शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

तोहफा-ए-दीवाली

आज सुबह सुबह अपनेराम के पड़ौसी ठाकुर गुलफामसिंह अचानक दरवाजे पर नमुदार हुए। सोचा दीवाली की रामराम करने आए विहोंगे। पर इतनी सुबह । ठाकुर साहब देर रात तक शीशे के गिलासों से खेलते हैं और सुबह दस साढ़े दस तक बिस्‍तर नहीं छूटता उनसे। आज सुबह सात बजे अपने दरवाजे पर हाजि़र देखा तो अपनेराम का मुंह खुला का खुला रह गया। ठाकुर साहब इलाके के राजनेता रह चुके हैं और एकाध बार संसद में हाजरी लगा चुके हें। पर अब तो दशकों से घर पर ही आराम फ़रमां हैं। कभी कभार दोपहर बाद अपनेराम से राजकाज पर चिमंगोइयां करने आ जाते हैं। अखबारी समाचारों पर बहसबाजी करना हम दोनों का धर्म होता है तब। दोपहर चार से छह बजे के बीच हमारी हर गरमाती और ठण्डियाती है। क्‍यों कि शाम ढलते ही ठाकुर साहब की सायंकालीन पाठशाला खुलती है।

आज ठाकुर साहब को बेवक्‍त दरवाजें पर देखा तो माथा ठनका। वे राम राम करते आ बैठे अपनेराम की चारपाई के सामने पड़े मूढ़े पर। बोले, ‘भाईजी, आप तो पढ़ेलिखे विद्वान हो। देश की, दुनिया की खबर रखते हो। ज़रा ये तो बताओं कि दीवाली का जो तोहफ़ा विजय बाबू सांसदों में बंटवा रहे हैं, इसके हक़दार हम जैसे पूर्व सांसद भी हैं या नहीं।’

अपनेराम पहले तो चकराए पर जल्‍दी ही समझ गए कि विजयबाबू का ‘काला कुत्‍ता’ ठाकुर साहब के सिर पर चढ़कर जोर जोर से भौंक रहा है। विजयबाबू यानी अपने लिक़रकिंग विजय माल्‍या और उनका काला कुत्‍ता यानी उनकी फैक्‍टरी में बनी उम्‍दा ‘ब्‍लैक डॉग’ शराब । अपनेराम ने ठाकुर साहब को समझाया कि दीवाली मिठाई खाने का त्‍यौहार है, पीकर टुन्‍न होने का नहीं। पर ठाकुर साहब तो विजय माल्‍या का पता और फोननंबर बताने की जि़द ही पकड़े रहे। वे चाहते थे कि विजय माल्‍या से संपर्क करके मैं उनके लिये भी ‘तोहफा-ए-दीवाली’ मंगवाकर दूं। उनका कहना था कि उनके जैसे वरिष्‍ठ पूर्व सांसदों के सम्‍मान का भी ख़याल रखा जाना चाहिए। तभी तो उनके राष्‍ट्रचिंतन में प्रखरता आएगी और वे उम्र के साथ साथ समाजसेवा में अधिक योगदान करेंगे। अपनेराम ने अभी तो ठाकुरसाहब से पीछा छुड़ा लिया है पर वे फिर आएंगे पता पूछते। आप में से किसी को मालूम हो तो बताइयेगा वरना मेरी दीवाली होली बनना तय है।

अपनेराम पहले भी कह चुके हैं और बार बार यह सिद्ध होता रहता है कि हमारा यह प्‍यारा भारतदेश विवि‍ध भारती है। ऐसी विविध भारती कि जिसका जवाब देश क्‍या दुनिया में कहीं नहीं है। अनेकता में एकता की बेमिसाल प्रदर्शनी है हमारी यह भारतभूमि। समाजवादियों ने तो देश में ऐसे समाजवाद की नींव रख दी है कि होली दीवाली सब एक हो गई है। सुनते हैं पड़ौसी चीन में भेदरहित समाज है। वहां सब धान बाईस पसेरी है। अब अपनेराम तो कभी चीन गए नहीं। रामझरोखे बैठकर ही जग का मुजरा लेते रहते हैं। लेकिन इस मुजराबाजी में भी दिल बाग बाग हो जाता है।

परम्‍परा तो देश की यह बन गई है कि होली पर लोग बोतल खोलते हैं और दीवाली पर मिठाइयां परोसते हैं। पर अब देश की आज़ादी के बाद होली दीवाली धीरे धीरे एक जैसी होती जा रही है। तथाकथित समाजवाद का असर है कि सब कुछ बदल रहा है। राष्‍ट्रभक्‍त टीपू की तलवार खरीदने के लिए सरकारी खजाना नहीं खुलता पर देश एक मदिरा-निर्माता इसे चार करोड़ में खरीदकर अपने ड्राइंगरूम की शोभा बढ़ाता है। इसी तरह हमारी गांधीवादी सरकारें विदेशों में नीलाम हो रहे महात्‍मा की वस्‍तुओं से नज़रें चुराती हैं पर यही लिकरकिंग आगे बढ़कर नौ करोड़ रुपयों में बापू की सादें खरीद लाता है। अब यही राष्‍ट्रभक्‍त लिकरकिंग इन दिनों दीवाली के प्रेमोपहार सांसदों को भेज रहा है। कुछ नकचढ़े सांसद यह प्रेमोपहार लौटा भी रहे हैं। अब सारा मीडिया मौन है। कोई अखबार सर्वेक्षण नहीं कर रहा है कि विजयबाबू का तोहफा लौटाना उनकी सद्भावना और प्‍यार है या राष्‍ट्रविरोधी कृत्‍य। अपनेराम को यकीन है सारे सर्वेक्षण विजयबाबू के काले कुत्‍ते का साथ देंगे।

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

सर्वेक्षण तो सुविधानुरुप..बाजार भाव देख कर जबाब देते हैं. :)


सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

-समीर लाल ’समीर’

BOLO TO SAHI... ने कहा…

kya hi lazawab vichar hain sath hi uski abhiwakti to kamal kee hi hai. khas kar aapki aap parichaye to umda hai...