अजब संयोग है कि पंधेर और पाकिस्तान दोनों एक साथ षड्यंत्रों के दोषी सिद्ध हो गए हैं। जिस दिन पंधेर को निर्दोष बच्चों की हत्याओं में कोर्ट ने षड्यंत्रकारी माना है उसी दिन पाक ने खुद ब खुद मान लिया कि मुम्बई में निर्दोष लोगों की हत्याओं का षड्यंत्र उसी की सरज़मीं पर रचा गया। पंधेर भी वहशी और पाक भी वहशी। आतंक और क्रूरता में न पंधेर कम है और ना ही पाक ।
इस पूरे घटनाक्रम में एक अव्छी बात ये हुई कि मियां कसाब अनाथ नहीं रहे। पाक ने उन्हें सनाथ कर दिया और मान लिया कि बच्चा नाजायज़ नहीं है, उसीका है। रोते बिलखते और भारतीय जेल की दीवारों से सिर मारते कसाब को भी तसल्ली हो गई होगी कि वह अब लावारिया नहीं मरेगा। उसकी लाश का वलीवारिस अब सामने आ गया है। कसाब हफ्तों से बेचैन था । मम्मी मम्मी पुकार कर उसने सारी जेल सिर पर उठा रखी थी। अब कमसे कम उसे मौत की नींद आने से पहले थोड़ी सी वैन भी आ जाएगी।
नींदें तीन प्रकार की होती हैं। पहली चैन की नींद। दूसरी बेचैनी की नींद और तीसरी मौत की नींद। मौत की नींद तो सबको आती है। फ़र्क यह है कि किसी को जल्दी आती है तो किसी को देर से। किसी को वक्त पर आती हैं तो किसी को बेवक्त। किसी को दी जाती है और किसी को खुद आ जाती है। और कोई कोई तो इस मौत की नींद को ख़ुद बुलाते हैं। खुद बुलाने वालों में कुछ किस्मत के मारे होते हैं जो बदतर जि़न्दगी से निज़ात पाने के लिए खुद मौत को इन्वीटेशन कार्ड भेजते हैं। तब मामला सीधा सीधा आत्महत्श का बनता है।
पर आजकल आत्महत्या के लिये उकसाने का रिवाज़ भी चल पड़ा है। हमारे पड़ौसियों के यहां मौत के लिये उकसाने का यह कुटीर उद्योग बरसों से फलफूल रहा है। जिस सरकार को लोगों के लिये खुशी खुशी जीने के हालात पैदा करने चाहियें वही सरकार लोगों के लिये खुशी खुशी मरने के हालात पैदा करवाती है। जनता को जीतेजी खुशी मिले यह बात पड़ौसी सरकार कर नहीं पाती। इंसानियत के साथ खुशी खुशी जीने देना जब उसके लिये मुश्किल हो जाता है तो वह मज़़हब के नाम पर मरने की बातें अपने नौजवानों को सिखाती है। मरते तब भी लोग पैसे के लिये ही हैं। मज़हब का तो बस नाम ही होता है। कसाब उन्हीं नक़ली मज़हबी बहाद़़ुरों में सं एक है जो अब न मरों में हैं न जि़न्दों में।
मुम्बई में मारने आए कसाब के भाईबन्द जो भारतीय गोलियों से मर-खप गए, वे तो फिर भी किस्मतवाले थे। पाक हुक्मरानों ने कमसेकम उनके नाते-रिश्तेदारों को तो उनकी मौत के बदले मालामाल कर दिया होगा। पर ये बेचारा कसाब। इसे तो जि़न्दा रहते ही कई कई मौतें आ गईं। यहां यह पकड़ा गया और जेल में सड़ रहा है। वहां उसके मां-बाप नाते-रिश्तेदार बेघर कर दिए गए। न माया मिली न राम । भाई मियां की ज़ुबान में कहें तो ना खुदा ही मिला ना विसाले सनम, ना इधर के रहे ना उधर के रहे ।
और इन आतंकवादियों के नापाक आक़ाओं का हाल तो और भी ख़राब है। पहले तो हर बात से इनकार कर दिया। फिर अब, जब ओसामा के बाप ओबामा ने घुड़काया तो इजारबन्द गीले हो गए आतंक के इन आक़ाओं के। ओबामा की धुड़की और अपने बाबू मोशाय प्रणब दा की डपट का असर यह हुआ कि भाईमियां ने झूठ के लबादे उतार कर अपनी नंगई कबूल कर ली। 79 दिन तक रट लगाए रहे कि हमने कुछ नहीं किया। पता नहीं किसकी औलाद आपके आंगन में धमाचौकड़ी मचा गईा हम बेक़सूर हैं। अब, जब अंतरराष्ट्रीय गालियां पड़ी तो मान लिया कि वे ही हैं बदमाश बच्चों के बाप।
ऊंट पहाड़ के नीचे आ चुका है। पहले भी कई बार आया है। पर हर बार करवट बदल लेता है। ऊंट जो ठहरा। यह हर बार भूल जाता है कि पिछली करवट कौनसी थी। लेकिन उम्मीद है इस बार ऊंट को याद रहेगा कि सवारी ओबामा कर रहे हें। भाईमियां या तो ओसामा को बाप मान लो या फिर और ओबामा को। दुनिया में दो बाप वैसे तो किसी के होते नहीं। पर अगर कोई अपने दो बाप बताए या बनाए तो दुनिया उसे क्या कहती है यह आप बखूबी जानते ही होंगेा
1 टिप्पणी:
पोस्ट क्या है, पूरा इन्द्र धनुष है। कहीं जीवन दर्श है तो कहीं तथ्यों की व्यंग्यात्म बौछार। 'दो बाप तो किसी के नहीं होते' जैसी लोकोक्ति का सुन्दर और धारदार उपयोग।
इसी तरह अपनी 'कछु' सुनाते रहिए। हब 'सब कछु' सुननेे को बैठे हैं।
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