शुक्रवार, 29 मई 2009

संसदेव कुटुम्बकम्


    अपनेराम के बापश्री अब इस दुनिया में नहीं हैं। 102 के होकर कूच कर चुके हैं। वे बड़े आदमी थे। इतने बड़े कि जिन्दगी भर खुद को छोड़कर बाकी समाज और परिवार के लिये मरते-खपते रहे। वह सब कुछ किया जिससे औरों को लाभ हो। पर, वही नहीं किया जो करना चाहिए था। मसलन, अच्छा खासा व्यक्तित्व होते हुए भी नेता नहीं बने। बन जाते तो अपने जमाने के बड़े नेता होते। पर उनके बाप-दादा भी जिन्दगीभर नेताई से दूर रहे तो असर बेटे में आना ही था, सो आ गया। ये वो दिन थे जब असली गुण और असली खून अगली पीढ़ी तक पहुंचाए जाते थे।

    अब बेटे ने जो कुछ नहीं किया उसका सीधा नतीजा अपनेराम को भुगतना पड़ रहा है। बाप नेता होते तो महामहिम ने अपनेराम को भी अशोक हाल में बुलवाकर शपथ दिलवा दी होती। पर किस्मत में जब चपत खाना लिखा हो तो उसे कौनसी माई या कौन माई का लाल शपथ खिलवाएगा! यह बात ठाकुर अर्जुनसिंह और शिवराज पाटील से ज्यादा बेहतर कौन समझेगा। अर्जुन के तीर भौंथरे कर दिए गए हैं और शिवराज नये सूट का कपड़ा खरीदने बाजार भेज दिए गए हैं। राजस्थान में रेत पर इतने ओले पड़ रहे हैं कि शीशराम जी को शीश बचाना भारी हो रहा है। गिरिजा बहन को भी कांग्रेस का यह नया दर्शन समझने विश्‍वविद्यालय लौटना पड़ सकता है।

    अपना भारत विरोधाभासों का देश है। यहां जो होता है उसका पहले या तो विरोध होता है या फिर समर्थन। अगर समर्थन पहले हो जाए तो बाद में विरोध पक्का समझो। और अगर शुरू में समर्थन मिले तो मान लेना चाहिए विरोध का प्लेटफार्म कहीं तैयार हो रहा है। हम भारतीय सबकुछ कर गुजरने में यकीन रखते हैं। हमने राजतंत्र को गालियां दीं और लोकतंत्र को सिरमाथे बिठाया। जब वह हमारे रगों में घुस गया तो हमने राजा-रानियों को चुनाव लड़वाकर उन्हें फिर लोकतंत्र की गद्दियां सौंप दीं। वह गया नहीं। ये और आ गया। दोहरे मजे! या चक्की के दोहरे पाट!

    हमने पहलेपहल परिवार को इकाई माना और फिर धीरे धीरे मकान, मौहल्ले, गांव, शहर, प्रांत, देश से लेकर सारी वसुधा को कुटुम्ब कबूल लिया। वसुधैव कुटुम्बकम्। हाल ही में हम वसुधा से संसद की ओर लौटे हैं। आजकल संसद में हम परिवार बनाने और बढ़ाने में व्यस्त हैं। संसदेव कुटुम्बकम् । कांग्रेस की सर्वाम्मा ही फिलवक्त सारे देश की सर्वाम्मा हैं। उनकी समझ में सारे सूत्र आ गए हैं। अगर संसद में रिश्‍तेदार होगे तो फिर आने वाला वक्त रिश्‍तेदारों का ही होगा इसमें कोई शक नहीं। सर्वाम्मा सबको और सबके रिश्‍तेदारों और विरासतदारों को बता देना चाहती है कि उनकी असली खैरख्वाह सर्वाम्मा ही है। तभी तो गांधियों को एक तरफ करके सर्वाम्मा ने पहले अब्दुल्लाओं, पायलटों, सिंधियाओं, करुणानिधियों, और ऐसे डेढ़ दर्जन से ज्यादा को मंत्री वाली रेवडि़यां बांट दी हैं जिन्‍हें अगर डॉ मनमोहन सिंह नान-रिश्‍तेदारों और नान विरासतदारों में ढूंढते तो वहां और आसानी से मिल जातीं। पर खैर...। अब संसद संसद तो हैं। उसके साथ साथ कुटुम्बों का आनन्दवर्धक स्थल भी है।

    देखकर आंखें तृप्त हो जाती हैं कि कैसे कैसे लोग रूठकर, मनाकर, धमकाकर, जिदकर मंत्रिमण्डल में घुसे हैं। प्रख्यात शेख अब्दुल्ला के नूरेनजर फारुक अब्दुल्ला और आगे उनके भी दामाद सचिन पायलट दोनों ही सरदार मनमोहनसिंह के मनमोहक मंत्री हैं। फारुक और सचिन के चेहरे संसद के सर्वाधिक रिश्‍तासंपन्न चेहरे हैं। फारुक अगर एक मुख्यमंत्री के बाप और एक के बेटे हैं तो सचिन भी ससुर से पीछे नहीं है। वे पूर्व केन्द्रीय मंत्री के बेटे और एक वर्तमान मुख्यमंत्री के जीजा हैं।

    पूर्व-राष्‍टृपति जाकिर हुसैन के नाती और पूर्व-राज्यपाल खुरशीद आलम खां के नूरे नजर सलमान खुरशीद और पूर्व-उपप्रधानमंत्री जगजीवनराम की बेटी मीराकुमार अपनी हाई-प्रोफाइल विरासत के चलते अधिकार पा गए हैं मंत्री बनने का। गुजरात के पूर्व-मुख्यमंत्री अमरसिंह चौधरी तथा माधवसिंह सोलंकी के पुत्र क्रमश: तुषार चौधरी और भरतसिंह सोलंकी, महाराष्‍टृ के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटील तथा पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सरदार बेअंतसिंह के पोते क्रमश: प्रतीक पाटील और रवनीतसिंह,पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और पटियाला के पूर्व महाराजा अमरिन्दर सिंह की पटरानी परणीत सिंह, म.प्र. के पूर्व-उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव के आत्मज अरुण यादव, जीके मूपनार के बेटे जीके वासन, ग्वालियर नरेश माधवराव के गद्दीनशीन ज्योतिरादित्य सिंधिया और हरियाणा के नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री दलबीरसिंह की बिटिया शैलजा, पूर्व लोकसभाध्यक्ष पीए संगमा की बेटी अगाथा संगमा, पूर्व मुख्यमंत्री सीपीएन सिंह के पुत्र आरपीएन सिंह, उत्तरप्रदेश के कांग्रेसाध्यक्ष रहे जितेन्द्र प्रसाद के पुत्र जितिन प्रसाद आदि तो नेताओं से अपनी रिश्‍तेदारियों के चलते मंत्रिमण्डल में आ ही गए हैं। प्रियादत्त, सुप्रिया सुळे जैसे अनेकानेक चेहरे अभी मंत्रिमण्डल से बाहर हैं पर संसद की शोभा तो बढ़ाएंगे ही।

    इस संसद का अपना अलग जलवा है। संसद के सर्वाधिक होनहार अब भी ‘कुमार‘ हैं। अब अगर अगले पांच साल में इस होनहार कुमार के हाथ पीले होने हैं तो उस दिशा में भी देश को सोचना है। देश के लिये संसद को सोचना है। संसद इस मामले को भी जल्दी से जल्दी संज्ञान में ले और लाना पड़े तो अध्यादेश की भी तैयारी करे। अपनेराम को यकीन है कि रिश्‍तों और नातेदारियों में यकीन रखनेवाली पन्द्रहवीं संसद और उसकी सर्वाम्मा इस अध्यादेश के पक्ष में ही होगी। राहुल बाबा घोड़ी चढ़ें तो विपक्ष में बैठे अपने वरुणबाबा को भी कुछ जोश आए। इसी बहाने शायद विपक्ष अंगड़ाई ले ले।
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सादर,
डॉ. कमलकान्‍त बुधकर

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

वाह मामाजी

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

शपथ चपत की रपट
जोरदार रही।

अजित वडनेरकर ने कहा…

आप कब खाट खड़ी कर रहे थे और कब घुड़चढ़ी की बेला बांच रहे थे समझ में नहीं आया।

जो आया वह ये कि पोस्ट बढ़िया थी...

Asha Joglekar ने कहा…

नई संसद का सही विश्लेषण और विवेचन । बढिया पोस्ट ।

Lata ने कहा…

बहुत बढ़िया