कभी लगता है कि औरतें उनके पीछे पड़ गईं हैं। पर अगले ही पल वे औरतों के पीछे पड़ते नजर आने लगते हैं। जब भी औरतों को एक तिहाई तवज्जो देने की बात उठती है तो वे सेंटी हो जाते हैं। महिला आरक्षण की बात उठते ही पता नहीं क्यों वे खुद उठ खड़े होते हैं। उनकी मुलायमियत सहसा कठोरता में तब्दील हो जाती है। उनकी वाणी चीख-पुकार करने लगती है। उनके सुर में सुर मिलाते हुए लालू-मुलायम-पासवान वगैरह का आर्केस्ट्रा बज उठता है। एक साथ, एक तर्ज, एक धुन- ‘बिल इस काबिल ही नहीं कि पास किया जाए।’ इस बार तो इस आर्केस्ट्रा को धुर विरोधी सुर यानी भाजपाई भी अपने सुरों से सजा रहे हैं। कटियार की कटार भाजपा के दिल को चीरकर बिल को नाकाबिल बता रही है।
मुलायम का दर्द समझ में आता है। एक अकेली गजस्वामिनी गजगामिनी ने उन्हें नाकों चने चबवा रखें हैं यूपी में। मुलायम डाल डाल तो वह पात पात। अपने नेताजी का कैरियर भी गतौर अध्यापक शुरू हुआ था और बहनजी का भी। दोनों जाति-पांति के रथ पर सवार होकर राजमार्ग पर बढ़े पर जो तरक्की बहनजी ने की वह नेताजी सोच भी नहीं पाए। क्या नहीं है बहनजी के पास? आधा अरब की जमीनें, भवन, बंगले, कोठियां, लाखों के हीरे जवाहर, गहने, और अब सवारी के लिये 46 करोड़ का उड़न खटोला। सबसे बड़ी बात तो यह है कि लोगों ने उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाने की चर्चाएं भी चला दीं। अपने नेताजी समेत सारे यदुवंशी इस चर्चा तक के लिए तरस गए।
यूपी में बहनजी और उधर दिल्ली में कांग्रेस की सर्वाम्मा पहले ही सत्ता पर कुण्डली मारे बैठी हैं। अब अगर राजनीति के एक तिहाई दरवाजे देवियों के लिये खुल गए तो फिर नेताजी का क्या होगा। हाल-फिलहाल तो मुम्बई से आयातित देवियों, जयाओं और जयप्रदाओं से काम चल रहा है पर बाद में इतनी बड़ी संख्या में तो इम्पोर्टिंग भी कठिन होगी। और फिर एक जयप्रदा ने ही जब आजम को नाराज करवा दिया है तो एक तिहाई देवियां मिलकर सारा आलम नाराज करवा देंगी। इधर तो कोई राबड़ी भी नहीं है कि वक्त-जरूरत राजपाट संभाल लेगी। पर जिनके पास राबड़ी है, उनकी भी चाल ढीली है इस बार। वे भी तो कुछ कम आशंकित नहीं हैं।
राजद, सपा, जदयू के सारे यादव आशंकित हैं। यूं कहने को ये सब उस यदुवंशी कन्हैया के खानदानी हैं जिन्होंने सोलह हज+ार एक सौ आठ देवियों का उद्धार किया था। पर ये सब सिर्फ पौने दो सौ देवियों के संसद-प्रवेश की आशंका से भयभीत हैं। कह रहे हैं कि पहले दलों में महिला आरक्षण लाओ। फिर संसद में लाना। अब अपनेराम की समझ में यह नहीं आ रहा है कि ये सब अपने अपने दलों के अध्यक्षगण हैं। खुद ही क्यों नहीं ले आते अपने अपने दल में महिला आरक्षण ? अब नहीं ला रहे हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि या तो ये लोग महिलाओं को इस योग्य मानते ही नहीं या फिर उनके दलों में और समर्थकों में इतनी महिलाएं हैं ही नहीं।
लेकिन ये भाईलोग विरोध करते आ रहे हैं और औरते हैं कि संसद की सीटें हथियाती जा रही हैं। केन्द्र में मंत्री बनना तो अब सपना है ही, मुख्यमंत्री बनना भी मुश्किल होता जा रहा है। इसलिये अब एकमात्र हथियार खुद को बचाए रखने का है चर्चा में बने रहना और उसके लिए औरतों का विरोध करने से मुफीद और कोई तरीका नहीं है। मर्दानगी जताने का प्राचीन भारतीय तरीका है औरतों का विरोध। भाई लोग वही कर रहे हैं। कोई इसका बुरा न मानें।
शुक्रवार, 12 जून 2009
यही मर्दानगी है
लेखक डॉ. कमलकांत बुधकर पर 2:22 am
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3 टिप्पणियां:
मर्दानगी जताने का बहुत सॉलिड तरीका है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Bahut sahi kaha aapne....Ekdam Lajawaab !!!
achha kaha saaheb !
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