शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

बिगबॉस का सीटी संपादन

इन दिनों लोग बीबी के घर में घुसकर वहां के जलवों का आनन्‍द ले रहे हैं। बीबी का घर चर्चा का विषय है। वहां की रंगीनियां रंग पर यानी अपने कलर चैनल पर गिखरी पड़ी हैं। सुबह से देर रात तक तक इस चैनल पर रंग ही रंग हैं। अनदेखा बिहार है, पता नहीं कौनसा राजस्‍थान है और मराठियों से छिपा हुआ महाराष्‍ट्र है। और है कथित कन्‍या विरोधी हरियाणा जहां के आईएएस तक औरतखोर हैं। इस चैनल के अधिकांश धारावाहिकों में देश के प्रांतों के जो चित्र दिखाए जा रहे हैं वे वहां के विकास के चित्र हैं या पिछड़ेपन के, यह बात शायद निर्मातागण धारावाहिकों के अंतिम एपीसोड्स में ही बताएंगे। तब तक अपनेराम की समझदारी पर ही टिके हैं इन धारावाहिकों के संदेश।

बहरहाल, जो समझ में आ रहा है वह है जि़दा धारावाहिक 'बीबी' यानी 'बिग बॉस' और 'बिग बॉस का घर'। इसमें सब कुछ बिग बिग यानी बड़ा बड़ा है। इसके प्रस्‍तोता तो सबसे ही बड़े हैं। खुद ही एक ज़माने से बिग बी के रूप में विख्‍यात हैं। कद-काठी से बड़े, आचार-विचार से बड़े, और तो और स्‍वभाव-प्रभाव से भी बड़े हैं। जिसके साथ जुड़ते हैं उसीको बड़ा  बना देते हैं। जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है उनका आभामण्‍डल ‍भी बढ़ रहा है। एक बार वे लोगों को करोड़पति बनाने के लिए जुटे तो लोग बने हुए करोड़पतियों को भूल गए, पर याद रह गए बिग बी। अब वे बिग बी के घर में लोगों को रख रहे हैं तो भी लोग वहां रहनेवालों की भले थू थू करें पर बिग बी के कारण कलर की टीआरपी तो रंगीन से रंगीनतर होती जा रही है।

लेकिन इस बार बिग बी बिग बॉस से शिकायत हो सकती है कि बीबी के घर के सदस्‍य छांटने में कमी रह गई है। छांटने की इस कमी के चलते  इस बार बिग बॉस के घर में कुछ ''छंटे छंटाए'' ही सदस्‍य बन पाए हैं। दर्श्‍शक इन छंटे छंटाए लोगों को देखकर सिर पीट रहे हैं। खासकर इन सदस्‍यों की भाषा और व्‍यवहार पर दर्शक शरमिन्‍दा हैं।

बिग बी जैसे बिग बॉस के ये घरवाले आम भारतीय परिवार के सदस्‍य नहीं लगते हैं। इनका व्‍यवहार अगर दर्शक के सिर के ऊपर से निकल जाता है तो इनकी भाषा इनकी खुद की कमर के नीचे टहलती है। और इतना अधिक टहलती है कि बिग बी को सीटी बजानी पड़ जाती है। बिग बॉस के घर से प्रसारित होने वाली अश्‍लील भाषा की इन्‍तहा यह है कि सीटी ही सीटी है पूरे धारावाहिक में। बेचारे बिग बी सीटी बजाते बजाते दुखी हो चुके होंगे अपने घरवालों की भाषा पर। अपनेराम तो इसलिये भी दुखी हैं कि बिग बी सीटी बजाकर भाषा की बेहूदगी तो ढक देते हैं पर व्‍यवहार की अश्‍लीलता और बेहूदगी कैसे ढके। उसे तो अपनेंराम जैसे करोड़ों दर्शकों को झेलना ही है।         

2 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

सीटी बजाना ही कौन सी अच्‍छी आदत है। पर एक बुराई को छिपाने के लिए हल्‍की बुराई को अपनाना आज के बाजार की जरूरत है। जैसे बड़ी लकीर को छोटा करने के लिए उससे बड़ी लकीर खींचना ... पर यहां पर बड़ी लकीर को छोटा करने के लिए बड़ी नहीं छोटी लकीर सीटी के रूप में खींची जा रही है। अच्‍छी जानकारी दी आपने कि सीटी बिग बी बजा रहे हैं। मैं तो सोच रहा था कि ये हरकत जरूर कमाल की रही होगी। पर वो खुद ही कैसे बोलता और खुद ही कैसे बजाता होगा। उसके आज वहां से निकाले जाने के बाद राज खुल जाता या और उलझ जाता, ये तो मालूम नहीं। पर सीटी न ही बजानी पड़े क्‍या ऐसा कार्यक्रम इस बाजार में चल नहीं सकता। या ये सब घर में भी वैसे ही हैं, जैसे यहां पर नजर आ रहे हैं।

आपकी चिंता जायज है। पर बाजार जिसकी चिता न सजा दे, वही थोड़ा है।

BOLO TO SAHI... ने कहा…

big boss ke ghar ke bare me wastav me yahi sach hai aapne bilkul sahi kaha. is baar na jane kahan kahan se aa tapke hain kisi ke chaye videsh se aati hai to break fast kahi dusre desh se kahte thakte hai.