और जैसे तैसे निबट गया कुम्भ। किसी के लिए कुम्भ रत्नजटित महंगी धातुओं का था तो किसी के लिए वह सोने का सिद्ध हुआ और किसी के लिए वह चान्दी चान्दी कर गया। चमचम करता रत्नजटित कुम्भ था संत महंतों का तो स्वर्ण कुम्भ आया शासन-प्रशासन वालों के हिस्से। और रजत कुम्भ तो आरंभ से ही अभियंताओं, बड़े बाबुओं, ठेकेदारों, के नाम लिख गया था। पीतल, ताम्बे और लोहे के भी कुम्भ कुम्भनगरवालों के हिस्से में आएा। पर आम आदमी को सामान्य श्रद्धालु का कुम्भ तो मिट्टी काथा और उसी का रहा।
इस महाकुम्भ में किसी ने जमकर अमृत छका तो किसी को वह दीखा तक नहीं। मेले के माहौल में जिनका कुम्भ छलकना था उनका छलक गया, जिनका कुम्भ भरना था उनका भर गया। कुछ का कुम्भ भरा ही नहीं और कुछ का भरा तो सही पर चटका हुआ था इसलिए हरिद्वार छोड्ने से पहले ही रिस गया। कुछ ऐसे भी थे जिनका अपना कुम्भ फूट ही गया।
जिन्होंने अमृत की सिर्फ चर्चाएं कीं और प्रवचन दिए उन्होंने ही अमृतपान किया। जिन्होंने वे अमृत चर्चाएं और प्रवचन सुने उनके कर्णामृत कर लाभ हुआ पर उनका जेबामृत छलक गया।
वो ज़माना गया जब सागर-मंथन हुआ था और देवता लोग फ़ायदे में रहे थे। तब दैत्यगण बेचारे ठगे गए थे। उस एक करारे झटके के बाद दैत्यों ने हर जगह अपनी तगड़ी यूनियनें बना ली हैं। तब से वे विश्वमोहिनी का रहस्य समझ गए हैं। तब देवों ने महाविष्णु को पटाकर पटकी दी थी दैत्यों को। पर उसके बाद से दैत्यभई संगठित हैं। वे महाविष्णु की जगह महालक्ष्मी के आगे प्रणतिभाव से नतमस्तक हैं। इसीलिए तभी से लगातार देवों की दुर्गति करते आ रहे हैं। देवतत्व को अपने राक्षसत्व से मलते मसलते आ रहे हैं। तब तो अकेले राहु ने देवता का भेस रख कर अमृत छका था पर अब तो प्राय: सभी राक्षस देव वेश में, संत वेश, नेता वेश में, मंत्रि वेश में, अफ़सर वेश में और पुलिस वेश में अम़त छक रहे हैं। इसलिए कुम्भ जैसे पर्वों पर भी अब दैत्य ज्यादा और देवगण कम अमृत छक पाते है।
अब आदर्श और सिद्धांतों का नहीं बल्कि आदर्श और सिद्धांतों की पटरी से उतरने का कुम्भ होता है। अब समष्टि चिंतन का नहीं, समष्टि भण्डारे का कुम्भ होता है। अब महाविष्णु के स्तवन का नहीं बल्कि महालक्ष्मी के पूजन का कुम्भ होता है। अब पारस्परिक चिंतन मनन का नही बल्कि पारस्परिक टकराहट का कुम्भ होता है। और ऐसा कुम्भ हरिद्वार में निबट चुका है। अब मिलेंगे ग्यारह साल बाद नई योजनाओं और नई तिकड़मों के साथ। तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिए।
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