शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009
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हौं जानत तुम बड़े व्यस्त हो
पै तनिक समै हमकूँ भी दीजै
कछु हमरी सुनि लीजै।
घन बरसत बाढत जल नदियन
बुध जन कहत यही है मौको
मुख अकास करि पीजै
कछु हमरी सुनि लीजै।
शठ, मूरख औ' अति रसबंजर
दुनिया माहि बसत हैं कबतैं
तिन को कछु उपदेस न कीजै
कछु हमरी सुनि लीजै।
कबित कला रुन-झुन झांझर की,
मधु मुस्कान ठठाकर हंसिबौ -
अनल निदाघ माँझि रस भीजै
कछु हमरी सुनि लीजै
2 टिप्पणियां:
अंधकार को मिटाकर प्रकाश लाने के लिए दीए जलाने की कोशिश तो करते ही रहनी पडेगी !
पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना। जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना ।।
बहुत सुन्दर!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
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