शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007

बच्‍चनजी की तेजी


अमिताभ और अजिताभ की दृढ और अनुशासनप्रिय मां तथा बच्‍चन जी की तेजी चलीं गईं। ख्‍यातिलब्‍ध बच्‍चन परिवार की वे रीढ थीं और महाकवि की प्रेरणा भी। पहली पत्‍नी श्‍यामा जी के निधन के बाद टूटे हुए बच्‍चन जी को संभालने संवारने और जगत को उनकी प्रतिभा से रूबरू कराने में तेजी जी का बहुत बडा योगदान था। अपने शुरुआती दिनों में, खासकर श्‍यामा जी के बाद, बच्‍चन जी अंतर्मुखी हो चले थे। पर तेजी जी ने उनके जीवन में नई आशा और बहिर्मुखता का सूत्रपात ही नहीं किया बल्कि उनके भीतर बैठे कलाकार को सतत प्रोत्‍साहित करते हुए बच्‍चन को बच्‍चन बनाने में अपनी महती भूमिका अदा की। उनके बारे में सुप्रसिद्ध साहित्‍यकार डॉ. प्रभाकर माचवे मौज में अक्‍सर कहा करते थे, 'भई बच्‍चन तो तेजी के साथ बढ रहे हैं।'' इस वाक्‍य का श्‍लेष बहुत गहराई तक सच बयान करता है। सही मायनों में वे बच्‍चन जी का बल थीं। सहयात्री का जाना यूं भी कष्‍टकर होता है, फिर साठ सालों से अधिक तक सहयात्री रहे बच्‍चनजी जैसे भावुक, समर्पित कलमकार, कलाकार सहयात्री का बिछोह निस्‍संदेह तेजी जी के लिये पीडादायी था। बच्‍चन जी के जाने के बाद उन्‍होंने खाट क्‍या पकडी, बच्‍चन जी की राह ही पकड ली।
बच्‍चन जी भी तेजी जी का बहुत खयाल रखते थे और बेहद सम्‍मान भी करते थे। वे बच्‍चन जी को 'बच्‍चन' संबोधन से ही बुलाती थीं। वे दमे की मरीज थीं और मुम्‍बई का नम हवामान प्राय: उन्‍हें रास नहीं आता था इसीलिये ऐसा बहुत काल गुजरा जब बच्‍चनजी और वे दिल्‍ली रहती रहीं और बाकी परिवार मुम्‍बई में। मुझे उनके दर्शनों का और प्रणाम करने का अवसर अक्‍सर दिल्‍ली में 13 विलिंग्‍डन क्रीसेंट तथा गुलमोहर पार्क के उनके घर 'सोपान' में ही मिला। वे भी बच्‍चन जी की ही तरह राम और हनुमान भक्‍त थीं। बच्‍चन जी के हर घर में हनुमान जी की प्रतिमा जरूर स्‍थापित होती थी। सोपान में थी। अन्‍दर घुसते ही दाईं ओर के एक वृक्ष के नीचे मारुतिनन्‍दन बिराजमान थे। एक बार मैं मंगलवार के दिन बच्‍चन जी के घर गया तो उनके माथे पर सिंदूर का टीका देखकर पूछा तो उन्‍होंने ले जाकर अपने आंगन के हनुमान जी के दर्शन कराए थे। मुझे याद है उस दिन मां जी चाय भेजने से पहले खुद हाथ में मोतीचूर के लड्डुओं का प्रसाद लेकर आईं और बोलीं, 'लो कमलकांत, तुम हरिद्वार से प्रसाद लाए हो और मैं तुम्‍हें 'सोपान' वाले हनुमानजी का प्रसाद खिलाती हूं।' मां जी के हाथों से मिले उस प्रसाद का स्‍वाद मैं आज तक नहीं भूल पाया हूं।

बच्‍चन जी के मेरे नाम आए पत्रों में कुछेक पत्र उन्‍होंने मुझे तेजी जी के लैटरहेड पर ही लिखे थे। 1978 में लिचो ऐसे तीन पत्र मेरे सामने हैं जिनपर अंग्रेजी में बांई ओर सुन्‍दर अक्षरों में TEJI और दाईं ओर मुम्‍बई का पता छपा हुआ है। तेजी जी के नाम मुद्रित नाम के नीचे बच्‍चन जी ने अपने हस्‍ताक्षरों में बच्‍चन लिखा है। बच्‍चन जी के अनेक पत्रों में तेजी जी का, उनके दमें और उनकी यात्राओं तक का उल्‍लेख बच्‍चन जी ने किया है। परिजनों के पत्रशीर्षों का उपयोग करना और उनके बारे में जानकारी देना बच्‍चन जी की वह शैली थी जिसके चलते सामान्‍य व्‍यक्ति भी खुद को बच्‍चन परिवार से जुडा महसूस करता था।
कहावत है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्‍त्री होती है। तेजी जी के बारे में यह कहावत दुगनी सार्थक है। वे एक नहीं दो दो सफल पुरुषों के पीछे प्रेरणापुंज थीं। अपनी युवावस्‍था में जहां उन्‍होंने कवि बच्‍चन को महाकवि बनाने में अपनी ऊर्जा लगाई वहीं अपनी प्रौढावस्‍था और वृद्धावस्‍था को उन्‍होंने अपने यशस्‍वी पुत्र अमिताभ की सफलता के लिए समर्पित कर दिया। खुद बच्‍चन जी ने बताया था कि तेजी जी एक अभिनेत्री भी थी। वे कॉलेज के दिनों में नाटकों में भाग लेती थीं। यही नहीं विवाह के बाद भी वे इलाहाबाद और दिल्‍ली में कई बार मंचों पर अभिनय के लिए उतरीं हैं। कहा जा सकता है कि अमिताभ जी में अभिनय के संस्‍कार अपनी मां से ही आए हैं।
वे सचमुच भाग्‍यशाली महिला थीं। उन्‍होंने बच्‍चन परिवार और नेहरू परिवार के बीच उपजे परिचय को ऐसी प्रगाढता में बदल डाला कि भारत की एक प्रधानमंत्री ने अपनी पुत्रवधू और भावी प्रधानमंत्री की सहधर्मिणी को भारत व भारतीयता का परिचय देने के लिए उन्‍हीं के हवाले किया। बच्‍चन जी की साहित्यिक प्रतिभा के बराबर ही तेजी जी की व्‍यवहार निपुणता का असर था कि देश के अग्रणी दो परिवारों की चर्चा में नेहरू-बच्‍चन परिवार का नाम सहज ही लोगों की जुबान पर आ जाता था। वे इस मायने में भी भाग्‍यशाली थीं कि उनके पुत्रों ने उनका भरपूर सम्‍मान किया और सही मायनों में पुत्रधर्म निभाया। किसी जमाने में बच्‍चन जी ने मेरे एक प्रश्‍न के उत्‍तर में कहा था कि 'अमिताभ में सुरुचि उनकी मां से ही आई है। उन्‍होंने मुझे लिखा था कि तेजी जी एक ऊंचे आभिजात्‍य परिवार का संस्‍कार लेकर आईं। रहन सहन से लेकर बात-व्‍यवहार तक में वे ऊंचे दर्जो की सुरुचि का सबूत हर सय देती हैं, ऐसी सुरुचि पीढियों की देन होती है और पीढियों का दाय भी । इसमें कोई संदेह नहीं कि अमित अजित ने यह सुरुचि अपनी मां से दाय के रूप में पाई है।''
ऐसी सुरुचिसंपन्‍न तेजी बच्‍चन जी को जिनकी प्रतिभा के कारण बच्‍चन परिवार ने देश के चन्‍द सफलतम परिवारों में अपना स्‍थान बनाया हमारे प्रणाम। प्रभु उन्‍हें अपनी चरण शरण दें।

6 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

९३ साल की होकर तेजी आंटी जी भी
चल बसीं :-(-- बहुत दुःख हुआ सुनकर - आपकी श्रध्धान्जली के साथ मेरे भी नमन दीवंग्त आत्मा को प्रभु शरण मिले इस प्रार्थना के साथ --

लावण्या

ALOK PURANIK ने कहा…

नमन

ALOK PURANIK ने कहा…

नमन

Sanjeet Tripathi ने कहा…

श्रद्धांजलि उन्हें

अजित वडनेरकर ने कहा…

स्मृतियों को श्रद्धांजलि। बच्चन जी की आत्मकथा से ही जाना था कि तेजी जी सभी रूपों-अर्थों में तेजस्विनी थीं। बच्चन परिवार आज जहां है वहां तक पहुंचने का योग उसकी कुंडली में बना ही तब होगा जब तेजी नाम के नक्षत्र का इस परिवार से जुड़ना हुआ होगा।

Dr.Ajit ने कहा…

दो युग पुरुषो की प्रेरणा रही तेजी जी का जाना वास्तव में दुखदायी है उनको शत शत नमन ...अजीत