लोकसभा वाले अपने दादा ने शाप दे दिया है। अरे अपने सोमनाथ दादा। सांसदों के आचरण से दुखी दादा ने आखिर अपने तरकश से शाप वाला तीर निकालकर सांसदों पर चला ही दिया। दादा ऋषिपद पर हैं। ऋषि ने शाप दिया है तो असर तो होना ही है। अब अपने लोकतंत्र का क्या होगा। अगर जनता ने दादा की आवाज़ सुन ली और संसद में बैठने वाले मौजूदा लोगों को नहीं जिताया, सबको हरवा दिया तो अगला सिनेरियो क्या होगा। तब भी कोई तो जीतेगा।
अब यह कोई तो कौन होगा। भाइयों और बहनों दादा के शाप में अपनेराम को तो बड़ी संभावनाएं नज़र आ रही हैं। दादा का सारे सांसदों के नाम शाप यह है कि 'आप सब अगला चुनाव हार जाएं।' टोन कुछ इस तरह है उनका कि, 'मेरी नींद चुरानेवाले जा, तुझको भी नींद न आए'। बड़े भैया भारत भूषण जी की ये पंक्तियां फिलहाल बिलकुल मौजूं हैं दादा की मनस्थिति पर।
मुझे तो लगता है कि बाकी पार्टियों के मुकाबले में दादा का यह शाप कम्यूनिस्ट पार्टियों के लिये कुछ ज्यादा है। सारी जि़न्दगी दादा जिन पार्टियों, जिन लोगों, जिन विचारों और जिन सिद्धांतों के लिए मरते खपते रहे, उन्होंने ही अंत में आकर दादा की क्या गत बना दी। तो दादा को शाप तो देना ही था। दादा ने केवल सीपीआई सीपीएम की जगह शाप के फन्दे में सबको लपेट लिया है। ठीक ही हुआ। अब सारा ओवर हॉलिंग हो जाएगा।
दादा ने शाप देने से पहले जो तक़रीर दी उसमें दो अलग अलग बातें कह दीं। उन्होंने कहा कि आप सब सांसदों को संसद में बैठने का भत्ता नहीं दिया जाना चाहिये। अब भला ये क्या बात हुई दादा। अगर इन महानुभावों का भत्ता ही बन्द हो गया तो संसद में ये करेंगे क्या। भारतीय लोकतांत्रिक परम्परा में तनखा अलग होती है और काम करने के पैसे अलग। अगर इन्हें शोरशराबा करने, धींगामस्ती करने, संसद में गालीगलौज करने के बदले दैनिक भत्ता न मिला तो एक ओर देश के दर्शक उच्चस्तरीय मनोरंजन से महरूम रह जाएंगे और दूसरी ओर तमाम सांसदों के ऊर्जास्रोतों पर अघोषित पाबन्दी लग जाएगी। संसदीय ऊर्जा का क्या होगा।
दादा, आपने दूसरी बात सांसदों से यह कही कि आप लोग जनता का अपमान कर रहे हैं और उसे मूर्ख बना रहे हैं। बिलकुल सत्तबचन महाराज। लोकसभाध्यक्ष के श्रीमुख से लोकतंत्र का यह नग्न सत्य सुनकर मतली सी होने लगी है। आपकी हिम्मत की दाद देते हैं अपनेराम कि आपने उस ऊंची कुर्सी पर बैठकर जो सच बोला है वह वहां से बोला जाने से शायद काबिलेगौर हो गया है वरना सड़कों से तो यह बात साठ बरसों से संसद तक गुंजाई जा रही है। कोई सुनता ही नहीं, सुनता है तो हंसकर कह देता है कि जनता पहले से मूर्ख है वरना हमें वहां भेजती क्यों।
दादा के शाप को लेकर मेरी कुछेक सांसदों से चर्चा हुई। सबने हंसकर कहा कि कुछ होने जाने वाला नहीं है। शाप वाप कलियुग से पहले होते थे। अब जो है सब कलियुग का है। हम भी, न दादा भी, जनता भी, और लोकसभा भी। अपनेराम जी, आप क्या समझते हैं हमें किसी का कोई शाप लगेगा। सव्वाल ही पैदा नहीं होता। वो तो दादा खुद अपनी पार्टी से शापित हैं इसलिये इतने तापित हैं। इतना गुस्सा कर रहे हैं।
अपनेराम को लगा कि भाईलोगों की बात में दम है। कलियुग का पूरा जोर है। दादा से मिले शापोत्तर भविष्य में महान दृश्य सामने आ सकते हैं। लोकसभा के चुनावों में उम्मीदवारों के नामों के साथ पार्टियां ब्रैकेट में लिखेंगी--- 'शापित'। 'अशापित'। जो शापितों को वोट नहीं देगे वे तापित होने को तैयार रहें। उन्हें शापितगण बाद में देख लेंगे।
बात यह है कि दादा का शाप अगर लग ही गया तो मनमोहन, सोनिया, अटल, आडवाणी, राहुल, मुलायम, अमरसिंह वगैरा वगैरा करीब साढ़े पांच सौ छंटे छंटाए सज्जनों के सामने बेरोजगार हो जाने का संकट पैदा हो जाएगा। इदेश का यह अमला अगर बेरोजगार हो गया तो बाकी बेरोजगारों को रोजगार के वायदे कौन देगा। कहां से मिलेगी देश को गरीबी दूर करने और देश की कायापलट के आश्वासन। दादा ने यह सोचा ही नहीं कि वे शाप देकर राष्ट्र की एक पूरी आश्वासनपटु पीढ़ी को नाकारा बना देंगे। उनसे हाथ से नेत़त्व छीनकर वे रामभरोसे चलते इस देश का राम ही छीन लेंगे। दादा, अपना शाप वापिस ले लो। साढ़े पांच सौ परिवारों के पेट पर यूं लात न मारो।
शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009
सोमदा के शाप से तापित
लेखक डॉ. कमलकांत बुधकर पर 4:20 am
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