शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

कुम्‍भ का बादशाही स्‍नान

इस बार महाकुम्‍भ ने सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए। तीन की जगह चार शाही स्‍नान साधु-संन्‍यासियों ने कर लिए और आ‍खरी दिन कविवर निशंक की मंत्रिपरिषद् ने आकर बादशाही स्‍नान कर लिया। जिस दिन से छत्‍तीसगढ़ की सरकार हरिद्वार आकर नहा गई थी उस दिन से उत्‍तराखण्‍ड की सरकार कसमसा रही थी। रमण सरकार क्‍या आई, कुम्‍भ सरकार को लगा कि वह पिछड् गई। सारा अमृत कोई और बटोर गया, हम रह गए। हमारा ही इलाका, हमारी ही गंगा, हमारा ही हरिद्वार और हमारा ही कुम्‍भ। पर आकर नहा गई छत्‍तीसगढ़ की सरकार। मंत्रियों ने मुख्‍यमंत्री को समझाया, निशंक जी, यह हमारा रमणक्षेत्र है। इसमें कोई और सरकार आकर रमण कैसे कर सकती है। भले ही वह रमणसिंह की ही सरकार क्‍यों न हो। निशंक ने कहा चिंता मत करो हम नहाएंगे। और जमकर नहाएंगे। ऐसे नहाएंगे कि लोग देखेंगे कि हम नहा रहे हैं।

ऐसा ही हुआ। कुम्‍भ के आखरी  दिन सरकार हरिद्वार आई। सरकार से पहले नीली बत्‍ती वाली दो अलग  अलग कार आईं। पहली कार सपत्‍नीक मेला प्रशासन उतरा, हरकी पौड़ी पर पहुंचा, गोते लगाए और लौट गया। फिर दूसरी कार आई। उसमें से कुम्‍भ पुलिस सपत्‍नीक उतरी। उत्‍साहित पुलिसजन गंगधार में आभार स्‍नान की किल्‍लोल। अब तक सब कुछ निहाल, सारा माहौल निहाल था। पर फिर वक्‍त आया 'बादशाही स्‍नान' का। धवल वस्‍त्रधारी सरकार का बादशाही स्‍नान। स्‍नान से पूर्व वही सब कुछ दोहराया गया। सारे घाट जनता से खाली करा लिए गए क्‍योंकि जननेता, जनता के रहनुमा आने को थे। कोई उन्‍हें कपड़े उतारते और नहाते न देख ले। घाटों पर सिर्फ सरकार थी और सरकार को गोते लगवाने वाले पण्‍डे थे। इनके अलावा थी सरकार को सुरक्षा देने वाली पुलिस। प्रमुख सचिव, सचिव, अपर सचिव, निदेशक, अधिकारियों का जत्‍था। सभी टेक रहे थे मंत्रियों को मत्‍था। मंत्रिपरिषद् आई, उसने (अपने) कपड़े उतारे और वह गंगा की धारा में प्रवेश कर गई। गंगा का पता नहीं पर मंत्रिपरिषद् निहाल हो गई। देर तक मंत्रिगण जल में रमे रहे, मीडिया के कैमरों के सामने जमे रहे। सरकार नहाती रही, जनता का दूर दूर तक पता नहीं था।

फिर पण्‍डों ने चंदन टीका लगाया। ओएसडीयों ने जेब से दक्षिणा निकाल कर 'साहब' को पुण्‍याशीर्वाद दिलवाया। गद्गद् मंत्रिगण हरकी पौड़ी के मालवीय द्वीप पर गंगामैया को बहलाने पहुंचे। एक घण्‍टे तक गंगामैया के सम्‍मान में बहलाव बैठक चली। मैया मुस्‍कुराती हुई बहती रही और कल-कल स्‍वरों में कहती रही, '' तुम मेरा उद्धार करो न करो, मेरा नाम तुम्‍हारा उद्धार ज़रूर करेगा। पिछली बार रामनाम ने किया था। इस बार गंगनाम करेगा।''

मंत्रिपरिषद् ने बैठक में गंगा के नाम से कुछ प्रस्‍ताव किए और केन्‍द्र सरकार के नहले पर दहला रखते हुए मांग कर डाली कि, ''गंगा को राष्‍ट्रीय धरोहर की जगह विश्‍व धरोहर घोषित करवाओ।'' बहती गंगा ने एक बार भी पलटकर नहीं देखा मंत्रिपरिषद। की ओर। वह बहते बहते आगे बढ़ गई। राजनीति फिर पिछड़ गई।

 

4 टिप्‍पणियां:

अजित वडनेरकर ने कहा…

ओहो...गंगा तो अब मैली हुई होगी...

dr. anuj bhardwaaj ने कहा…

aap ki lekhani prabhavit karti hai.
hum mitron ka ek samuh hai jo ek acchi koshish karna chahte hain.
hamara bhi utsaah vardhan kijiye

www.jan-sunwai.blogspot.com

समय चक्र ने कहा…

""सरकार नहाती रही, जनता का दूर दूर तक पता नहीं था""

सर आजकल सारे काम सरकारी प्रायोजित होते हैं उसमे पब्लिक की दखलंदाजी कहाँ बनती है ... अभी हाल में मां नर्मदा तट पर आगामी २२ अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम सरकारी मद पर शरदोत्सव आयोजित किया जा रहा है उसमे नगर के कलाकारों को स्थानीय साहित्यकारों को कोई स्थान नहीं दिया गया है ... नगर में कई ऐसे भी कलाकार हैं जिन्होने विश्व स्टार पर ख्याति अर्जित की है परन्तु सरकारी दखलंदाजी के कारण उन्हें तबज्जो तक नहीं दी गई है और तो और नगर के बुद्धिजीवों और प्रबुद्धजनों को इस कार्यक्रम में बुलाया तक नहीं गया हैं ... सर सरकार यहाँ भी शरदोत्सव मनाएगी सरकारी धन पर...
महेंद्र मिश्र
जबलपुर.

समय चक्र ने कहा…

""सरकार नहाती रही, जनता का दूर दूर तक पता नहीं था""

सर आजकल सारे काम सरकारी प्रायोजित होते हैं उसमे पब्लिक की दखलंदाजी कहाँ बनती है ... अभी हाल में मां नर्मदा तट पर आगामी २२ अक्टूबर को शरद पूर्णिमा के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम सरकारी मद पर शरदोत्सव आयोजित किया जा रहा है उसमे नगर के कलाकारों को स्थानीय साहित्यकारों को कोई स्थान नहीं दिया गया है ... नगर में कई ऐसे भी कलाकार हैं जिन्होने विश्व स्टार पर ख्याति अर्जित की है परन्तु सरकारी दखलंदाजी के कारण उन्हें तबज्जो तक नहीं दी गई है और तो और नगर के बुद्धिजीवों और प्रबुद्धजनों को इस कार्यक्रम में बुलाया तक नहीं गया हैं ... सर सरकार यहाँ भी शरदोत्सव मनाएगी सरकारी धन पर...

महेंद्र मिश्र
जबलपुर.