शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

सफल कुम्‍भ के लक्षण

सभी लक्षण बता रहे हैं कि हरिद्वार में 2010 का महाकुम्‍भ एक सफलतम कुम्‍भ रहा है। कुम्‍भ कार्यों की शुरुआत से लेकर कुम्‍भ संपन्‍न हो जाने तक जो कुछ हुआ वह सब नोबल पुरस्‍कार की श्रेणी का हुआ है। यही वजह है कि उत्‍तराखण्‍ड के कविमना मुख्‍यमंत्री इस महामेले के लिए नोबल परस्‍कार की मांग कर रहे हैं। सचमुच इस सरकार को एक नोबल प्राइज़ की दरकार है भी। नोबल वालों कुछ इधर भी ध्‍यान दो यार, वरना हम उत्‍तराखण्डियों का दिल टूट जाएगा। हमने मेला भी जमकर किया है और मैला भी जमकर किया है। हमें दोनों में से किसी भी एक काम के लिए या दोनों ही कामूों के लिए नोबल पुरस्‍कार दे डालो यार।

यह हमारा पहला महाकुम्‍भ था जो हमने उत्‍तराखण्‍ड राज्‍य बनने के बाद मनाया। इसे मनाने से पहले हमने केन्‍द्र सरकार को मनाया कि हमें कुम्‍भ मनाने के लिए मनीऑर्डर भेजो। सरदार साहब ने मनीऑर्डर भेजने से पहले पूछा, कितना चाहिए, कहां खर्च करोगे और खर्च कर भी लोगे या नहीं। सरदार साहब को शंका हुई कि बच्‍चा राज्‍य है, पता नहीं इतना खर्च कर भी लेगा या नहीं। पर निशंक जी ने असरदार ढंग से सरदार जी से कहा कि, 'आप शंका मत करो जी। पैसा दो तो सही, हम सब मिलकर आपका ‍दिया सारा पैसा निशंकभाव से खर्च कर डालेंगे।' वे मुस्‍कराए और उन्‍होंने मनीऑर्डर भेज दिया। कुम्‍भ प्रथमदृष्‍ट्या सफल हो गया।

जेब में खर्चा हो तो मेला मेला लगता है। सो, पहले तो मेला सफल हुआ पैसा मिलने से। फिर बारी आई पैसा खर्च करने की। तो भाई, सरकार ने ऐसे असरकारी साहबों को खर्च करने का जिम्‍मा दिया जो एक खर्च करके दो का प्रचार करें और तीन का 'पुण्‍य' अर्जित करें। वैसा ही कर दिखाया साहबी समूह ने। दरअसल  महाकुम्‍भ एक सामूहिक पर्व है और एक सामूहिक घटना है। इसमें सब कुछ सामूहिक स्‍तर पर ही होता है। लोग आते भी सूमहों में हैं, नहाते भी समूहों में हैं, खाते भी समूहों में हैं, जाते भी समूहों में हैं, खते भी समूह में हैं और अगर मरने की बात चले तो मरते भी समूह में ही हैं। इन सारे मानदण्‍डों पर 2010 का हरिद्वार महाकुम्‍भ भी सफलतम कुम्‍भ रहा है।

अब अगर सरकारों को भी समूह मानें तो इस सामहिक अवसर के लिए राज्‍य स्‍तरीय एक समूह ने केन्‍द्र स्‍तरीय एक समूह से मांगा। समूह ने समूह को दिया। फिर अफ़सरों के सूमह जुटे और जो कुछ मिला था उसे सामूहिक स्‍तर पर खर्च करने का बीड़ा उन्‍होंने उठाया। बड़ी लगन और बड़ी मेहनत और बड़े समर्पण का काम था। समूहों का ध्‍यान रखना जरूरी था इसलिए अफ़सरों ने नीचे से ऊपर तक हर तरह के हर समूह का ध्‍यान रखा। यही वजह थी कि मंत्री से संत्री तक सब महाकुम्‍भ में तन-मन से जुटे रहे। धन की परवाह किसी ने नहीं की द्य वह तो सुचारु व्‍यवस्‍था के अंतर्गत आटोमेटिक आना ही था।

जनसमूह के लिए योजनाएं बनीं और कुम्‍भ की सफलता के दौर शुरू हो गए। सारा काम निशंकभाव से चलता रहा और कुम्‍भ को नोबल प्राइज़ की लाइन में खड़ा कर दिया गया।

कुम्‍भ की सफलता होती है भीड़ से। सरकार तय कर चुकी थी कि साढ़े पांच सौ करोड़ खर्व करने हैं तो पांच-छह करोड़ को गंगा स्‍नान कराना ही पड़ेगा। सरकार बजि़द थी और उसने चार महीनों में आंकड़ों में ही सही करीब छह करोड़ नहला दिए। असली पुण्‍य तो सरकार का ही रहा।

हमेशा की तरह करीब पांच सौ लोग कुम्‍भ में बिछड़ गए। यह नहीं पता चल सका कि इनमें जड़वां कितने थे। पर बरसों बाद जब ये लोग मिलेंगे तो मुम्‍बइया फिल्‍मवालों को  कमसे कम कुछ वर्षों के लिए कहानी के प्‍लॉट नहीं ढूंढने पडेंगे। कुम्‍भ पुलिस के खोया-पाया विभाग में अगर कुछ लेखक हुए तो सौ पचास मार्मिक कहानियां जल्‍दी ही सामने आएंगी।

कुम्‍भ हो तो भगदड़ जरूरी होती है, सो इस लिहाज से भी कुम्‍भ सफल रहा है। भगदड़ हुई और लोग परमात्‍मा का स्‍मरण करते परलोक सिधार गए। कुम्‍भ का एक लक्ष्‍य 'मोक्ष की प्राप्ति' भी पूरा हुआ। मेला और मैला में सिर्फ मात्राभेद है। सो मेले के दस दिन बाद भी बाद हरिद्वार वाले भारी मात्रा में मैला झेल रहे हैं। इस लिहाज से भी यह महामेला सफलतम रहा है। लक्षण और भी कई हैं सफलता के। पर उनकी चर्चा फिर कभी।

 

3 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सटीक व्यंग्य , मजा आया पढ़कर !

अजित वडनेरकर ने कहा…

बेहतरीन व्यंग्य।
लोकतंत्र भी समूह का रचा मायावी तंत्र है सो हरिद्वार जैसी माया नगरी में यह धन्य हुआ। माया तो अब परिव्राजकों को भी भाती है और सेवकों को भी। माया का स्वाद भी मिलन में ही है। मिल-बैठ जहां खाते हैं, वहां मैला तो स्वाभाविक है। हम हिन्दुस्तानी तो बैठकर और चलते-फिरते भी मैला करने में माहिर हैं। सरे राह अगर अर्धकुम्भ, महाकुम्भ जैसे पर्व आ जाएं तो क्या कीजै?

Gaurav ने कहा…

Sir, First of all "Pranam". I am so impressed by your writing and the way you use particular words. Genuinely speaking you made me to fall in love with Hindi. I feel blessed by the gift you gave me on deepawali. I kept that writing and candles with me. thank you sir