महाकुम्भ के शाही स्नान की बतर्ज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का चौथा चुनावी महास्नान संपन्न हो गया। अब आखरी शाही स्नान बचा है और फिर सिंहासन बत्तीसी शुरूा । अब तक जितने नहाए, करीब करीब उतने ही बिना नहाए रह गए। कहीं नहानं पर मारकाट हुई तो कहीं न नहाने देने पर। दलों की शाही सवारियों ने समां बांधा तो निर्दली उनसे भी आगे दौड़ते नजर आए। जिन्हें दल से टिकट नहीं मिला वे भी दिल से मैदान में उतरे। देश मानता रहा है कि धरतीपकड़ जैसे जिद्दी लोग ही बतौर सनक हर चुनाव में चर्चित होते हैं। उनके बगैर चुनावों का आनन्द भी अधूरा है। बरेली के काका जोगिन्दरसिंह और ग्वालियर के मदनलाल धरतीपकड़ को लोग अब तक भूले नहीं हैं।
पर इस बार तो बड़े बड़े धाकड़ों को ‘चुनावेरिया’ हुआ है। प्रधानमंत्री मलमोहन सिंह ने निर्दलीय प्रत्त्याशियों को वोट न देने की अपील क्या कर दी निर्दलीय मारे गुस्से के बेकाबू हो गए। दल ने टिकट नहीं दिया तो लोग दिल से चुनाव मैदान में कूद पड़े। अब अपनी नृत्यांगना मल्लिका साराभाई को ही लें। किसी दल ने चुनावी मंच पर नाचने लायक न समझा तो वे हार-सिंगार करके घुंघरू बांधकर खुद ही गांधीनगर के चुनावी मंच पर उतर आईं । उन्होंने जता दिया कि कोई आंगन उनके लिए टेड़ा नहीं है और हर आंगन में वे नाच सकती हैं।
एयर डेक्कन के मालिक गोपीनाथ हवा में उड़ते-उड़ाते अचानक दक्षिण बंगलुरु से चुनावी धरती पर आ खड़े हुए। एबीएन की भारत प्रमुख मीरा सान्याल ने कांग्रेस के मिलिंद देवड़ा के मुकाबले निर्दलीय बनकर मुम्बई में चुनाव लड़ लिया। नतीजे चाहे जो हों पर जब जेल में रहते लाखों मतों से जीतने वाले पराक्रमी राजनेता जॉर्ज फर्नाण्डीज को उनके अपने दल ने खारिज कर दिया तो वे बेचारे चुनावी खारिश मिटाने निर्दलीय खड़े हो गए। यूं निर्दलियों का इतिहास बुरा भी नहीं है। इतिहास गवाह है कि बाबा साहब अम्बेडकर, भैरोंसिह शेखावत, झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे मधु कौड़ा आदि करीब आजादी के बाद से अब तक 214 लोग निर्दलीय जीते और सदन की शोभा बने हैं।
पर यह तय है कि चुनावों के दिन कुम्भ स्नान से कम रोचक नहीं होते। लोग हाथी घोड़ों, रथों, बग्घियों पर ही नहीं गधे तक पर बैठकर प्रदर्शन करने में शान समझते हैं। चुनाव के दिनों में शिवजी की बारात का समां बंधता है और उससे जुड़ा बन्दा बूटी छानकर मस्ती में डोलता है।
चूंकि चुनाव से जुड़ी हर बात खबर होती है सो दूल्हा दुल्हन को दुल्हन दूल्हे को माला पहनाने से पहले मतदान केन्द्र पहुंचकर मीडिया को फुटेज देते हैं। लेकिन सारी बारात जब मतदान केन्द्र पर हो और दूल्हे का नाम मतदान सूची में न हो तो फिर समाचार बनता है।
हमारे चुनाव आयोग के मुखिया चावला जी बेचारे पप्पू बन गए अपनी ही मशीनरी के कारण। सारे देश में मतदान करवाने वाले का खुद का नाम मतदानसूची से नदारद था। केन्द्र और बूथ तलाशे गए। बीस बाईस सूचियां खंगाली गई पर चावला जी का नाम नहीं मिलना था सो नहीं मिला। लोकतंत्र एक बार फिर मजबूत हुआ। बड़े और छोटे का फर्क मिटा। अगर कलुए का नाम सूची से गायब था तो उसे अब अफसोस नहीं है। उसका ही नहीं चावला जी का नाम भी सूची में नहीं है।
लोकतंत्र इसीलिए महान है क्योंकि इसमें एक दिन के लिए ही सही महामहिमों को भी लाइन में लगना पड़ता है। ये अलग बात है कि उनकी फोटू छपती है अगले दिन अखबार में और अपनेराम यह बताकर ही खुश हैं कि महामहिम के बाद सत्रहवें नंबर पर अपुन ही थे।
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