औरतें लड़ रही हैं और देश आगे बढ़ रहा है। औरतें ज़बान लड़ा रही हैं और देश आगे बढ़ रहा है। किस दिशा में बढ़ रहा है, बस यही मत पूछिये। आज देश में जो हो रहा है वह औरतों की वजह से ही हो रहा है। जो नहीं हो रहा है उसकी वजह भी औरतें ही हैं। इन दिनों औरतें जोश में हैं। जोश में प्राय: कोई होश में नहीं रहता, फिर ये तो औरते हैं। औरतें और वह भी यूपी की। करेला और नीम चढ़ा। यूपी में नारी राज है और नारी ही वहां नारी से नाराज है। यही वजह है कि नारियां पहले एकदूसरे से चिढ़ रही हैं और फिर भिड़ रही हैं।
अपनी कांग्रेस और अपनी बसपा दोनों ही नारीमय है। दोनों ही नारी अनुगता हैं। दोनों नारी नेतृत्व के पीछे हैं। सोनिया और माया तो केवल नाम हैं। दरअसल इन दलों में नारीनाम जहाज है। जो कोई इन जहाजों पे चढ़ गया समझ लो पार उतर गया। और जिस पर ये जहाज चढ़ गए समझ लो वे तो गर्क हुए ही हुए। यूपी में इन दिनों ये दोनों जहाज आमने सामने हैं। तीसरी तरफ मेनका है जो उबल रही है। कह रही है ''माया हटाओ, प्रतिभा लाओ''। माया की प्रतिमा नगरी में भूचाल है। लखनवीं सागर में सुनामी के अंदेशे हैं। सुनामी आ गई तो देशभर में बहुत कुछ डूबेगा। सोनिया की महिला सिपहसालार ने यूपी की रानी पर मुंहभर गुस्सा उगल दिया है, तो रानी के सिपाहियों ने उसका घर ही फूंक दिया है। यह घरफूंक तमाशा चालू हो गया है। देखिए अब और किस किस के घर फुंकते हैं।
कौवे हर युग में रहे हैं और कोयल भी। न वे किसी का कुछ छीनते रहे और ये किसी को कुछ देती रहीं। पर उनकी कांव कांव से कान हमेशा पकते रहे और इनकी कूक हमेशा दिल लुभाती रही। आज भी समाज में कौवे हैं और कोयल भी। पर हमारे प्रजातंत्र का सच अजीब है। कौवे तो कूकना सीखे नहीं कोयल अलबत्ता कांव कांव सीख गईं। इसीलिये यूपी में यह सब कुछ हो गया। हुआ वाणी की विद्रूपता के चलते।
''ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय, औरन कूं सीतल करे आपहूं सीतल होय''। ऐसा कहने वाले अब दुर्लभ हैं। कहते हैं जीभ में हड्डी नहीं होती। वह कभी भी कैसे भी घूम जाती है। ज़बान कभी चाशनी में पगी होती थी, मिसरी माखन की सगी होती थी पर वे दिन अब हवा हुए। मीठे वचनों का ज़माना लद गया। स्पाइसी यानी चरपरे का युग है। सुनकर मिर्ची न लगे तो कहनेवाले ने क्या ख़ाक कहा। ज़हरबुझी वाणी ही राजनीति की पहली सीढ़ी है। गाली और गोली का ज़माना है।
वे सत्ता में नहीं थीं तब ''तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार'' के नारे बुलंद होते थे। अब ये सत्ता में नहीं हें तो बलात्कार के मुआवजे पर भाषणबाजी हो रही है। कम इनमें कोई नहीं । ये अपनी अपनी पार्टी की संस्कारित सन्नरियां हैं। कहते हैं नारी संस्कारित होगी तो पीढि़यां संस्कारित होंगी। इन नारियों को देखो, इनके संस्कार देखो और अन्दाजा लगा लो कि राजनीतिक पीढि़यां कैसी आने वाली हैं आगे आगे।
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
संस्कार देती औरतें
लेखक डॉ. कमलकांत बुधकर पर 5:56 am
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3 टिप्पणियां:
आपकी व्यंग्यात्मक प्रस्तुति अच्छी लगी जनाब। बहुत प्रवाह है। वाह।
पढ़ने के समय ऐसा लग कि एक लाइन दूसर पर चढ़ी हुई है। कुछ उपाय करें।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत सुंदर।
महिला की गति महिला ही जाने
अब महिलाओं को जागरूक हो जाना चाहिए
सीरीयल लगता है अब जिंदगी में उतर आए हैं
संस्कार अब सीढि़यां चढ़ रहे हैं
पर वे सीढि़या मेट्रो मार्ग की तरह ढह रही हैं
मैं बड़ी ही विनम्रता से लिख रही हूँ कि मुझे आपकी टिप्पणी से एतराज है। सत्ता की लडाई है, यदि किस्मत से ये दो महिलाएं हैं तो महिलाओं की लडाई नहीं है। कल जब अडवाणी जी और मनमोहन जी लड रहे थे तब आपने क्यों नहीं कहा कि पुरुषों की लडाई है। समाज को महिला और पुरुष में मत बांटिए। और यह लडाई सामाजिक नहीं है यह लडाई राजनैतिक है।
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