गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

पहले दूल्हा बनें फिर पीएम

राजनीतिक दुश्मनी बड़ी दूर तलक जाती है, बहुत गहरे तक उतरती है। इस बात का खयाल रखा जाता है कि कोई दोनों के बीच तुलना के कोई बिन्दु तक न खोज सके। अब कांग्रेस को इस बात का पूरा अहसास है कि लोग उसे भाजपा का पिछलग्गू न कहें सो इंदिरामुखी प्रियंका बहन ने पहले ही ऐलान कर दिया है... राहुल भैया पहले दूल्हा बनें फिर पीएम। यह खानदानी और युवा कांग्रेसन नहीं चाहती कि कांग्रेस में कोई अटल बिहारी पैदा भी हो! कल को भाजपा कहती न फिरे कि कुंवारा प्रधानमंत्री देने की परम्परा तो भाजपा की है। कांग्रेस ने हमारी परम्परा चुरा ली।
    इंदिरामुखी प्रियंका इंदिरा जितनी कूटनीतिक भी है। जो बात बरसों से उसकी इतालवी मां मन में छिपाए बैठी है उसे बहना ने सहज ही प्रकट कर दिया। राहुल को प्रधानमंत्री तो बनना ही है, पर पहले वह दूल्हा बन ले। वरना इंदिरा के पोते के लिए, बल्कि वरूण का नाम भी जोड़ लें तो कहें, पोतों के लिए ही लड़+कियां ढूंढना कठिन हो रहा है तो प्रधानमंत्री के पुत्र और प्रधानमंत्री के ही पौत्र खुद एक प्रधानमंत्री के लिए लड़की ढूंढने के लिए पंडितों के कई पैनल्स कम पड़ जाएंगे।
    प्रियंका ने अपनी राजनीतिक चातुरी से कमसे कम अपनेराम का तो मन मोह लिया है। भैया का नाम पीएम के रूप में लेकर उसने अपने और विरोधी दोनों दलों को संकेत दे दिये हैं। उसके संकेतो में एक तो यह है कि राहुल पीएम हो सकते हैं। दूसरे यह कि अगर राहुल नहीं तो मेरा चेहरा तो दादी इंदिरा से मिलता है।
    पहले विवाह के कई कारणों में एक यह भी है। इसकी कोई गारंटी नहीं है कि पीएम बन जाने के बाद एसपीजी वाले भैया की बारात में ठुमका भी लगाने देंगे या नहीं। राजा की आएगी बारात गाने के दिन गए। अब तो राजा जेड सिक्योरिटी में ससुराल पहुंचेगा। उससे भी पहले पहुंचेंगे उसके ‘सूंघू कुत्ते’। क्या दृश्य होगा। सास दरवाजे पर आरता सजाए खड़ी है अपनी बहूओं-बेटियों के साथ और एसपीजी के स्नफ डाॅग्ज की टोली आरते का थाल संूघ रही हैं। दूल्हे से पहले गवर्नमेंट टेस्टर का मुंह मीठा कराया जा रहा है। दुल्हन की जयमाला पहले मेटल डिटेक्टर को पहनाई जा रही है। बारात वाले दूल्हन के घर में घुसने के लिए डिटेक्टर डोर के आगे खड़े उबासियां ले रहे हैं। लाइनें लम्बी हैं। स्वागत करने वाले डिटेक्टर डोर के पार हैं। बीबी बच्चें की रात काली हो रही है। बीबी कोस रही है क्योंकि ण्क घण्टे से हम एक ही जगह खड़े हैं और घण्टे भर से उसी जगह ड्यूटी दे रहा एक मुच्छड़ पुलिसिया उसे घूूरे जा रहा है। गुस्सा तो बहुत आ रहा है। पर करें क्या। हमारे हाईकमान की शादी है। हम पार्टी के अनुशासन में बंधे हैं। अगली बार के चुनावों के लिए  हम टिकट की लाइन में सबसे आगे हैं। अगर बारात की लाइन में हंगामा किया तो टिकट की लाइन में पता नहीं कहां होंगे। इसीलिये फिलहाल न कुछ कह सकते हैं और न कर सकते हैं। आखिर हमारे पीएम की शादी है। दूर कहीं रेकाॅर्ड बज रहा है....राजा की आएगी बारात, रंगीली होगी रात।
    अब रातें रंगीन करने के लिए लोग पूरे इन्तजामात करेंगे ही। घर से लानी पड़ी तो लाएंगे। फिर अगर वह चढ़ गई तो पब्लिक में पीएम का ग्राफ उतरने में  देर नहीं लगेगी। सो राहुल भैया सब सोच समझकर ही बहना कह रही है। पहले उसे भाभी ला दो। पहले दूल्हा बनो फिर पीएम।
    आइये राखी भैयादूज बहुत हो गई। दलदली बातें भी होती ही रहती हैं। अब ज+रा निर्दली बातें भी कर लें। हमारी एक ब्लाॅगर बहनजी हैं डाॅ. कविता वाचक्नवी। उन्होंने कल ही कुछ मज+ेदार जानकारियां भेेजी हैं। आइये शेअर करें। हमारे प्यारे भारतवर्ष में अब तक जितनें चुनाव हुए हैं उनमें  इस वक्त हो रहे चुनावों को छोड़ दें तो कुल 37,440 निर्दलीय उम्मीदवारों नें चुनाव लडा और 36,573 अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। बचे हुओं में से 214 विभिन्न लोकसभाओं में सांसद चुने गए और 653 अपनी जमानत राशि पापिस ले जाने में कामयाब रहे। जो दिग्गज निर्दलीय रूप में लोकसभा में बिराजे उनमें सबसे  बड़ा नाम दहलतों के मसीहा बाबासाहब अम्बेडकर का है। वे चाहते तो बहुजन समाज को तभी एकत्र कर लेते कांशीराम-मायावती की भूमिका में उतरकर सर्वप्रिय सर्वजन नेता बन जाते। अस्तु।
    अब अपने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने मुम्बई में यह कह दिया कि निदलियों को वोट मत दो तो कुछेक निर्दली बिफर गए। एबीएन आमरो बैंक की भारत प्रमुख मीरा सान्याल, सुप्रसिद्ध नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई, एयर डेक्कन के मालिक गोपीनाथ, कांग्रेसी सिपहसालार अर्जुनसिंह की अपनी बटी बीना सिंह, और तो और जदयू के ही नहीं भारतीय राजनीति के बड़के नेता रहे अपने जाॅर्ज फर्नांडीज जैसे दिग्गजों को भी पार्टियों ने अपनी उम्मीदवारी के लायक नहीं समझा है। क्या वे जनता के वोट के काबिल बन पाएंगे।

2 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

कुछ भी कहें, निर्दलियों की भूमिका सकारात्मक कभी नहीं हो सकती।

Dr.Ajit ने कहा…

गुरुदेव, कांग्रेस परिवार की पीडा और यथास्थितिवादी परम्परा को बहुत रोचक ढंग से लिखा आपने आजके राजनीतिक हालत में कुछ अपेक्षा करना व्यर्थ ही होगा...
डॉ.अजीत