वे बेचारी तो शुद्ध भारतीय परम्परा का निर्वाह कर रही थीं पर उसी में धरी गईं। अब कोई अपने शौहर का अनुगमन भी न करे तो क्या करे। आगे आगे शौहर गए, पीछे पीछे बेगम चली गईं और जाकर लोकसभा में उन कुर्सियों में से एक पर बिराज गईं जिन पर बैठकर माननीय सदस्य कार्रवाई में हिस्सा लेते हैं। बस, इतना ही किया था एक पति-अनुगता नारी ने। इसी पर खलबली मच गई और मार्शल की मार सहनी पड़ गई बेगम को। ये तो सरासर अन्याय है, ज़्यादती है भाई।
जी, मामला अपनी इसी इकलौती लोकसभा का है। जिस रोज़ अपने प्रणव दादा बजट पेश कर रहे थे और सांसदों के साथ साथ सारे देश की सांस ऊपर-नीचे हो रही थी इसी वक्त लोकसभा के भीतर सुरक्षा के जि़म्मेदार मार्शल की सांस उखड़ने को हो रही थी यह जानकर कि कोई महिला संसद के भीतर घुसकर ही नहीं, बल्कि सांसद की कुर्सी पर बैठकर भीतर का तमाशा देख रही है। लोकसभाध्यक्ष की कुर्सी पर महिला बैठी तो सारा देश हर्षविह्वल हो उठा था, मार्शलों समेत। पर जब बजट वाले दिन एक महिला आकर सांसद की कुर्सी पर बैठ गई तो मार्शलों के शोकविह्वल होने की बारी आ गई। गड़बड़ाई सुरक्षा व्यवस्था में हड़बड़ाहट पैदा कर दी। मार्शलों की हालत ऐसी हो गई मानों कोर्टमार्शल का फैसला उनके खिलाफ जा रहा हो। मार्शल भागे महिला की तरफ जिसने बिना इलैक्शन जीते संसद की कुर्सी हथिया ली थी। एक तरफ घबराए मार्शल खड़े थे और दूसरी ओर परम शांत भाव से अपना वैनिटी पर्स संभाले बैठी अनिर्वाचित महिला। कुछ कहने की स्थिति नहीं थी। सारा दृश्य अनिर्वचनीय था। सुरक्षा व्यवस्था की बोलती बन्द थी। किसी को कुछ पता भी नहीं था कि संसद में प्रणव दा के बजट भाषण के अलावा भी कुछ चल रहा है। अगली सीटों पर बैठे यूपीए व कांग्रेसी सांसद मेजें थप-थपाकर और भाजपा सहित एनडीए सांसद मुंह बिचकाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। पर जो सांसद उन अनिर्वाचित साहिबा के अगल बगल बैठे थे वे बिलकुल अवाक़ थे। एक अजाना भय और अव्यक्त संशय उन्हें घेरे था। कहीं इस महिला के पर्स में कोई बम-शम तो नहीं। प्रभु रक्षा करे।
पर सारा भय और सारा संशय हवा हो गया जब नाम पूछने और प्रवेशपत्र मांगने पर अनिर्वाचिता ने तपाक से एक पर्ची पर अपना नाम लिखा ''रुखैया बशीर'' और साथ ही परिचय पत्र मांगने पर दर्शकदीर्घा का प्रवेशपत्र मार्शल जी के हाथ में थमा दिया। देखकर मार्शल मियां ने चैन की सांस ली। अरे, ये तो अपनी भाभी जी हैं, यह कहते हुए आस-पड़ौस के सांसद भी आश्वस्त हुए।
वे और कोई नहीं, केरल की पोन्नानी संसदीय सीट से निर्वाचित इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग़ के अपने सांसद ईटी मुहम्मद बशीर की बेगम थीं श्रीमती रुखैया बशीर। वे आईं तो थीं दर्शक दीर्घा से संसद की कार्रवाई देखने पर घुस गई मुख्य सभागार में और जम गई एक सीट पर।
अपनेराम का मानना है कि रुखैया भाभी का कोइ्र कसूर नहीं है। जिस देश में बिना कुछ किए अर्धांगिनी को पति के पदानुसार संबोधन मिल जाते हैं, जैसे मास्टर की बीबी मास्टरनी, पंडित की बीबी पंडितानी, थानेदार की बीबी थानेदारनी, धोबी की धोबन और नाई की नायन वगैरा वगैरा हो जाती हैं वहां सांसद की बीबी भी अगर कुछ देर को सांसद हो जाए तो किसी को कोई आपत्ति क्यों हो। जब पंचायतों में चुनी गई महिलाओं के पतिगण वहां घुसकर अपनी बीबियों की जि़म्मेदारी निभाते हैं तो संसद भी तो बड़ी पंचायत ही कहलाती है। वहां अगर भाभीजी आकर भाईसाहब की कुर्सी पर बैठ जाएं तो क्या हर्ज है। आने वाले वक्त में तो वैसे भी 33 प्रतिशत भाईसाहबों की कुर्सियां भाभियों की ही तो होंगी। मार्शलों से निवेदन है कि वे कृपया अभी से भाभियों को पहचान लें।
2 टिप्पणियां:
आने वाले वक्त में तो वैसे भी 33 प्रतिशत भाईसाहबों की कुर्सियां भाभियों की ही तो होंगी।
Sou taka sahi kaha aapne.....
lajawaab aalekh/vyangy hai...bada hi aanand aaya padhkar...aabhar aapka.
वे यही सब अवलोकन करने आई थीं ...
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