यूं तो कुम्भमेला सबके ही फायदे की चीज है। जब आता है तो सबके लिए कुछ न कुछ लेकर आता है। पर सबसे ज्यादा फायदा होता है छुट्टियां चाहने वालों को। जिन्हें कामकाज से छुट्टी चाहिये उनके लिये कुम्भ से मुफीद कुछ नहीं। जित देखूं तित अवकाशानन्द । बाहर वाले तो आनन्द लेने आते ही हैं, हम हरिद्वार वाले भी जमकर लूटते हैं अवकाशानन्द।
कुम्भ ऐसा मौका है जो कुम्भनगर में अच्छे खासे चलते हुए कामों को बन्द करवा देता है। श्रद्धालुओं के लिये आता है कुम्भ मोक्ष का रास्ता दिखाने। लेकिन उस रास्ते पर तो बन्दा मरने के बाद ही जा सकता है। पर कुम्भनगर के बाशिन्दों को तो वह जीतेजी ही मुक्ति का आनन्द दे जाता है। हर काम से मुक्ति का आनन्द। यह महाकुम्भ से ज़्यादा महाबन्द का आनन्द है।
कुम्भ के आते ही हरिद्वार के रास्ते बन्द, रिक्शा-तांगे बन्द, स्कूटर कारें बन्द, बाज़ार बन्द, दूकानें बन्द, मुख्य गंगाघाट बन्द, वहां के मंदिर-देवालय बन्द, शहर के स्कूल-कॉलेज बन्द, आने वाले यात्री बाड़ों में बन्द और शहर के बूढ़े, बच्चे, औरतें घरों में बन्द। कुल मिलाकर आजकल का महाकुम्भ हमें महाबन्द के नज़ारे दिखा देता है। हरिद्वार वालों के लिये तो कुम्भ सचमुच मुक्ति का संदेश लेकर आता है। रोज़मर्रा के कामों से मुक्ति का पर्व है महाकुम्भ।
इन दिनों हरिद्वार के अखबारों में राजकीय हवालों से जो सूचनाएं छप रही हैं उनका संदेश है कि जब तक हरिद्वार में महाकुम्भ है तब तक स्नान दिवसों पर कोई अपना ड्यौढ़ी, दरवाज़ा न लांघे। जो लांघेगा वह वैसे ही फंसेगा जैसे पिछले स्नानों पर फंस चुका है। घर से हरकी पौड़ी तक का दस मिनिट का रास्ता ढाई घण्टे में भी पार न करके लोग महाकुम्भ का महानन्द ले चुके हैं। आगे भी लेंगे।
बच्चापार्टी खुश है क्योंकि रास्ते बन्द हैं तो स्कूल कॉलेज की छुट्टी होनी ही है। आदेश है कि नहान से एक दिन पहले छुट्टी, नहान के दिन छुट्टी और नहाने के बाद अगले दिन फिर छुट्टी। अपनेराम से मौहल्ले के बच्चे पूछ रहे थे कि, ''अंकल जी, लोग हरिद्वार में गंगा नहाने आते हैं तो हमारी छुट्टी हो जाती है। पर हम भी जो रोज़ नहाते हैं। फिर तो हमें जबरदस्ती स्कूल क्यों भेज दिया जाता है। गंगा में तो नहाने ही नहीं दिया जाता। ये क्या चक्कर है अंकल जी।''
अब अपनेराम क्या बताएं उन्हें कि ये चक्कर ही तो महाकुम्भ का चक्कर है। वैसे भी हरिद्वार के विद्यार्थी को अवकाशानन्द कुछ ज्यादा ही मिलता है। कांवड़ मेला हो तो दस दिन तक जीवन ठप्प, स्कूल ठप्प और शहर में चलना-फिरना ठप्प। फिर कोई लक्खी मावस-पूनो आ जाए तो फिर अवकाशानन्द। बैसाखी हो, सोमवती हो तो शहर में तो चहल-पहल हो जाती है पर शहरवालों को लकवा मार जाता है। इन दिनों महाकुम्भ का जोर है।
हमारी उदार सरकार ने तीन कुम्भस्नानों को बढ़ाकर ग्यारह कर दिया तो उत्साही अधिकारियों ने हर स्नान और उसके आगे पीछे के दिनों को भी अवकाशानन्द में तब्दील कर दिया। अब सवाल यह है कि इन अवकाशों में हरिद्वार वाले कहां जाएं क्या करें। देश-दुनिया के लोग उत्साह और उल्लास से हरिद्वार आरहे हैं और हरिद्वार के लोग अपने अपने दड़बों में घुसे रहने को मजबूर हैं। बाहर निकलना है तो पास जुटाओा पास जुटाने के लिये पुलिसियों की चिरौरी करो। फिर पास लेकर जब निकलो तो उस पास की औक़ात का पता चले कि वह तो कैंसिल कर दिया गया है।
2 टिप्पणियां:
मेरा सुझाव है महाकुंभ को हरिद्वार से शिफ्ट करवा दिया जाये। कहां कराया जाये इसके लिए भी सुझाव लिए जाएं, जहां रहने वाले वासी इच्छुक हों, वहीं पर मोक्ष सुविधा का प्रबंध किया जाना चाहिए।
Kanvar yatra ke dauran to avkash ka rog poori tarah se Hardwar se lekar Delhi tak faill jata hai. We face a lot of problem to go to duty or parental place that is Saharanpur. It is very good to lighten the gravity of all the situations and conditions by humour or satire. Thanks a lot for this effort. regards Nutan Sharma
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