चुनावों में किये जाने वाले वादो से सारा देश परिचित है। तरह तरह के उम्मीदवार तरह तरह के वादे करते नज़र आते हैं। कोई मकान का वादा करता है तो कोई बिजली का। कोई सड़कों की बात करता है तो कोई साफ पानी का वादा करता है। वोटर इन वादों पर यकीन करके उम्मीदवार को जिताता है और फिर पांच बरस टापता रहता है यह सारा देश जानता है। पर इस बार दावे भी नए हैं और वादे भी। अगर कुंवारों को बीबियां चाहिए तो वोट देना होगा। यह खबर अपने हरयाणे से आई है। खबर बिलकुल पक्की है। वहां इन दिनों आम चुनावों का माहौल है। नाम ही हैं आम चुनावों का वरना सच तो यह है कि हरयाणे के चुनाव तो हमेशा ही खास होते हैं। इस बार की खासियत छनकर ये आई कि कई इलाकों में प्रत्याशीगण कुंवारों को लड़कियां दिलवाने के वादे कर रहे हैं। बेटों के मां-बाप खुश हैं। उन्हें अब यकीन है कि उनके घर बहू आ जाएगी। भाभी की इन्तज़ार करने वाले देवरगण और ननन्दों की जमातों में हर्ष है। और दूल्हे तो भयंकर प्रसन्न हैं। उनके घर बसने को हैं।
यह देश सचमुच विविध भारती है। विविधता भी यहां की विरोधाभासी है। एक तरफ नारी मुक्ति की हलचलें और दूसरी ओर समाज को नारी से ही मुक्त करने के षड्यंत्र। अजब विविधता है इस विविध भारती में। यह विविधता ही इसे तारती है और यही विविधता ही इसे मारती है। यह देश जिस काम को हाथ में लेता है उसे पूरा करके छोड़ता है। अब इक्कीसवीं सदी में यह अजब विरोधाभास इसी देश में संभव है कि लोग बेटियां न पैदा होने दें और बीबीयों के तलाश में उनके बेटे अपने वोट बेचने को मजबूर हों ।
इन दिनों एक चैनल पर हरयाणे की एक अम्माजी छाई हुई हैं। अम्माजी हैं तो खुद भी औरत ही पर अपने गांव बीरपुर की औरतों और लड़कियों के सख्त खिलाफ़ हैं। इस बात का पूरा ध्यान रखती हैं कि कोई छोरी पैदा ना ना जाए उनके गांव में। यहां तक उनकी देवरानी की लड़की झूमर भी उनके घर में इसलिये पल-बढ़ गई कि उसे बाहर गांव से आई नौकरानी की बेटी बताया गया।
तो भाईलोगों, ऐसे हरयाणे से समाचार कुछ ये आरहे हैं कि वहां अब छोरियों का टोटा पड़ गया है। छोरे ज्यादा हो गए हैं और छोरियां समाज से नदारद होती जा रही हैं। ये मामला अब चुनावी मुद्दा बन गया है। अब वहां के कुंवारे कुलदीपक चुनावी उम्मीदवारों से रोटी, कपड़ा या मकान, बिजली, सड़क, पानी की जगह लड़कियां मांग रहे हैं। वे बेचारे करें भी क्या। घर ही नहीं बसेगा तो बाकी चीजों का क्या करेंगे। घरवाली के बगैर घर का क्या मतलब। सरकार गेहूं-चावल का जुगाड़ कर भी दे तो क्या। रोटी पकाने वाली ही न मिले तो जि़न्दगी बेकार है। मुश्किल यह भी है कि अगर जात बाहर की छोरी पसंद आ जावे तो गांवों की, बिरादरी की पंचायतें बवाल कर दें। जीने ना दें छोरे-छोरियों को। अब तो एक ही लोकतांत्रिक रास्ता बचा है नई पीढ़ी के सामने। छोरी दिलाओ वोट ले जाओ। ये मुहिम दोनों तरफ से जोर से चल रही है। उम्मीदवार कह रहे हैं वोट दो तो छोरी दिलाएंगे। वोटर कह रहे हैं छोरी दिलाओ तो वोट ले जाओ।
6 टिप्पणियां:
बढिया है. परन्तु ये छोरियां आयात कहां से की जाएंगी?
घुघूती बासूती
Agar aur padh liya apko to pyar ho jayega aapse.
Ramakant Sharma.
मस्त पोस्ट है। फेसबुक पर इसे तीन लोगों ने पसंद किया है:)
गुरुदेव,
आपने सवाल अच्छा उठाया है लेकिन साथ में कुछ समाधान भी बता देते हो ज्यादा अच्छा रहता.. मुझे ये पोस्ट पढ़ के पता नही क्यों हरियाणा सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग के विज्ञापन याद आ रहे है.."ऐसा पहली बार हुआ है ...और नंबर १ हरियाणा आदि-आदि जोकि आचार सहिंता लागु होने पहले खूब दिखे थे...
डॉ.अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
jab vijatiy shadi me baval hai to vadhu kaha se aayegi kyoki vaha keval beej hi beej hai dhrti to hai hi nahi?ab bhi jago kanyao ko is dhrti par na aane dene valo .
achhi post .
abhar
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