हमारे राष्ट्रपिता और राष्ट्रपति दोनों ही इन दिनों सुर्खियों में हैं। सारी दुनिया में अपने राष्ट्रपिता अतिविशेष हैं। उनका सुर्खियों में रहना तो सामान्य बात है। पर अपनी राष्ट्रपति का इन दिनों सुर्खियों में रहना विशेष हैं। राष्ट्रपिता अगर एक कलम की वजह से चर्चित हो रहे हैं तो राष्ट्रपति इन दिनों अपने पुत्र के कारण चर्चा में हैं। पुत्र के कारण लोगों का चर्चा में आना समाज का दस्तूर भी है। राष्ट्रपति भला क्यों अछूती रहें।
पहले अपने राष्ट्रपिता की ही चर्चा करें। जिन ब्रिटेन वालें अंग्रेजों के खिलाफ राष्ट्रपिता सारी उमर लड़ते रहे, उन्हीं की बनिया औलादों ने हमारे राष्ट्रपिता के यश को भुनाने की मुहिम शुरू की है। 1930 में हुई बापू की प्रसिद्ध 241 मील की दाण्डी यात्रा की याद में भाईलोगों ने चांदी-सोने का एक पैन बनाया है जिसकी कीमत रखी गई है डेढ् लाख से लेकर चौदह लाख रुपए तक। यानी ग़रीबों के लिये कमसे कम कीमत होगी डेढ़ लाख और अमीरों के लिये अधिकाधिक चौदह लाख। प्रसिद्ध ‘मों ब्लां’ कंपनी द्वारा बनाए गए इस पैन पर दाण्डी कूच पर निकले, हाथ में डण्डा लिये बापू की स्वर्णाकृति बनी है। सोने के तारों से जड़ी-मढ़ी इस कलम पर की निब भी सोने की है। इस पर जब आप हाथ फेरेंगे तो, बताया जा रहा है कि, खादी पर हाथ फेरने जैसा अहसास होगा। बेशर्मी की पराकाष्ठा भी है खादी का यह अपमान। बापू आज होते तो यह सब सुनकर माथा पीट लेते या ग़श खाकर गिर पड़ते। उनकी सादगी का यह मज़ाक है। इसके खिलाफ उन्हें एक नया आन्दोलन,या एक नई दाण्डीयात्रा निकालनी पड़ जाती। पर उनके अनुयायियों का यह देश चुप है। यह तो संभव है कोई शराब निर्माता दस-बीस गांधी कलमें खरीदकर सुर्खियों में आ जाए। बस इतना ही होना है आगे।
इस पैन पर लिखा है ‘महात्मा गांधी लिमिटेड एडीशन 241’ और ‘महात्मा गांधी लिमिटेड एडीशन 3000’। पैनपहले पपैन पूर्ण स्वर्ण के हैं जबकिदूसरे वाले चांदी-सोने के हैं और पैन के साथ रोलर भी हैं। संख्या में कुल मिलाकर ये छह हज़ार पैन विश्वभर के बाज्रों में बेचे जाएंगे। गरीब देश के अधनंगे रहने वाले फकीर नेता को दी जा रही यह विडम्बनाभरी महंगी श्रद्धांजलि कोई घाघ बनिया ही दे सकता है। यह वही बनिया है जिसने अपने व्व्यापार की आड़ में देश को दशकों तक अपने कब्जे में रखा। अब जिस बूढ़े ने उस बनिये को अपनी लाठी से हंकालकर बाहर किया वह बेशरम बनिया उस बूढ़े की उसी लाठी को फिर से व्यापार का माध्यम बना रहा है। अजब दुनिया है। जो सादगीभरा जीवन बापू ने जिया उसकी ठाठबाट वाली परिणति इस तरह होते देख रहे हैं हम कि कागज के दोनों तरफ लिखने वाले बापू, डाक में आई आलपिनों तक को संभालकर रखने वाले बापू, की यादों को अब वही बनिया सोने में ढालकर बेच रहा है और हम चुपचाप टुकुर टुकुर देख रहे हैं।
अब राष्ट्रपति की बात करें। उनका बेटा अमरावती से विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रत्याशी है। इस देश में किसी का भी बेटा चुनाव लड़ सकता है। राष्ट्रपति का लड़ रहा है तो लड़े । पर निष्पक्ष दीखने की चाहत में बेटे के दल के ही अमरावती के मेयर ने अजब मांग कर दी है। उनका कहना है कि अमरावती के सभी सरकारी दफ्तरों से राष्ट्रपति जी के चित्र हटा दिए जाएं या उन चित्रों पर कपड़ा डालकर उन्हें ढक दिया जाए। क्यों भाई क्यों। ऐसा क्यों करना है। तो बड़ा मासूम सा कारण बताया है मेयर साहब ने कि ऐसा न किया गया तो वोटर प्रभावित हो जाएंगे जो लोकतंत्र के खिलाफ है।
क्या तर्क है, क्या मासूमियत है, कुर्बान जाने को मन हो आया है मेयर साहब पर। अमरावती जिले के दफ्तरों से महामहिम के चित्र हटते ही मानों सच्चा लोकतंत्र आ जाएगा, सारे मतदाता भूल जाएंगे कि राजेन्द्र शेखावत महाहिम के पुत्र हैं और राष्ट्रपति जी के चित्रों पर पर्दा पड़ते ही मतमदाताओं क याददाश्त और प्रत्याशी की वल्दियत पर भी पर्दा पड़ जाएगा। ये सब हो या न हो, अपनेराम को तो फिलहाल मेयर साहब के दिमाग़ पर ही पर्दा पड़ा नज़र आ रहा है ।
गुरुवार, 1 अक्टूबर 2009
सोने के तारों की खादी
लेखक डॉ. कमलकांत बुधकर पर 10:52 am
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4 टिप्पणियां:
मेयर साहब के दिमाग पर पर्दा पहले तना था
अब बेतना गया है
इसलिए दिमाग का असली स्वरूप
सामने आ गया है।
रही गांधी जी पर सोने के पैन के बाजारीकरण की
तो इस बाजार को क्या कहिए
और कहे बिना भी क्या रहिए ?
कमलकांत जी जब बाजारवाद को हमने अपने उपार हावी होने दिया तो ये सब तो देखना ही पडेगा | टीवी, समाचार पत्र.... सभी जगह बाजारवाद का नंगा नाच चल रहा है ... पर भारत के बुद्धिजीवी लोग इसे प्रगति का नाम दे रहे हैं ....
हे राम!!!!!
सुन ले बापू ये पैगाम
मेरी चिठ्ठी तेरे नाम
चिठ्ठी में सबसे पहले लिखता तुझको राम राम
शायद कवि प्रदीपजी का ये गीत भी अब इस पेन से लिखकर बेचा जावे ?
हे राम.........
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