जो ख़ुद तालिब-ए-इल्म यानी सीखने की इच्छा रखनेवाले हैं, वे ही इन दिनों लोगों को सिखा-पढ़ा रहे हैं। सारी दुनिया में ये 'तालिबान' यानी शिष्यों के नाम से मशहूर हैं पर ये सीखते किसीसे नहीं। ये सिर्फ सिखाते हैं। ये तालिबान हैं। इनकी अपनी ओपन युनिवर्सिटी है। उस्ताद ओसामा बिन लादेन इनके वाइस चांसलर हैं जो अपने तालिब-ए-इल्मों को काग़ज क़लम से कतई दूर रखते हैं। वे इनके बस्तों में बम और हाथों में गन देखकर खुश होते हैं। 'मोगेम्बो खुश हुआ' की तर्ज़ पर।
जब सारी दुनिया में तरक्की़ की हवा है और लोग तरक्की की राह पर चलने के ख़्वाहिशमन्द हैं तब ये तालिबान भाई तरक्की के दुश्मन नंबर एक बने हुए हैं। इनका विश्वास लीक छांडि़ चलने में है। इन्हें तरक्की से नफ़रत है। दरअसल ये सारी दुनिया से अलग दीखना चाहते हैं इसलिये वो काम नहीं करते जो बाकी दुनियावाले करते हैं। ये दुनिया से अलग राह पर हैं। चलना इन्हें भी है, पर जब सारी दुनिया आगे बढ़ रही है तो इन्हें पीछे लौटना है। इनकी दिशा बढ़ने की नहीं, लौटने की है। अरे भाई, लौटने में भी तो चलना पड़ता है। सो, ये चल तो रहे ही हैं।
जब सारी दुनिया में इल्मो-अदब का परचम लहरा रहा है तब ये खुदा के बन्दों पर जंगल के क़ानून-क़ायदे थोपने पर आमादा हैं। ये चाहते हैं कि शहरों के क़ायदे-क़ानून बहुत हो लिये अब जंगल के क़ायदे-क़ानून चलने चाहिएं। पीछे लौट जाने में भी तो परिवर्तन है और परिवर्तन प्रकृति का नियम है। भाईलोग प्रकृति की ओर लौट रहे हैं।
यही वजह है कि अपने पड़ौस में स्वात घाटी में भी इन दिनों परिवर्तन की बयार चल रही है। पाकिस्तानी हुकूमत के ऊपर तालिबानों की हुकूमत नाजि़ल है। मज़हब के ठेकेदार तालिबानों ने सारी घाटी पर कब्ज़ा करके नए नए फ1रमान जारी कर दिए हैं। बहुत सोचने समझने के बाद वे लौटकर इस नतीजे पर पहुंचं हैं कि स्कूल कॉलेजों की पढ़ाई में कुछ नहीं रखा है। खेलेंगे कूदेंगे बनेंगे नवाब, पढ़ेंगे लिखेंगे तो होंगे ख़राब। तालिबान चाहते हैं कि बच्चे ख़़राब न हों बल्कि बच्चा बच्चा नवाब बने। यही वजह है कि बच्चों को, ख़ासकर बच्चियों को पढ़ाई से महरूम कर दिया गया है। क्या करोगी स्कूल जाकर। घर में रहो, खाना पकाओ और बच्चे पैदा करो। बस, तुम्हारे पैदा होने और जीने का यही मक़सद है।
इस नेक मक़सद के लिए मदरसे तबाह कर दिए गए हैं। औरतों की तरक्की के लिए भी कई सुधार कानून बनाए गए हैं। पाकिस्तानी और अफ़गानी सरकारों को धता बताकर तालिबानी रेडियों से प्रसारण हो रहे हैं कि तमाम कुंआरी लड़कियां तालिबानियों से ब्याह दी जाएं। ये अच्छी नस्ल बच्चे पैदा करने की तालिबानी मुहिम है। ये भी फ़रमान हैं कि औरतें सिर से पांव तक ढकी रहें। घरों से निकलें तो ढकी ढकी, औरों को दीखें तो ढकी ढकी। अब जनाब जब ढकी ढकी ही रहना है तो लाली पावडर लपिस्टिक का बेहूदा खर्चा क्यों। राष्ट्रीय बचत में इजाफे के लिए ठोस और कारगर तालिबानी उपाय।
दरअसल हिन्दुस्तानी कहावत लीक छांडि़ तीनौं चलैं, सायर सिंह सपूत के मुताबिक गौर करें तो सपूत तो ये हैं नहीं। पर सपूत हों न हों भाईलोग किसी सीमा तक सिंह और सायर तो हैं। एके-47 से निकली इनकी मौत की शायरी 'ख़वातीनों-हज़रात' की पूरी ऐसी तैसी करके ही दहशती-मुशायरे मुक़म्मिल करती है। गोलियों की गज़लों और कब्रिस्तानी नज़्मों के दीवाने इन लोगों ने दुनियाभर में नेस्तनाबूदी के जो कलाम पेश किये हैं वे इन्हें मौत का शायर ही करार देते हैं। अगर आप इन्हें शायर नहीं मानते तो क़ायर मान लें। वो तो ये हैं ही। तो क्या भाई लोग सिंह हैं। अब अगर कायर हैं तो इन्हें सिंह कैसे मान लें। ना भई ना। सिंह तो उतने परसेंट ही हैं जितने परसेंट जंगल में रहते और अपना जंगली कानून चलाते हैं।
अब अपने से तो इन्हें तालिबान भी नहीं कहा जा रहा हैा दरअसल तालिबान पैदा करना अपनेराम का भी पेशा है। मुम्बइया हिन्दी में बोले तो अपुन बरसों से कॉलेज में बच्चा लोग को पढ़ारेला है, सिखारेला है। पन अपने को अगर पता चला कि अपुन जिनको पढ़ाया वो पढ़लिखकर अपनीच वाट लगारेला है तो अपुन किसी अंधारकूंआ में कूदने को तैयार हो जाएंगा। पर मज़े की बात ये हैं कि ये बन्दूकवाला तालिबान तो उनके उस्ताद लोग का ही नहीं बल्कि सारे कौम का ही वाट लगारेला है और क़ौम वाला, मज़हब वाला चुप बैठेला है। रामझरोखे बैठ के जग का मुजरा ले रेला हैा
3 टिप्पणियां:
जिसको कलम थमा करके,
लिखना-पढ़ना सिखलाया।
उसने नेता बन कर के,
खुद हमको ही हड़काया ।।
यही रीति है, यही नीति है,
बुधकर समझ न पाया ।
कलियुग का प्रताप यही है।
राम नाम का जाप यही है।।
अच्छी पोस्ट लिखी है।
वास्तविकता को दो-टूक वर्णन। प'कहन' में आपको कोई जवाब हेईच नहीं बाप। क्या गजब करेला है। बोलती बन्द।
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