गुरुवार, 18 जून 2009

इस्तीफों की बहार !

इस्तीफों की बहार !
अपनी अति अनुशासित और अति राष्ट्रवादी पार्टी में इन दिनों इस्तीफों की बहार है। बड़े बड़े लोग दनादन इस्तीफे देकर बाहर हैं। लालभाई पर लाल-पीले होने वालों की नफरी में लगातार बढ़ोत्री हो रही है। लालभाई जैसे भीष्म तो अब चुप हैं पर उनके नाते-रिश्तेदार ही अब पार्टी पराजय की आड़ लेकर उन्हें शर-शैया पर लिटाने को बेचैन हैं। दिल्ली से देहरादून तक की हवाओं में बगावती की गंध घुल गई है। वहां भी सेनापति भुवन पर भगत भारी हो रहे हैं। घबराकर उत्तराखंड में तो कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई की कटार चल पड़ी है। पर दिल्ली फिलहाल सकते में है, सन्निपात झेल रही है। कहीं कोमा में न चली जाए इसके लिए नागपुर से भागवती-प्रयास आरम्भ हो चुके हैं।
अपनेराम का मानना है कि यह सब जिन्ना के भूत का कमाल है। पड़ौसी देश के बाबा-ए-कौम की समाधि पर सिजदे के वक्त कायदे-आजम का भूत अपने लालभाई के कंधे पर कुछ इस कायदे से चढ़ बैठा था कि अब तक उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। कायदे आजम के उस भूत ने पहले तो दल में ही नहीं देश-दुनिया में अभिनन्दित लालभाई को बुरी तरह निन्दित करने का काम किया। फिर जब उस निन्दा-प्रचार में कमी आई तो कायदे-आजम के भूत ने लालभाई को वायदे-आजम बना डाला। वह उनके मन में भारत का भावी प्रधानमंत्री बनकर घुस गया। नतीजा यह निकला कि हमारे लालभाई पीएम इन वेटिंग यानी को जनाबे इन्तजार  अली बन गए। उनके साथ  उनकी सारी जमात ‘मजबूत नेतृत्व और निर्णायक सरकार’ की प्रतीक्षा करने लगी। 
पर मनहूस सोलह मई के दिन देश ने सारी ताकत लालभाई जैसे लौहपुरुष की जगह दुबारा कमजोर मनमोहन को दे दी। देश ने सोचा लालभाई तो मजबूत हैं ही, पहले से घोषित लौहपुरुष हैं तो राजनीतिक घोषणाओं को सार्थक बनाते हुए कमजोर को ताकतवर बनाना चाहिए। देश ने तो वही किया जो अनुशासित पार्टी चाहती है। यानी कमजोर तबके को ताकत दे दी। पर इससे पार्टी के प्याले में तूफान आ गया है। जनता ने घोषित लोहे को कागज बना दिया। प्रचारित कमज+ोर को मजबूती दे दी गई। जनता का निर्णयक निर्णायक सरकार के खिलाफ आ गया।
जो हवा भाजपा के गुब्बारे में भरी थी, वह गुब्बारे से निकलते ही तूफान बन गई। आलोचनाओं और इस्तीफों की आंधी ने लोकसभा में विपक्ष के नेतापद की कुर्सी तक को हिला डाला है। चढ़ते सूरज को प्रणाम करने वालों को सूर्यास्त बरदाश्त नहीं होे रहा है। जिसे सूरज बनाने की कोशिश की थी वह टिमटिम दीये में तब्दील हो गया है। ऐसे दीये से किसी और की आरती तो उतारी जा सकती है, पर खुद ऐसे दीये की आरती उतारने में भक्तों की दिलचस्पी नहीं रह जाती।
भाजपा के बुरे दिन हैं। जसवंती जस और यशवंती यश दोनों अयश बन गए हैं। दोनों के गरमागरम बयानों ने  अनुशासन की बखिया उधेड़ कर दी है। दूसरी ओर मार्तण्ड बनने का सपना देखने वाले अरुण को सूर्य तक नहीं बनने दिया जा रहा है। वे जिसका राज मानने को तैयार नहीं उन्हें नाथ मानने को मजबूर हैं। ऐसे में इस्तीफा-बम फोड़ने के अलावा लोग बेचारे क्या करें।
हालात ये हैं कि कांग्रेसी सिंह के दुबारा किंग बनते ही सोलह मई से पहले का राम-रावण युद्ध महाभारत बन गया है। जो सगे अब तक साथ लगे लगे दुश्मनों पर वार कर रहे थे वे आपस में तलवारबाजी पर उतर आए हैं। आपस में तलवार भांजना अब भाजपा की नियति है। दुश्मन की सेना में यौवन उबल रहा हो तो भाजपा बेचारी कब तक वार्धक्य को झेले? 

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