गुरुवार, 25 जून 2009

मध्‍यावधि मुख्‍यमंत्री

बचपन की बात है। अपनेराम खेलते खेलते दौडकर उस कमरे में जा पहुंचे जहां चटाई पर बैठे पिताश्री चाय पी रहे थे। भरा हुआ चाय का कप जमीन पर रखा था जिस पर ठोकर लगी और सारी चाय बिखर गई। कपप्‍लेट के टुकडे दूर तक फैल गए। यह देखकर पिताश्री चाय से भी ज्‍यादा गरम होगए। नतीजा यह कि, ''देखकर नहीं चल सकते'', इस गुस्‍साई आवाज के साथ अपनेराम पिट गए।

कुछ दिनों बाद अपनेराम उसी चटाई पर बैठे चाय पी रहे थे। कपप्‍लेट वैसे ही फर्श पर रखी थी। तभी पिताश्री कमरे में घुसे। अनजाने में उनकी ठोकर लगी और कपप्‍लेट समेत चाय ये जा और वो जा। अपनेराम फिर पिट गए। गुस्‍साई आवाज फिर उभरी..''कपप्‍लेट को रास्‍ते में रखा हुआ है, इतनी भी तमीज नहीं है।''

दृष्‍टांत कहता है कि चाहे जो हो जाए, पिटेंगे छोटे ही । चाकू और खरबूजे की यारी दोस्‍ती में कटेगा खरबूजा ही। अब देखिए न, बाईस सीटें खो देने वाला बडा नेतृत्‍व नैतिक जिम्‍मेदारी की चर्चा तक से दूर है जबकि पांच सीटें खोने वाले प्रदेश के मुख्‍यमंत्री, सवा महीने बाद ही सही, ''हार'' पहनकर कुर्सी छोडने पर मजबूर कर दिए गए हैं। दिल्‍ली के रास्‍ते पर देहरादून चलता तो बात समझ में आती। पर सवा महीने तक देहरादून इंतजार करता रहा कि दिल्‍ली चले तो सही। दिल्‍ली के बडे ''हार'' पहनें तो सही। पर जब किसी ने करवट नहीं ली तो देहरादून ही बेचारा अकेले हार का जिम्‍मेदार बन गया।

यूं देखा जाए तो उत्‍तराखण्‍ड में पार्टी और भगतदा दोनों ही अपना इतिहास दोहरा रहे हैं। राज्‍य बना तो कोश्‍यारी की कोशिश पर भाजपा ने प्रदेश को दो दो मुख्‍यमंत्री चखाए थे। स्‍वामीजी को हटाकर कोश्‍यारी लाए गए थे। तबसे पार्टी और कोश्‍यारी दोनों को आदत पड गई है मध्‍यावधि मुख्‍यमंत्री लाने की। जनरल साहब को भी स्‍वामी बना कर रख दिया गया। पर इस बार भुवन ने भगत को पटकी दे दी है। भगत के पुराने पट्ठे पर हाथ रखकर मुख्‍य‍मंत्री का आसन भगत जी के सपने चकनाचूर कर दिए है। जाते जाते फौजी हाथ दिखा ही गए।  

पर सच तो यही है कि जितने बडे लोग उतनी मोटी चमडी। बडों का कोई नुक्‍सान नहीं है। पार्टी में दलाध्‍यक्ष और लोकसभा में दलाध्‍यक्ष जहां थे वहीं हैं। यानी करारी हार का अध्‍यक्षों पर कोई असर ही नहीं है। पर आत्‍मा की कचोट पर कुछ लोगों ने पद छोडे तो हंगामा हो गया।  इस हंगामें का असर यह कि मारे गए गुलफाम। अब तक जनरल साहब प्रदेश में जीतते जिताते आ रहे थे तो कोई श्रेय नहीं था पर देश भर में पार्टी क्‍या हारी हार ठीकरा प्रदेश वालों के सिर फोड दिया गया। यह प्रजातंत्र का सजातंत्र है।

बहर‍हाल, अपनेराम दूसरे कारणों से खुश हैं पार्टी से कि वह बडी संवेदनशील है। कवि और कविता का सम्‍मान करती है। उसने प्रधानमंत्री से मुख्‍यमंत्री तक की कुर्सियों पर कवि बिठाए हैं। अटल बिहारी और शांताकुमार के बाद अब कवि निशंक पदासीन हैं राज्‍यासन पर। पार्टी ने निशंक का राज्‍यारोहण करके यह भी बता दिया है कि वह लालभाई जैसे वार्धक्‍य को ही नहीं निशंक जैसे युवा को भी सम्‍मान और मौका देती है। उत्‍तराखंड में अब बंदूकरायफलधारी की जगह कलमधारी ने ले ली  है। एक कवि, एक पत्रकार मुख्‍यमंत्री होगा तो संवेदना का पारा चढेगा ही।

राज्‍यभर के कवि शायर खुश हैं कि अब ''कदमताल'' की जगह ''रुबाइयों और गीतों'' का जमाना आगया है। राज्‍य की उपलब्धियां ''अर्ज किया है'' की तर्ज पर प्रकाशित की जाएंगी। कविसम्‍मेलनों और गोष्ठियों की बहार होगी। विमोचनों और लोकार्पणों के समारोहों में मंत्रीगण उपलब्‍ध रहेंगे। राज्‍य का अधिकारीवर्ग पंत प्रसाद निराला की किताबें पढने की तैयारी कर रहा है। हिन्‍दी और हिन्‍दीवालों के दिन बहुरने के दिन आ रहे हैं।

1 टिप्पणी:

अनूप शुक्ल ने कहा…

बड़ा शानदार अर्ज किया है।