देश के सुप्रसिद्ध अरबपति हिन्दुजा बंधुओं के संयुक्त परिवार में हाल ही में छोटे भाई अशोक हिन्दुजा की बेटी अंबिका बिदा हुई। इन पंक्तियों के लेखक को भी इस भव्य विवाह समारोह में सपत्नीक शरीक होने का अवसर मिला। यह अवसर इसलिये अविस्मरणीय नहीं था कि वह किसी अरबपति के परिवार में था या इसमें करोड़पतियों और अरबपतियों ने शिरकत की थी, बल्कि इसलिये वे पल यादगार बने क्योंकि सामाजिक उच्चता की उस सीढ़ी पर पवित्र परम्पराओं और सादगी के अपूर्व दर्शन हुए! वह तड़क भड़क, दिखावा, शोरशराबा और उछलकूद सर्वथा गायब थी जो आज प्रायः हर ऐसे समारोह का हिस्सा बन चुकी है!
बेटी की बिदाई और उससे पूर्व के पारम्परिक वैवाहिक संस्कार जिस आस्था और रीतिरिवाज़ों के साथ संपन्न हुए उसे देखकर इतना तो विश्वास हुआ कि भारतीय समाज और उसमें भी हिन्दू समाज में रिश्तों की पवित्रता और मर्यादा, वैदिक रीति-रिवाजों के प्रति आस्था निम्न से उच्चतम श्रेणी तक सहज देखी जा सकती है। पर साथ ही यह
भी लगा कि अपार समृद्धि के सागर में तैरते हुए भी शालीनता को कैसे बनाए रखा जा सकता है।
अंबिका और रमण के विवाहपूर्व स्वागत समारोह में तथा विवाह समारोह में श्वेतिमा और शालीनता का मनमोहक मिश्रण अतिथियों को लुभा रहा था। सिंध प्रांत से आकर भारत में बसे व्यापारी परमानन्द और जमुनादेवी ने अपने
परिवार में पारम्परिक आस्तिकता और धर्मकर्म की जो नींव रखी और अपने चारों बच्चों श्रीचंद, गोपीचन्द, प्रकाश और अशोक हिन्दुजा को जिस तरह के आत्मीय संस्कार दिए उसीका परिणाम है कि आज समृद्धि के शिखर पर बैठा हिन्दुजा परिवार परस्पर सौमनस्य, सौजन्य और रिश्तों की अटूट डोर में बंधा हुआ आदर्श संयुक्त परिवार बना हुआ है! दशरथ के चारों बेटों की तरह चारों हिन्दुजा भाइयों का परस्पर स्नेह और व्यवहार कमसेकम आज के युग में तो सुखद आश्चर्य ही है। अथाह संपत्ति और अतुलित ऐश्वर्य ने इस परिवार के बीच सीमेंट का काम किया है! साझेपन की सौंधी सुगंध से हिन्दुजा स्वयं तो महकते ही हैं, औरों को भी महकाते हें!
यह महक हमने मुम्बई में 'अम्बिका-रमण' परिणय के स्वागत समारोह में तथा बाद में विवाह के मांगलिक अनुष्ठान में महसूस की। महालक्ष्मी क्षेत्र के टर्फ क्लब में 11 फरवरी की सांझ हरितिमा और श्वेतिमा की सांझ थी! चारों ओर पसरे उपवन के हरियल माहौल को शुभ्र्रता की सजावट ने अद्भुत कांति प्रदान की थी। सारे वातावरण में चकाचैंध की जगह अपूर्व शांति और हलका प्रकाश मन को आनंदित कर रहा था। कर्णप्रिय हरे रामा हरे कृष्णा की मन्द मन्द धुन सर्वत्र एक आध्यात्मिकता बिखेर रही थी! और ऐसे मोहक वातावरण में हिन्दुजा परिवार की ओर से स्वागत को तत्पर भद्र वेशभूषा में शालीन युवक-युवतियों का जत्था मार्गदर्शन को तैयार था। शायद ही कोई अतिथि इस आतिथ्य से वंचित रहा हो! दरवाजे पर हिन्दुजा बंधुओें में द्वितीय गोपीचन्द हिन्दुजा और उनके आत्मज स्वयं स्वागत को तत्पर थे! हमें देखकर उन्होंने गंगाजी का स्मरण किया और तुरंत पूछा कि गंगा जी का प्रसाद लाए या नहीं। हमारी स्वीकारोक्ति मिलने पर वे अभिभूत और धन्य हो गए! गंगा जी के प्रति उनके इन मनोभावों ने हमें भी निहाल कर दिया। उनके छोटे भाई प्रकाश हिन्दूजा तो पूरे परिसर में घूमघूमकर अतिथियों का स्वागत कर रहे थे और उनसे हालहवाल पूछ रहे थे। इस अवसर पर भी वे हरिद्वार की हरकी पौड़ी के श्रीगंगामंदिर के अधूरे जीर्णोद्धार कार्य की प्रगति के समाचार लेना नहीं भूले।
टर्फ क्लब में एक ओर एक छोटे से मैदान के सामने हरे पत्तों और सफेद फूलों से सजा एक मंच था। मंच पर श्वेत साड़ी में सजी सुन्दर छरहरी दुल्हन अम्बिका हिन्दुजा और काले औपचारिक सूट में दूल्हा रमण मक्कड़ विनम्रता से अतिथियों के अभिवादन स्वीकार रहे थे! उन्हींके साथ खड़े थे हिन्दुजा परिवार के प्रमुख श्रीचन्द हिन्दुजा और बेटी के बाप अशोक हिन्दुजा! दोनों काले पार्टी सूट में। दोनों की पत्नियां और बहन भी मंच पर आत्मीयता बिखेरती उपस्थित थीं। सभी मिलकर आगंतुकों और अभिवादकों की बधाइयां स्वीकार रहे थे! पर वहां केवल बधाइयां और पुष्पगुच्छ ही स्वीकारे जा रहे थे। उपहारों को स्वाकारने में यह परिवार असमर्थता ही प्रकट कर रहा था। देर रात तक लोग पंक्तिबद्ध होकर मंच पर जाते रहे और लौटकर सुस्वादु व्यंजनों का आनन्द लेते रहे!
अतिथियों में जहां प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण और उनके मंत्रिमंडलीय साथी थे वहीं कांग्रेसी नेता और पूर्वमुख्यमंत्री सुशील कुमार शिन्दे, राम नाइक, भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी आदि दर्जनों नेताओं के अलावा बड़ी संख्या में फिल्मी सितारे भी मौजूद थे! दरअसल अम्बिका हिन्दुजा लंदन के इंटरनेशनल फिल्म स्कूल से पढ़कर आई नवोदित फिल्म निर्माता हैं। उनकी 'तीन पत्ती' में खुद मेगास्टार अमिताभ बच्चन जुड़े हुए हैं। स्वाभाविक है कि अम्बिका-रमण परिणय में फिल्मी सितारों की धूम होती! अभिषेक बच्चन, हृतिक रोशन, जिया खान, गोविन्दा, ईशा देओल, करण जौहर विवेक और उनके पिता
सुरेश ओबेराय, सुभाष घई ही नहीं पुरानी पीढ़ी के स्टार देवानन्द भी नवयुगल को
आशीष देने आए थे। समाज का शायद ही कोई ऐसा वर्ग रहा होगा जिसने इस विवाह में शिरकत नहीं की।
पत्रकार, लेखक, संपादक, खिलाड़ी, उद्योगपति, व्यापारी, गरज कि हर वर्ग ने इन परम्पराप्रिय आस्तिक परिवार को जीभरकर असीसा! श्रृंगेरी मठ के जगद्गुरू शंकराचार्य श्रीअभिनव सच्चिदानन्द तीर्थ और परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के परमाध्यक्ष मुनि श्री चिदानन्द जी महाराज ने इस अवसर पर विशेष आशीष देते हुए कहा कि ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास से भी महत्वपूर्ण गृहस्थाश्रम है क्योंकि यही शेष तीनों आश्रमों को पालता पोसता है! आज के युग में हिन्दुजा परिवार एक आदर्श गृहस्थी के रूप में समाज और धर्म की सेवा कर रहे हैं जो अनुकरणीय है!
इस तरह सभी के आशीषों से 11 फरवरी को आरंभ हुआ यह भव्य किन्तु सादा विवाह समारोह 12 फरवरी को संपूर्ण विधिविधान के साथ जुहू के हिन्दुजा हाउस में संपन्न हो गया और सम्मिलित होने वालों के मन पर अमिट यादें छोड़ गया! मेरे इस आलेख को पढ़कर रतलाम ये भाई विष्णु बैरागी जी ने ठीक ही टिप्पणी की हैा उन्होंने लिखा है कि-- 'बडे लोग' यदि सादगी बरतेंगे तो गरीबों का भला ही करेंगे। वरना बडे लोगों के प्रदर्शन में गरीबों की मौत है।
-मुम्बई से लौटकर कमलकांत बुधकर-
2 टिप्पणियां:
इस सादगी पूर्ण पारंपरिक विवाह के विवरण को पढ़ मन उल्लासित हो उठा. आभार.
कहते हैं "अधजल गगरी छलकत जाये" मैंने अक्सर देखा है कि ऐसे लोग जो अंग्रेज़ी नहीं जानते, अंग्रेज़ी में निमंत्रण पत्र छपवाने में शान बढ़ गई मानते हैं ! भले ही, इसके लिये प्रेस में पड़े हुए किसी पुराने कार्ड का मैटर ज्यों का त्यों इस्तेमाल करना पड़े ! ऐसे परिवार जिसके सदस्य न तो ठीक से अंग्रेज़ी जानते हैं और न ही अपनी भाषा व संस्कृति से उनका विशेष परिचय है, सबसे अधिक हीनता बोध से ग्रस्त रहते हैं।
दूसरी ओर, ऐसे परिवार जहां साल में छः महीने यूरोप - अमेरिका में बीतते हैं, शुद्ध हिंदी में, बल्कि कभी कभी तो देववाणी संस्कृत में अपने निमंत्रण पत्र तैयार कराते हैं। विदेश में लंबे समय रह लेने के बाद उनको यह भली प्रकार ज्ञात हो चुका होता है कि व्यक्ति को सम्मान उसकी अपनी भाषा, अपनी संस्कृति ही दिलाती हैं !
हीनता बोध से ग्रस्त लोगों मे स्वाभाविकतः आत्मविश्वास का घोर अभाव होता है। वह ’समाज के भय से’ बंधी-बंधायी लीक पर चलने में ही अपनी भलाई समझते हैं ! ’लोग क्या कहेंगे’ - इस भय से सभी कुरीतियों को ज्यों का त्यों स्वीकर करते चले जाना उनकी विवशता बन जाती है। यदि ऐसे लोगों को कहा जाये कि शादी रात को नहीं दिन में हो, शराब पीकर बैंड के आगे, सड़कों पर ऊल-जलूल ढंग से मटकना न हो, बारात में दस-पांच निकट संबंधियों को लेकर सीधे कन्या पक्ष के घर पहुंचा जाये, संगीत की भीनी-भीनी फुहार व वेद की ऋचाओं के साथ सप्तपदी के मंत्रों का गायन हो, दहेज़ का अश्लील प्रदर्शन न हो -- तो ऐसे लोग भयंकर टॅन्शन में आ जाते हैं ! कभी समाज का बहाना, कभी बच्चों की जिद के आगे बस न चलने का बहाना बना कर ऐसे लोग उसी बंधी-बंधायी लीक पर चलने में ही अपनी भलाई मानते हैं।
निश्चय ही समाज को सही राह दिखाने की जिम्मेदारी उच्च पदस्थ लोगों की होती है । महाजने येन गता स पंथाः ! बड़े लोग जिस राह पर चलें, बाकी जनता उनका ही अनुसरण करती है। यहं बड़े लोगों से तात्पर्य पैसे वालों से नहीं वरन् समाज को नेतृत्व दे रहे लोगों से है।
बारात में शराब पीकर सड़कों पर उछलते कूदते हुए आधी रात को वधुपक्ष के द्वार पर पहुंचना जबकि स्वागत करने के लिये आये सभी मेहमान खा पी कर अपने अपने घर वापिस जा चुके हों, डीजे का कर्णभेदी शोर जिसके चलते आपस में बात करना भी असंभव प्रतीत हो, धन का अश्लील प्रदर्शन -- इन सब कुरीतियों को समाप्त किया जाना चाहिये पर यह होगा तभी जब समाज देखेगा कि वे लोग जो समाज में अग्रणी माने जाते हैं, इन सब बुराइयों से दूर हैं । तब उनमे भी इतनी हिम्मत आयेगी कि इस भद्दे प्रचलन से मुंह मोड़ सकें।
सुशान्त सिंहल
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