डॉक्टर साब अपनी पूरी कबिनेट, बल्कि कहें पूरी सरकार ही लेकर अपनेराम के कुम्भनगर में आए थे। सारी सरकार बालबच्चों समेत हरिद्वार में थी। डॉक्टर साब के साथ कई बड़े बड़े मंत्री और विधायक थे। सत्ता में रहने के कारण सबके कुर्ते के नीचे वाले 'कुम्भ' भरे भरे लग रहे थे। कइयों के कुम्भ तो फटने की स्थिति में थे। पर सभी भावविभोर थे और महाकुम्भ नहाकर अपने अपने कुम्भ सदा सदा के लिए भरपूर और सुरक्षित कर लेने का आशीर्वाद गंगा मैया से चाह रहे थे। गंगा मैया ने ये आशीर्वाद उन्हें दे भी दिया होगा क्यों कि मैया इन दिनों हरिद्वार में भाजपाइयों के आश्वासनों पर ही बह रही है। मेहमान डॉक्टर साब के साथ भी भाजपाइयों का जमावड़ा था और मेज्बान डॉक्टर साब भी भाजपाइयों के मुखिया थे। दोनों तरफ भाजपाई थे और बीच में गंगा बह रही थी। बेचारी मैया को आशीर्वाद देना लाजि़म था, सो उसने आशीर्वाद दे दिया होगा कि,'जाओ तुम्हारे कुम्भ भरे रहें।'
गंगा जी में डुबकी इन दिनों राजनीतिक सफलता की गारंटी लग रही है लोगों को। उन्हीं लोगों को जिन्हें पहले राम जी का मंदिर राजनीतिक सफलता की गारंटी लगता था। कुछ रामजी ने दे दिया और कुछ आशीर्वाद गंगा मैया दे ही देंगी। इसी उम्मीद पे भविष्य टिका है सरकारों का ।
छत्तीसगढ़ की सरकार के लौट जाने के बाद मैंने रात को मैया से बातचीत की तो उसने मुझे कान में बताया कि, 'मुझे तो आशीर्वाद देना ही था क्योंकि मैं अपनी ज्यादा दुर्गति नहीं चाहती।' मैंने चकित होकर पूछा, 'मैया आपकी दुर्गति कौन करेगा।'
मैया झल्लाकर बोली, 'मूर्ख इतना भी नहीं समझता। जो मेरी गति सुधारने के लिए मंचों पर आकुल-व्याकुल हैं वही तो मेरी दुर्गति करेंगे। मुझे उन्हीं से ख़तरा है। वे लोग पहले रामजी की दुर्गति कर चुके हैं। अब उनकी निगाह गौमाता के साथ मुझ पर पड़ी है। और मैं बुरी तरह डर गई हूं। अब मेरा क्या लोग अपनी मलिनता को छुपाने के लिए उसकी अविरलता और निर्मलता को मुद्दा बना रहे हैं। साधु-संन्यासियों को भी दो हिस्सों में बांट दिया है। वे लोग गंगा की गतिशीलता की चिंता करते करते जाने अनजाने गंदली राजनीति को गतिशील कर देते हैं। गंगा उन लोगों से डरी हुई है जो उसके मूल उद्देश्य लोक कल्याण से ही उसे विचति कर देना चाहते हैं। उत्तराखण्ड ऊर्जा प्रदेश बने न बने उनकी राजनीति ऊर्जस्वित रहे यही कामना है भाई लोगों की।
सो, आजकल कुम्भनगर में गौ और गंगा के चर्चे हैं। इन्हीं पर चल रहे न जाने कितनों के खर्चे हैं। धर्म की रसोई में राजनीति के तवे पर वोटों की रोटियां सेंकने की मुहिम जारी है। कुम्भ महापर्व ने कइयों के कुम्भ भर दिए हैं इसलिए अगले चुनावों की कुछ चिंताएं कम हो गई हैं। फिर भी धर्म की बैसाखियों पर चलने वाले तो बाबाओं की चरणरज लेकर कृतकृत्य हैं। अव्यवस्थित महाकुम्भ उन्हें व्यवस्थित चुनाव की गारंटी देता दीख रहा है।
2 टिप्पणियां:
satyvachan
"कुर्ते के नीचे वाले कुंभ" - वाह ! मजा आ गया! जिस दिन सुबह-सुबह आपकी मजेदार टिप्पणी पढ़ने को मिल जाती हैं - पूरा दिन मौसम खुशगवार हो जाता है। कटुतम आलोचना को भी इतने सलीके से व मिठास के साथ परोसते हैं कि जिस की आलोचना हुई वह भी बोल उठता होगा - "वाह !"
सुशान्त सिंहल
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