और संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ में अपर महासचिव जैसे महिमाशाली पदों पर रह चुके इन मान्‍यवरों के लिये ये सरकारी व्‍यवस्‍थाएं बड़ी लचर थीं। इसीलिये देश के स्‍वाभिमान और अपने अभिमान की सुरक्षा के लिये भाईलोग सीधे पंचतारा होटलों में रहने चले गए। पर जैसे ही सर्वाम्‍मा को पता चला फौरन सर्कुलर जारी हो गए कि खर्चों में कटौती की जाए। फालतू खर्चों से बचा जाए और मंत्रिगण हवाई यात्राएं भी इकॉनॉमी क्‍लास में किया करें।

अब पंचतारा छोड़ने तक तो बात सहनीय थी पर हवाई यात्राएं इकॉनॉमी क्‍लास में। भई ये तो ज्‍़यादती की हद है। ज्‍़यादती की भी ज्‍़यादती। मंत्रिवर  ने तुरंत फतवा जारी कर दिया कि इकॉनॉमी क्‍लास तो कैटल क्‍लास होती है। यानी साधारण श्रेणी में यात्रा करना मवेशियों के रेवड़ में सफ़र करना है। बात बिलकुल वाजिब है। भारतवर्ष का मंत्री औरनज़र आता हैा रेवड़ में चले। बिलकुल मुनासिब नहीं है। ये और बात है कि मवेशियों का रेवड़ कहलाने वाली जनता ही अपने बीच से साण्‍‍डों को चुनकर राजधानी भेजती है । फिर ये चरवाहे बनकर मवेशियों को हांकते हैं।

मुश्किल तब आती है जब चरवाहे मवेशियों से खुद को अलग जाति-गोत्र का समझकर उन्‍हें पालने की जगह हांकने लगते हैं। सारा देश इन्‍हें मवेशी आता है और ये और ये चरवाहे अपने मवेशियों का चारा तक चट करने लगते हैं। बहरहाल सर्वाम्‍मा ने चरवाहों पर लगाम लगाई तो उनका अपना बछड़ा भी कटौती की ज़द में आ गया। राहुल भैया ने खर्च में कटौती के चलते राधानी एक्‍सप्रैस कैटल-क्‍लास में यात्रा कर डाली। उनकी इस सादगी पर पत्‍थर पड़ गए।  जितने पैसे टिकट में बचाए उससे कई गुना ज्‍़यादा के रेल के शीशे तुड़वा दिए। लो कल्‍लो  बचत। राहुल की रेलगाड़ी पर किसने पत्‍थर मारे, क्‍यों मारे, किसके इशारे पर मारे, उसका इरादा क्‍या था और उस गाड़ी पर क्‍या पत्‍थर पड़ते ही रहते हैं। इन सब प्रश्‍नों के उत्‍तर जानने के लिये एजेंसियां सक्रिय हो गई हैं। उनकी कवायद पर होने वाले खर्चें राहुल भैया की रेलयात्रा के खर्चे को भले ही कई स्‍टेशन पीछे छोड़ दें पर इस देश की सादगी पर दाग़ नहीं लगना चाहिए।

 

4 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सटीक मार लगाईं आपने इन मवेशियों (मेरा मतलब देश के कर्णधार) को ! सादगी नाम तो बहुत छोटा है इसलिए इन्होने अपने उस बहकाऊ प्रचार के दौरान सादगी शब्द का कम और औस्तैरिटी शब्द का इस्तेमाल ज्यादा किया, जिसका शाब्दिक अर्थ हुआ तपस्या, त्याग ! कितनी हास्यास्पद बात है कि ये बिजिनेस क्लास में सफ़र करने वाले मवेशी अब देश के लिए त्याग करने की इच्छा रखते है !

अजित वडनेरकर ने कहा…

हिन्दुस्तान तो वैसे भी गोपालकों का है। सबै भूमि गोपाल की। समूचा उत्तर भारत काऊबैल्ट कहलाता है।
श्री एमएस कृष्णा और श्री थरूर की सुकुमारता उन्हें किशनमुरारी बनाती है सो वे अगर एग्जीक्यूटिव क्लास के गगन विहारी ही बने रहना चाहते हैं तो इसमें उनका दोष नहीं।

श्यामल सुमन ने कहा…

ऐसी सदगी पे कौन न मर जाय? अच्छी प्रस्तुति आपकी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

vikas ने कहा…

aapki tippadi to bahut acchi hai. mujhe pata laga ap haridwar se hain, to haridwar ki is samay ki durdasha pe kuch likhiye, aap ko to bhalibhanti malum hai, Mela prashashan,dhundh-dhundh ke jo sadak acchi najar aayi usse khod rahi hain, ab khodne mein saal bhar beet gaya , shayad bharne mein agla 2022 ka kumbh aa jayega.