आख्रिर पडौ़सी देश के बापों ने माना तो सही कि लड़का उनका ही हैं। वे तो मान ही नहीं रहे थे कि लड़का उनका है। बहुत समझाया। समझाते समझाते डेढ़ महीना हो गया। पर भाईलोग नन्ना की रट ही लगाए बैठे थे । लड़के के असली बाप ने शुरू में ही कह दिया था कि लड़का उसका है, पर उस देश के बापों ने लड़के के बाप को सूचित किया कि नहीं, लड़का तुम्हारा नहीं है। जब हम कह रहे हैं कि तुम्हारा नहीं है तो तुम भी कहो कि लड़का तुम्हारा नहीं है। पर लड़के बाप सियासी बापों की तरह बेगैरत नहीं था। उसने प्रेसवालों को बता दिया कि वही लड़के बाप है और वह लड़का उसीका है।
सारे जहांन में प्रेसवालों ने डौण्डी पीट दी कि लड़का उन्हीं का है। देखो, ये लड़के का गांव देखो, गांववाले देखों, उसका घर देखों घरवाले देखो यितेदार देखों, दोस्त देखों। सब कुछ दिखा दिया टीवी के परदा-ए-स्क्रीन पर। लेकिन अंधे तो काला चश्मा लगाए बैठे थे। उन्होंने गांव को ही *सील* कर दिया और लड़के के बाप-मां को रिश्तेदारों समेत गायब करवा दिया। ये नासपिटे, कबूतर के खानदानी। गांधारी के वंशज, आंखें बन्द कर लीं और समझ्ा लिया कि दुनिया में रात हो गई। अब उन्हें कोई नहीं देखेगा। जोर जोर से कहने लगे कि नहीं, लड़का बाप का है ही नहीं। जो सबूत दे रहे हो वे सबूत ही नहीं हैं। हैं तो झूठे हैं। इसी बीच एक दिन जेल की कोठरी से बच्चे के रोने की आवाज़ आई-----मम्मी पाछ जाना ए, मम्मी की याद आ लई ए। उसने चिट्ठी भी लिखी अपने आक़ाओं को। पर उनकी वही रटंत-- बच्चा हमारा नहीं है। हमने भी समझाया, दुनिया ने भी समझाया कि अरे नामुरादों, अपने बच्चे को तो अपना कहने की हिम्मत जुटा लो। पर कायर नामुराद भला क्यों मानते? सारी दुनिया से चीख चीख कर कहने लगे कि ये लड़का हमारा नहीं है।
तुम्हारा नहीं है तो किसका है भाई? पड़ौसी का तो है नहीं। अब ये माना जा सकता है कि तुम्हारे यहां बच्चे पड़ौसी के घर पैदा होने की रवायत हो। पर ये बच्चा और उसका बाप दोनों कह रहे कि वे ही बाप-बेटे हैं तो मानते क्यों नहीं? दुनिया-जहान ने समझाई कि यार भाई, अपने लड़के को अपना लड़का कहने में शरम क्यों कर रहे हो? बाकी बातें बाद में कर लेंगे पहले बच्चे को तो पुचकार लो। न लो। पर पड़ौसीभाई तो पड्रौसीभाई ठहरे। वे शरम से नहीं, अकड़ से कह रहे थे कि सबूत दो कि लड़का हमारा
अब भला बताओ कि ये कोई बात हुई? लड़का तुमने पैदा किया, पाला पोसा बड़ा किया और सबूत हम दें कि लड़का तुम्हारा है। भाईजान, साफ बात यह है कि इस लड़के की पैदाइश में हमारा कोई हाथ नहीं है। बल्कि हम तो यहां तक कहते हैं कि इस तरह कसब-कसाई सीमापार ही पैदा किये जाते हैं। इधर नहीं।
दुनिया में असली को लोग मानते नहीं पर नक़ली को सब मानते हैं। पड़ौसियों की भी यही आदत है। अपने घर परिवार के असली बापों को नकार देते हैं और सात समुन्दर पार बैठे महाबापों की चिरौरी करते हैं। उन्हें अपना असली बाप मानते हैं। तो किस्सा कोताह ये कि सात समुन्दी परा से महाबापों ने इनके यहां चाचू-मामूं भेजे और समझाया कि मान जाओ नामुरादों हमारी भी नाक कट रही है। नहीं मानोगे तो आपजी क्या कर बैठें पता नहीं। खानदान की इज़्जत के लिये ही मान लो कि पडौसियों के यहां तुमने अपने ही लल्ला भेजे थे। अब कहीं जाके भाईखां माने हैं कि यह पितरती औलाद उन्हींकी खानदानी है। अब नया सवाल आएगा। ज़िन्दा उनका है तो बाकी नौ मुर्दे किसके हैं। कहीं ये मुर्दे उनके कब्रिस्तान के लिये भी नालायक घोषित न कर दे हमारा पड़ौसी। उसकी समझदानी बड़ी छोटी है। खुदा उसकी समझ्दानी बड़ी करे। आमीन ।
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सादर,
डॉ. कमलकांत बुधकर
http://yadaa-kadaa.blogspot.com
बुधवार, 7 जनवरी 2009
या खुदा, उनकी समझदानी बड़ी कर दे
लेखक डॉ. कमलकांत बुधकर पर 8:10 am
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8 टिप्पणियां:
पर भाईलोग नन्ना की रट ही लगाए बैठे थे
बजा फ़रमाते हैं डा. साहब आप बिल्कुल.
bahut sahi likha hai...
बहुत दिलचस्प अंदाज़ है.
गुरुदेव,
पहली बार आपको इस नए कलेवर और तेवर में देखा ....बाकि उर्दू ज़बान के प्रयोग ने जहाँ आपकी शैली को एक नई धार दी है वही कथन में एक रोचकता है संवेदना की चासनी में लिपटी हुई..ऐसा मुझे लगा ! अच्छा लग रहा है आपको ब्लॉग पर नियमित देख कर..
डॉ अजीत
www.shesh-fir.blogspot.com
मानने वाले का हश्र देखा ? नीचे से ज़मीन खींच लि गई |
बुधकर साहेब आप जोश में कुछ सिद्धांत भूल गये ,अगर आप शकुनी के वंशज कहते, तो पुराणिक सन्दर्भ सही होता,परंतु आप ने गांधारी के वंशज कह कर 'खुद को मुझ को अन्य भारतीयो को लपेटे में ले लिया ' यह उसी तरह हुआ की भूत सांस्ड विनय कटियार श्रीमती सोनियगांधी के विदेशी मूल की आलोचना करने के चक्कर में गंधारी का अपमान कर बैठे थे | गंधारी के युग में गंधार एक राज्य के रूप में भारत एवं आर्यावृत का अंग माना जाता था और गंधारी यहाँ की भारत के दिल दिल्ली यानी हस्तिनापुर की बहू थी अतः उसके वंशज तो आप और हम ही तो हुए | यह तो उसी तरह है जैसे पाकिस्तान कल तक अखंड भारत का एक भाग था आज विदेश है |
रही गंधारी की सत्य निष्ठा , तो हम आप उस 'देवी ' के स्तर तक पहुँच ही नही सकते जिसने केवल यह जानकर कि भारतवर्ष के हस्तिनापुर का राजा उसका पति देख नही सकता तो उसने भी 'दृष्टि त्याग ''स्वीकार कर लिया | नारी पूज्यते के देश सब से पहले नारी ही अपमानित होती है |
अपने बारे में आप स्वयं आप ही कहते हैं '' हिन्दीभाषी क्षेत्र हरिद्वार में जन्मा एक मराठीभाषी हूं '' अर्थात मराठा वही जो शिवा जी थे ,जिनके बारे में आप ने प्रसिद्ध कथा अवश्य पढ़ी होगी किस प्रकार उन्हो ने शत्रु के परिवार की नवजवान स्त्री को सासम्मान उनके घर भेज दिया | मैं समझता हूँ कि मुझे आगे कुछ कहने कि आवश्यकता नही है ? आप स्वएँ समझदार हैं !
खुदा लग गया है काम से। सोच रहा है इसी को बड़ा करें या दूसरी बनायें!
आदरणीय बुधकर जी को सहारनपुर वाले सुशान्त की राम-राम बंचना। ब्लॉग के माध्यम से ही सही, आपके दर्शन होते रहेंगे, यह अनुभूति सुखद है वरना सहारनपुर छोड़ने के बाद आपको सुनना दुर्लभ हो रहा था।
सुशान्त सिंहल
www.sushantsinghal.blogspot.com
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