क्या आप बता सकते हैं कि ये भाई लोग कहां के हैं और क्या ले जा रहे हैं ? मैं ही बता देता हूं। मुस्लिम शिक्षाजगत का एक केन्द्र है देवबन्द जहां विश्वप्रसिद्ध शिक्षा संस्थान है 'दारुल उलूम'। ये चित्र है 'दारुल उलूम' के भोजनालय के बाहर का। भोजनालय के कार्यकर्ता विदद्वयाथियों को खिलाने के लिए रोटियां कंधे पर रखकर भोजनकक्ष तक ले जारहे हैं। रोजाना इस रोटी निर्माण केन्द्र पर करीब सात-आठ हजार क्षुधातुरों के लिए रोटियां सेंकी जाती हैं। जब क्षुधातुरों की संख्या ये है तो रोटियों का 'ट्रांसोर्टेशन' तो ऐसे ही होगा ना ?
ये चित्र अपनेराम ने पिछले दिनों जर्मनी के डॉ. इन्दुप्रकाश पाण्डेय और उनकी भार्या श्रीमती हाइडी पाण्डेय के अलावा श्रीमती बुधकर के साथ हुई देवबन्द यात्रा में उतारे। आपको कैसे लगे ?
बुधवार, 19 दिसंबर 2007
कंधे पर रोटियां
लेखक डॉ. कमलकांत बुधकर पर 10:05 am
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7 टिप्पणियां:
जबर्दस्त
बढ़िया है जी । भूख लगने लगी ।
its different.....
धांसू च फांसू
जबरजस्त
गुरुदेव , दारुल उलूम हमेशा से मेरे लिए स्वाभाविक आकर्षण का केन्द्र रहा है आपकी दुर्लभ फोटो देख कर जिज्ञासा शांत भी हुई और बढ़ी भी...
अजीत
दो युग पुरुषो की प्रेरणा रही तेजी जी का जाना वास्तव में दुखदायी है उनको शत शत नमन ...अजीत
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