यादे बच्चन
यह बच्चन जी का जन्मशती वर्ष है। सोचता हूँ हर महीने उनकी एकाधिक यादों को परोसता चलूँ आपने ब्लॉगी मित्रों के आगे । बात उन दिनों की है जब बच्चन जी ने मौज में आकर दाढी-मूँछ कटाना बन्द कर दिया था। उनकी एक श्मश्रुमय तस्वीर तब 'धर्मयुग' में भी छपी थी। उसीसे प्रेरणा लेकर मैंने उनका एक पेंसिल चित्र बना डाला । अपनेराम चित्रकार तो हैं नहीं सो एक घटिया सा पेंसिल स्केच बन पाया। पर मां को अपने कालूकलूटे बेटे पर भी जिस तरह नाज होता है उसी तरह अपनेराम के लिये वह चित्र भी उस वक्त ''प्यारा'' था।
हमेशा की तरह मैंने बच्चन जी को एक पत्र लिखकर उनके जन्मदिवस की बधाई के साथ बेसन के लड्डुओं का पार्सल और साथ में अपना बनाया वह घटिया सा चित्र 24 नवम्बर 1978 को भेज दिया। पर बच्चन जी तो बच्चन जी थे। उन्होंने उस घटिया से चित्र को भी ऐतिहासिक बनाकर मुझे यूँ लौटाया कि आज मैं उसे आपको सगर्व दिखाने की स्थिति में हूँ। उन्होंने उस पर अपने हाथों से ये शेर लिखा :-
तेरे दिल में अगर है यह शक्ल मेरी,
तो मैं कैसे कहूँ कि यह मैं नहीं हूँ ।
शेर के नीचे उनके चिरपरिचित हस्ताक्षर थे - 'बच्चन' और तारीख 26.11.78। मैंने दुबारा धृष्टता करदी और उनके शेर के जवाब में एक शेर लिख भेजा। अपनेराम का शेर था :-
हृदय में तुम उपस्थित हो, असल अंदाज में अपने,
उतरे नहीं तस्वीर में ये और बात है।
जवाब आना ही था। जवाब आया जिसमें और बहुत सी बातों के अलावा मेरे शेर पर यह टिप्पणी थी:-
''.....तुम्हारा शेर लंगडा है। पहली लाइन की बहर दीगर, दूसरी लाइन की बहर दीगर। फिर संस्कृतनिष्ठ शब्द शेर में ख्ापते नहीं- 'उपस्थित', 'हृदय' जैसे.....''
अपनेराम के शायर का टायर तो यह टिप्पणी पढकर पंक्चर हो गया पर हस्ताक्षरित चित्र की थाती हाथ लग गई।
बाद में 1981 में मैंने अपने कैमरे से उनके कई चित्र उतारे तो उन्होंने एक चित्र पर 18.4.81 को ये पंक्तियॉं लिख भेजीं :-
हाड मांस की
काया मेरी
जर्जर बंजर।
किन्तु वांग्मय
तन मेरा
नव यौवन उर्वर
यह चित्र बडे आकर में जब मैंने अपने घर के लिये बनवाया तब पता नहीं था कि बच्चन की अस्थिकलश लेकर जब अमिताभ हरिद्वार की हरकी पौडी पर आएंगे तो उसी चित्र के आगे बच्चनजी के अस्थिथ-अवशेष रखे जाएंगे।
गुरुवार, 13 दिसंबर 2007
तुम्हारा शेर लंगडा है
लेखक डॉ. कमलकांत बुधकर पर 9:06 am
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6 टिप्पणियां:
शानदार संस्मरण। आपके द्वारा बनाई बच्चनजी की ये तस्वीर कई बार देखी। मगर तब मैं कहता था कि इसमें बच्चनजी अमिताभ जैसे लग रहे हैं। आज संशोधन के साथ कहता हूं कि अभिषेक जैसे लग रहे हैं। क्योकि तब खुद अभिषेक बच्चे थे।
आप किसी अरोड़ा ( शायद विजय ) उपनामधारी पुराने फिल्मी हीरो जैसे लग रहे हैं।
सर,
आपकी प्रेरणा से मैंने भी अपना एक ब्लॉग बनाया है जिस पैर अभी अपनी दो कविताये पोस्ट की है.. आपका आशीर्वाद चाहता हूँ... मेरे ब्लॉग का पता है-http://shesh-fir.blogspot.com/
अजीत
प्रणाम.
इतना शानदार संस्मरण। पढ़ कर अच्छा लगा.
बात अजित जी की बिल्कुल सही है. फिल्म के हीरो जैसे लग रहे है.
मार्मिक
sir mujhe wo din yaad hai jab bacchan ji ka dehaant hua tatha aapnne postcard ki photo ko enlarge karaya tha,yeh baacchan ji ke liye aapka prem hi tha. jis tarah eska unke asthi kalash ke sath prayog hua usse ek naya itihaas likha gaya. apke blog ko minutely pada. apki collection & kabiliyat se wakif hoon. collection ko naya roop dena ke liye apko subhkamnain. apko cretive & energetic personality ke liye jaana jata hai, in pages per hamesha hume kuch naya padne ko milega eski bhi puri aasha hai,,aapka shiva.
''.....तुम्हारा शेर लंगडा है। पहली लाइन की बहर दीगर, दूसरी लाइन की बहर दीगर। फिर संस्कृतनिष्ठ शब्द शेर में ख्ापते नहीं- 'उपस्थित', 'हृदय' जैसे.....''
आप का शेर लंगडा ही नहीं शुद्ध शाकाहारी भी था. बहुत सुंदर संस्मरण लिखा है आपने और मुझे सच में आप से इर्षा है की आप बच्चन जी से मिले जबकि मैंने उनकी तीनो जीवनियाँ पढी और पूरी मधुशाला रट डाली लेकिन तब भी उनसे मिलन न हो सका.
नीरज
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